उदित वाणी, जमशेदपुर : केबल निर्माता कंपनी इन्कैब इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड पर सैकड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप लगा है. इसमें कंपनी के साथ ही भारतीय प्रमोटरों, बैंकिंग संस्थाओं, रिजोल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) और लिक्विडेटरों तक की संदिग्ध संलिप्तता सामने आई है. जमशेदपुर स्थित न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी सिद्धांत तिग्गा ने इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 120 बी और 34 के तहत प्रथम दृष्टया अपराध सिद्ध पाते हुए 22 आरोपियों को सम्मन जारी किया है. मामले की अगली सुनवाई 25 जून 2025 को होगी.यह मामला उस समय प्रकाश में आया, जब कंपनी के सेवानिवृत्त कर्मचारी शंभु शरण पांडे ने अदालत में शिकायत दर्ज कराई कि उन्हें 1999 से सेवानिवृत्ति तक का वेतन और अन्य देयक नहीं मिले हैं. केवल वही नहीं, उनके साथ 2,000 से अधिक ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें समान हालातों का सामना करना पड़ा.
1920 में शुरू हुई थी कंपनी
शिकायतकर्ता के अनुसार इंकैब इंडस्ट्रीज़ की स्थापना 1920 में अंग्रेज़ी कंपनी बीआईसीसी ने की थी. कंपनी को सरकार से 177 एकड़ ज़मीन अनुदान के रूप में मिली थी, जिस पर केबल टाउन, जमशेदपुर में उसका प्रमुख संयंत्र और आवासीय कॉलोनी स्थित था. वर्ष 1985 में कंपनी भारतीय नियंत्रण में आई और वित्तीय संस्थानों, बीआईसीसी, काशीनाथ टापुरिया और पब्लिक होल्डिंग्स के बीच शेयर वितरण हुआ.काशीनाथ टापुरिया के नेतृत्व में कंपनी 1993 तक चली, लेकिन फिर दिवालियापन की स्थिति आ गई. इसके बाद वित्तीय संस्थानों ने मॉरीशस स्थित लीडर यूनिवर्सल कंपनी को नया प्रोमोटर निदेशक नियुक्त किया, जिसने बहुमत हिस्सेदारी के साथ प्रबंधन संभाला, लेकिन 1999 में इस कंपनी ने अचानक कंपनी से हाथ खींच लिया और कोई भी कानूनी प्रक्रिया पूरी किए बिना सभी जिम्मेदारियों से अलग हो गई.
इन विदेशी और भारतीय निदेशकों ने न केवल कंपनी अधिनियम का उल्लंघन किया बल्कि जानबूझकर बोर्ड की बैठकों, ऑडिट, बैलेंस शीट की स्वीकृति जैसी प्रक्रियाओं से बचते हुए कंपनी की संपत्तियों को निजी लाभ के लिए बेचा. कंपनी की अचल संपत्तियों को बिना उचित प्रक्रिया के दिल्ली, मुंबई, पुणे और जमशेदपुर में बेचा गया या किराए पर दे दिया गया और उसका राजस्व कथित रूप से रमेश घमांडीराम गोवानी और उनकी कंपनियों — कामला मिल्स लिमिटेड, आरआर केबल प्रालि और फस्क्वा इन्वेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड को दे दिया गया. इस मामले में आईसीआईसीआई बैंक, सिटी बैंक, ऐक्सिस बैंक और पेगासस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी जैसी वित्तीय संस्थाओं की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है. इन बैंकों ने अपने एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां) को नियमों के विपरीत निजी कंपनियों को हस्तांतरित कर दिया, जिससे कर्मचारियों के हितों की अनदेखी हुई और घोटाले को बल मिला.
2021 में एनसीएलएटी ने की सुनवाई
राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने वर्ष 2021 में इस पूरे मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि कंपनी पर अवैध कब्ज़ा कर लिया गया है और लिक्विडेटर शशि अग्रवाल को तत्काल प्रभाव से हटाते हुए आईबीबीआई को उनके विरुद्ध विधिक कार्रवाई के निर्देश दिए.दिल्ली उच्च न्यायलय ने भी पूर्व में माना था कि कंपनी पर कुल देनदारी मात्र 27.63 करोड़ थी जिसे एसबीआई को चुकाया जाना था, जबकि आरोपियों ने 4,000 करोड़ का दावा करके कंपनी की परिसंपत्तियों पर अवैध कब्ज़ा कर लिया.
कर्मचारियों के 110 करोड़ रूपए भी हड़पने का आरोप
अदालत में गवाही देने वाले दो अन्य कर्मचारियों — कल्याण शाही और रामचंद्र सिंह ने भी शिकायतकर्ता के दावों की पुष्टि की और बताया कि न केवल वेतन और ग्रेच्युटी लंबित है, बल्कि कर्मचारियों के लगभग ₹110 करोड़ बकाया भी हड़प लिए गए हैं. न्यायलय ने अपने आदेश में कहा कि प्रस्तुत दस्तावेज़ों, साक्ष्यों और उच्च न्यायालयों के पूर्व आदेशों को देखते हुए आरोपियों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक षड्यंत्र और विश्वासघात के पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं. अतः 22 आरोपियों को अभियोजन की प्रक्रिया में सम्मिलित किया जा रहा है. याचिकाकर्ता की तरफ़ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, मंजरी सिंहा और निर्मल घोष मौजूद थे.अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने बताया कि दो अभियुक्तों के नाम छूट गये जिसके लिए वे सेशंस कोर्ट में रिवीजन दायर करेंगे.
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