
उदित वाणी, जमशेदपुर : शहर के सबसे सुरक्षित और पॉश इलाकों में गिने जाने वाले विजय हेरिटेज में रहने वाला एक सामान्य परिवार आज खौफ के साए में जी रहा है. शनिवार की शाम बैंककर्मी पीटेंस तिवारी अपनी पत्नी, दो वर्षीय बेटे और साली के साथ सैर पर निकले थे. लेकिन यह शाम उनके जीवन की सबसे डरावनी घटना में तब्दील हो गई.
घटना एग्रिको गोलचक्कर के पास की है, जहां खाऊ गली के पास बड़ी संख्या में लोग आईपीएल का मैच एक बड़ी स्क्रीन पर देख रहे थे. मैदान और सड़क किनारे 10–15 बाइक खड़ी थीं, और कुछ युवक नशा कर रहे थे. इसी दौरान तिवारी की कार गलती से एक बाइक से सट गई.
मामूली टक्कर से शुरू हुई बर्बरता
कार के बाइक से छू जाने भर पर नशे में धुत युवकों ने परिवार को घेर लिया. पहले पैसों की मांग की गई. जब पीड़ित परिवार ने कहा कि थाने चलकर बातचीत करें, तो युवकों ने गाली-गलौज करते हुए मारपीट शुरू कर दी. जैसे-तैसे पीटेंस तिवारी ने कार स्टार्ट कर वहां से भागने की कोशिश की, लेकिन असामाजिक तत्वों ने पीछा करना शुरू कर दिया.
कार को पीछे से कई बार ठोकर मारी गई, पत्थर फेंक कर शीशे तोड़े गए. यहां तक कि पीटेंस तिवारी को कार से खींच कर उतारने की कोशिश की गई. कार में मौजूद महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई और उनके कपड़े फाड़ने की कोशिश भी हुई. घटना के बाद किसी तरह पूरा परिवार सीताराम डेरा थाना पहुंचा.
“थाना क्षेत्र का बहाना”: पुलिस की संवेदनहीनता उजागर
परिवार जब बदहवास हालत में सीताराम डेरा थाना पहुंचा तो पुलिस ने यह कहकर टाल दिया कि यह मामला उनके थाना क्षेत्र का नहीं है. थाना स्टाफ ने पीड़ितों को सिदगोड़ा थाना जाने को कहा. पीड़ित परिवार डरा-सहमा घर लौट आया, फिर गूगल से नंबर निकालकर सिदगोड़ा थाना में संपर्क किया. वहां भी सीधे शिकायत दर्ज नहीं की गई बल्कि थाना प्रभारी का नंबर देकर व्हाट्सएप पर लिखित शिकायत भेजने को कहा गया. पीटेंस तिवारी ने पूरी घटना विस्तार से लिखकर भेजी. लेकिन 12 घंटे बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.
“अब घर से निकलने में भी डर लग रहा है”
पीड़ित पीटेंस तिवारी का कहना है, “हमारी आंखों के सामने ही कार तोड़ी गई, बीवी-बच्चे को मारा गया. मैं बैंक में काम करता हूँ, इज्जत से जीना चाहता हूँ, लेकिन पुलिस और समाज दोनों ने हमें अकेला छोड़ दिया. 12 घंटे बाद भी न कोई कॉल आया, न कोई पूछने आया.”
पीड़िता सोमा पांडेय का कहना है, “बच्चा दहशत में है, रसोई नहीं जली, हमने कुछ खाया नहीं. पति को कार से खींचने की कोशिश हुई, मेरे साथ और मेरी बहन के साथ बदतमीजी हुई. आसपास खड़े लोग तमाशा देखते रहे, कोई मदद को आगे नहीं आया. ये शहर के बीचोंबीच हुआ – और पुलिस ने कहा ये उनका क्षेत्र नहीं है!”
डीएसपी से लेकर थाना प्रभारी अब सक्रिय
मीडिया में मामला सामने आने के बाद डीएसपी और थाना प्रभारी अब हरकत में आए हैं. हालांकि घटना के 12 घंटे बाद भी एफआईआर दर्ज न होना और पीड़ितों को इधर-उधर दौड़ाना शहर में पुलिस की निष्क्रियता और संवेदनहीनता को उजागर करता है.
नशेड़ियों का अड्डा बनता जा रहा है एग्रिको मैदान?
स्थानीय लोगों के मुताबिक एग्रिको मैदान अब नशा करने वाले युवकों का अड्डा बनता जा रहा है. खुलेआम शराब और गांजा पीने वाले युवकों की भीड़ शाम को जमा होती है, खासकर जब मैदान में कोई आयोजन या स्क्रीनिंग हो रही हो.
इस तरह की घटनाएं सिर्फ एक परिवार की नहीं, पूरे शहर की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलती हैं. यह सिर्फ नशेड़ियों की हिम्मत नहीं, बल्कि प्रशासन की कमजोरी है. सवाल है – क्या अब नागरिकों को शहर की सड़कों पर सुरक्षित घूमने का भी अधिकार नहीं बचा?
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