अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले भगवान की यादें आज भी ताजा है टाटा-खूंटी रोड में
उदित वाणी, जमशेदपुर: भगवान बिरसा मुंडा ने 9 जून, 1900 को अपनी अंतिम सांस ली थी. कभी न अस्त होने वाले सूर्य का दंभ भरने वाली अंग्रेजी राजसत्ता महज 25 साल के इस युवक से इतना घबरा गई कि उसने रातों रात डिस्टिलरी पुल के पास उसका दाह संस्कार कर दिया. उसने उजाले तक भी सब्र करना उचित नहीं समझा और न ही परिवार वालों को खबर देना.
जेल में बिरसा को अंग्रेजी सत्ता ने बीमार कर दिया और इस बीमारी से लड़ते हुए बिरसा शहीद हो गए, लेकिन लड़ाई कभी खत्म नहीं हुई. 15 नवंबर 1875 को जन्मे बिरसा ने एक अक्टूबर 1894 को सभी मुंडाओं को एकत्र कर अंग्रेजों से लगान माफी के लिए आंदोलन छेड़ दिया. सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की.
छोटी सी उम्र में पहाड़ सा संकल्प लेकर आगे बढ़े. युवाओं को संगठित किया. नशे से दूर रहने का संकल्प और अपने दुश्मनों की सही पहचान की. नया धर्म बिरसाइत चलाया, जिसके अनुयायी आज भी हैं. उस समय भी, उनके जादुई नेतृत्व के मुरीद सभी थे. उलिहातु से लेकर चाईबासा तक. जल, जंगल, जमीन की लड़ाई में जंगल सुलगने लगे थे। पहाड़ों पर बैठकों का दौर शुरू था. जंगल की आग नगरों तक फैली और उलगुलान शुरू हो गया. बिरसा के पास कोई आधुनिक हथियार नहीं थे.
बस, तीर-धनुष जैसे पारंपरिक हथियार थे. कई तो गुलेल से भी लड़ रहे थे. इन्हीं हथियारों से वह दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्यवादी सत्ता से लोहा ले रहे थे. इस युद्ध में वीरता के साथ बिरसा के साथी भी शहीद हुए, लेकिन उनकी कुर्बानियां बेकार नहीं गईं. अंग्रेजों को अंतत: सीएनटी एक्ट बनाना पड़ा. नौ जून यानी बुधवार को बिरसा मुंडा झारखंड के भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि मनाई जाती. बिरसा मुंडा को नौ जून 1900 को रांची के जेल मोड़ स्थित कारागार में शहीद हुए थे.
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1897 से 1900 के बीच मुंडा समाज के लोग अंग्रेजों से लोहा लेते रहे थे.बिरसा मुंडा और उनके साथियों ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए थे.अगस्त 1897 में बिरसा और उनके सिपाहियों ने तीर कमान से लैस होकर खूंटी थाने पर धावा बोल दिया था. 1898 में मुंडा और अंग्रेज सेनाओं में युद्ध हुआ था. इसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गई. इस युद्ध में अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ी. इसके बाद खिसियाए हुए अंग्रेजों ने आदिवासी नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू कर दीं.
जनवरी 1900 में डोमबारी पहाड़ी पर एक और झड़प हुई थी. इसमें बहुत सी औरतें और बच्चे मारे गए थे. यहां बिरसा मुंडा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे. जब अंग्रेजों ने धावा बोल दिया था. बाद में बिरसा के कुछ साथियों की गिरफ्तारी हुई. अंत में 3 फरवरी 1900 को बिरसा मुंडा को चक्रधरपुर में गिरफ्तार कर लिया गय. उन्हें रांची की जेल में रखा गया. बिरसा मुंडा ने नौ जून 1900 को शहादत प्राप्त की थी.
आज भी झारखंड के अलावा उड़ीसा, छत्तीसगढ़ पश्चिम बंगाल आसाम आदि इलाकों के आदिवासी बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजते हैं.उन्हीं की जयंती 15 नवंबर, 2000 को झारखंड बिहार से अलग होकर अलग राज्य बना था. इसलिए इस प्रदेश के लिए तो उन्हेंं भगवान का दर्जा प्राप्त है. लेकिन जनजातीय समाज को बिरसा की शहादत का जो अभीष्ट मिलना चाहिए था, वो आज तक नहीं मिल पाया है.
दक्षिण के निर्देशक बना रहे बिरसा पर बड़ी फिल्म
भगवान बिरसा मुंडा के व्यक्तित्व और कृतत्व पर अब दक्षिण के फिल्मकार भी फिल्म बनाने की पहल कर चुके हैं. तमिल फिल्म इंडस्ट्री के बड़े निर्देशकों में शुमार पीए रंजीथ हिंदी फिल्मों में डेब्यू भी भगवान बिरसा मुंडा की जीवनी पर फिल्म बनाकर कर रहे हैं. पीए रंजीथ सुपरस्टार रजनीकांत स्टारर कबाली और काला का निर्देशन कर चुके हैं.
उन्होंने चर्चित फिल्म सरपत्ता परंबराई का भी निर्देशन किया है. भगवान बिरसा मुंडा पर बनने वाली हिंदी फिल्म का टाइटल बिरसा रखा गया है. इसके निर्माताओं में शीरीन मंत्री और किशोर अरोड़ा शामिल हैं. नमह पिक्चर्स के बैनर तले फिल्म का निर्माण होगा. इससे पहले भी उन पर उलगुलान नामक फिल्म बन चुकी है.
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