उदित वाणी, जमशेदपुर: ‘‘यौनिकता का प्रश्न पुरातन भारत में आज की तरह मुश्किल नहीं था. हमारे यहां किन्नर और गंधर्व का जिक्र मिलता है. समलैंगिकता कोई नयी चीज नहीं है, लेकिन होमोसेक्सुअलिएटी और बायोसेक्सुअलिटी पर अब चर्चाएं हो रही हैं. एलजीबीटी के लिए कानून बन रहे हैं. हालांकि उनका लेखकीय मकसद केवल इस विषय का ही चित्रण करना नहीं था, बल्कि नब्बे के दशक में जवान होने वाली पीढ़ी की अनुभूतियों और जीवन-यथार्थ का चित्रण करना ही मूल मकसद था.’’ शनिवार को एलबीएसएम कॉलेज और साहित्य कला फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में कॉलेज के सेमिनार हॉल में आयोजित ‘पुस्तक चर्चा सह पाठक-लेखक संवाद’ कार्यक्रम में ‘दरकते दायरे’ उपन्यास की लेखिका विनीता अस्थाना ने डॉ. क्षमा त्रिपाठी से बातचीत के दौरान ये बातें कहीं.
उन्होंने कहा कि दायरों का दरकना स्वाभाविक है. उपन्यास सत्य घटनाओं पर आधारित है. केवल पात्रों और जगहों के नाम बदल दिए गए हैं. कपड़े, वेशभूषा या किसी व्यक्ति को पसंद करना सामान्य चीजें हैं. इनको लेकर बावेला मचाना उचित नहीं है. समाज में चुनाव की स्वतंत्रता होनी चाहिए. किसको किसके साथ रहना है या किसको किसके साथ संबंध बनाना है, यह हर किसी का हक होना चाहिए. यह सोचना पूरी तरह सही नहीं है कि पैसा कमाने से ही स्त्री स्वतंत्र हो जाती है. कामकाजी महिलाओं के प्रति समाज में हिंसा अधिक है. उनके चरित्र को सही गलत ठहराने की प्रवृत्ति अब भी है.
इसके पूर्व बतौर मुख्य अतिथि प्रो. डॉ. बीएन. प्रसाद ने कहा कि मानवीय संबंधों का कोई स्थायी दायरा कभी नहीं रहा. संस्कृति, समाज, धर्म, यौन-संबंध सबके दायरे बदलते रहे हैं. सामंती समाज ने जो मर्यादाएं स्त्रियों पर थोप रखा था, पूंजीवादी नवउदारीकरण के दौर में वे मर्यादाएं किस प्रकार टूटने लगीं, यह उपन्यास इसे बखूबी दिखाता है. हालांकि आज पूंजीवाद और नवसाम्राज्यवाद के चौधरी अमेरिका का राष्ट्रपति ट्रंप यौनिकता के मामले में जो भी अधिकार मिले थे, उसे खत्म कर रहा है. जबकि क्या प्राकृतिक है या क्या अप्राकृतिक है, यह तय करने के बजाय यौन हिंसा और उत्पीड़न मुक्त समाज के बारे में सोचना चाहिए. अपनी युवा पीढ़ी की जिज्ञासा, आकांक्षा, मानसिक मुश्किलों में साझेदार बनना चाहिए. यौन नैतिकता का दारोगा बनने के बजाए नई पीढ़ी को नये दायरे और नये पैमाने बनाने देना चाहिए. लव को सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव का माध्यम बनाना चाहिए.
अध्यक्षता करते हुए एलबीएसएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अशोक कुमार झा ने कहा कि समाज में जो प्रश्न मौजूद होते हैं, उसे उठाना साहित्यकार का कर्तव्य होता है. विनीता अस्थाना का अपना एक स्पष्ट दृष्टिकोण रहा है. कुछ कन्फ्यूजन है तो वह हमारे समय का कन्फ्यूजन है. अंतधार्मिक प्रेम गलत नहीं है, पर धर्म परिवर्तन के लिए कोई प्रेम होगा तो वह लव जेहाद ही होगा. हमें हर प्रकार की धार्मिक-राजनीतिक कट्टरता का विरोध करना चाहिए. समता और समरसता से पूर्ण समाज का निर्माण ही साहित्य का उद्देश्य होता है.
दरकते दायरे’ उपन्यास एक बोल्ड उपन्यास :
क्षमा शर्मा ने ‘दरकते दायरे’ उपन्यास को एक बोल्ड उपन्यास की संज्ञा दी. लेखक-पाठक संवाद के दौरान उर्दू की विभागाध्यक्ष डॉ. शबनम परवीन ने कहा कि विनीता अस्थाना के उपन्यासों की औरतें मुख्तलिफ हैं. अंग्र्रेजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. मौसमी पॉल ने आज की लड़कियों के जीवन-दर्शन में होने वाले बदलावों की चर्चा की. राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार गुप्ता ने कहा कि जब राज्य समाज नहीं था, तब संबंध कैसे रहे होंगे. कैसे तय होगा कि क्या प्राकृतिक है और क्या अप्राकृतिक? दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. दीपंजय श्रीवास्तव ने धर्म, गोत्र, खाप-पंचायतों की भूमिका पर प्रश्न उठाया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित कानूनों की चर्चा की.
इस मौके पर हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. पुरुषोत्तम प्रसाद, कला फाउंडेशन के ब्रजेश मिश्र, बांग्ला विभाग की अध्यक्ष डॉ. संचिता भुईसेन, दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर संतोष राम, वनस्पति विज्ञान की विभागाध्यक्ष डॉ. जया कच्छप, भौतिकी विभाग की अध्यक्ष डॉ. सुष्मिता धारा, इतिहास विभाग की अध्यक्ष डॉ. स्वीकृति, इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफसर मोहन साहू, वाणिज्य विभाग की प्रोफसर डॉ. रानी, मनोविज्ञान विभाग के प्रो. डॉ. प्रशांत और प्रमिला किस्कू, हो विभाग की प्रोफेसर शिप्रा बोयपाई, अंग्रेजी विभाग की रिषिता राय, प्रीति कुमारी, ललन कुमार दत्ता, रामप्रवेश सिंह, अजय कुमार दीप आदि मौजूद थे.
उदित वाणी टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।