उदित वाणी, जमशेदपुर: तीन माह की यात्रा के बाद फिटएटफिफ्टी प्लस महिला ट्रांस हिमालयन अभियान दल का समापन नेपाल में हुआ. 90 दिनों की कठोर ट्रेकिंग के बाद टीम आखिरकार भारतीय धरती पर वापस आ गई है.
माउंट ए पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट सहित 8000 मीटर से ऊपर 14 पहाड़ों में से 8 पर्वतों वाले नेपाल में पूरे एक महीने का अभियान रहा.
12 मार्च को शुरू हुआ था अभियान
यह यात्रा 12 मार्च 2022 को भारत-म्यांमार सीमा के पांग-साऊ दर्रे पर शुरू हुई, जहाँ पद्म भूषण बछेंद्री पाल के नेतृत्व में 50-68 वर्ष की आयु वर्ग की 12 महिलाओं के एक समूह ने तीन महीने की लंबी यात्रा शुरू की. इन महिलाओं ने पूर्व से पश्चिम तक हिमालय की चोटी तक 4,977 किलोमीटर की यात्रा की.
टीम ने भारतीय उपमहाद्वीप के चार राज्यों में 650 किलोमीटर की दूरी तय की. अरुणाचल प्रदेश, असम, ऊपरी पश्चिम बंगाल और सिक्किम के साथ ही पश्चिमी, मध्य और पूर्वी नेपाल में 1500 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की.
उम्र की कसौटी पर खरी उतरी ये महिलाएं
उम्र की कसौटी पर खरी उतरी इन महिलाओं ने चुपके से अरुणाचल प्रदेश राज्य में अपना मार्ग प्रशस्त किया. 3,727 फीट की ऊंचाई पर पंगसाऊ दर्रा ने अभियान की शुरुआत की. भारत-म्यांमार सीमा पर पटकाई पहाड़ियों में स्थित यह दर्रा असम के मैदानों से बर्मा में सबसे आसान मार्गों में से एक है. टीम ने सड़क पर उतरने से पहले गांव की देवी का सम्मान किया.
मैं बुढ़ी हूं इस मिथक को इन महिलाओं ने तोड़ा ‘मैं इसके लिए बहुत बुढी हूं’ बाधा को तोड़ते हुई टीम ने अभियान के शुरुआती चरण में हर दिन औसतन 25 किलोमीटर की दूरी तय की. धीरे-धीरे समय के साथ दूरी बढ़ती गई. यह अनुकूलन का चरण था जिसमें भाग लेने वाली महिलाओं ने सहायक कर्मचारियों के साथ अपने शरीर को पहाड़ी परिस्थितियों में ढाला.
टीम ने अन्नपूर्णा सर्किट मार्ग से ट्रेकिंग की और नेपाल के मुक्तिनाथ पहुंचे. एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर जाने के लिए ऊंचे दर्रों को तोड़ते हुए महिलाएं 17,769 फीट की ऊंचाई पर थोरंगला दर्रे पर पहुंचीं, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्थान है. वे भारतीय उपमहाद्वीपों में और अधिक चुनौतीपूर्ण पास लेने के लिए तैयार हैं जैसे कि फरंगला दर्रा 18,300 फीट की ऊंचाई पर और लमखागा दर्रा 17,330 फीट पर.
किसी भी तरह के कठोर मौसम या किसी भी प्रतिकूलता ने टीम के उत्साह को कम नहीं किया. टीम के लिए दिन की शुरुआत सुबह करीब 4 बजे होती थी और वे सुबह 4:30 बजे ट्रेकिंग शुरू करते थे जबकि ठंडी ठंडी सुबह में सूरज अभी भी अधिक दूरी तय करने के लिए नीचे होता था. उग्रवाद रोधी क्षेत्रों से गुजरते हुए सेना के जवानों ने पूरे रास्ते ट्रेकर्स की सुरक्षा की.
पारंपरिक बेड़ियों को तोड़ा इन महिलाओं ने वे दिन गए जब सेवानिवृत्ति के बाद ज्यादा आयु वर्ग वालों को आराम दिया जाता था. यह रोमांच का युग है और ये महिलाएं इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं. भारतीय सेना के मार्गदर्शन में उबड़-खाबड़ इलाकों में ट्रेकिंग करती ये बहादुर महिलाएं हर तरह के डर या संदेह पर विजय प्राप्त करती रही.
इन महिलाओं ने व्यस्त शहर के जीवन की बेड़ियों को तोड़कर सुंदर शांत पहाड़ों को निहारने की चुनौती स्वीकार की थी.
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