उदित वाणी, जमशेदपुर: 12 साल बाद जमशेदपुर पधारे स्वामी अवधेशानंद गिरि से उदित वाणी अख़बार के संपादक उदित अग्रवाल ने मुलाकात की, मुलाकात के बारे में वे लिखते हैं कि कुछ मुलाक़ातें जीवन पर ऐसी छाप छोड़ जाती हैं जो समय की सीमा से परे जाकर भी प्रभाव छोड़ती हैं. ऐसा ही एक दुर्लभ और गहन अनुभव मुझे स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से हुई संक्षिप्त भेंट के रूप में मिला.
पहली झलक में दिव्यता का अहसास
स्वामीजी से मिलते ही उनकी तेजस्विता, आध्यात्मिक आभा और शांत सौम्य मुखमंडल का प्रभाव गहरे मन तक उतर गया. उनकी वाणी में अद्भुत सरलता थी और दृष्टि में ऐसी गहराई, मानो किसी ऋषि का प्रत्यक्ष दर्शन हो गया हो.
स्मरणशक्ति जिसने किया चकित
इस संक्षिप्त भेंट में सबसे अधिक आश्चर्यजनक और प्रेरक बात उनकी विलक्षण स्मरणशक्ति थी. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि उन्हें ‘उदित वाणी’ में दो दशक पूर्व प्रकाशित साक्षात्कार और यात्राओं की बातें अब भी याद हैं. न केवल लेख और शीर्षक, बल्कि संवाद और लेखकों की भावनाएं भी उन्हें स्मरण थीं. यह सुनकर मैं अचंभित रह गया.
संवाद नहीं, आत्मीय मिलन
स्वामीजी किसी से केवल मिलते नहीं, वे संवाद रचते हैं. हर व्यक्ति से जुड़ने का प्रयास करते हैं. वे नाम पूछते हैं, कार्य जानना चाहते हैं और व्यक्ति के भीतरी भाव को समझने में रुचि लेते हैं. उनके शब्दों में जो आत्मीयता है, वही उन्हें कुछ ही पलों में हृदय से जोड़ देती है.
एक उपस्थिति जो बदल दे वातावरण
पूर्व में यह एक कल्पना भर थी कि कोई ऐसा संत हो सकता है जिसकी उपस्थिति मात्र से वातावरण में दिव्यता भर जाए, लेकिन स्वामीजी से मिलन के बाद यह विश्वास बन गया. उनके शरीर से एक दैवीय आभा फूटती है, जो वातावरण को दिव्य ऊर्जा से भर देती है. उनके स्वर की ओजस्विता सम्मोहन उत्पन्न करती है.
श्रद्धा नहीं, समर्पण
स्वामीजी के प्रवचन में केवल अंधभक्त नहीं आते, बल्कि जीवन के विविध क्षेत्रों में सफल लोग भी उनके चरणों में समर्पित होते हैं. यह दिखावटी नहीं, भीतर से निकला श्रद्धा भाव होता है. यह सम्मान उनके तप और साधना का परिणाम है.
ज्ञान का महासागर, हृदय का सागर
स्वामीजी का ज्ञान जितना गहन है, उनका हृदय उतना ही विशाल. वे जब सत्य, साधना और संतत्व की बात करते हैं, तो प्रत्येक शब्द आत्मा में उतरता है. उन्होंने कहा, “जो सत्य के मार्ग पर चलता है, उसे अंततः कष्ट नहीं आता—वह प्रकाश से भर जाता है.” इस वाक्य ने हमें भी यह संकल्प दिया कि हम पत्रकारिता के धर्म में सत्य के प्रति समर्पित रहें.
सरल जीवन, गहरी सीख
मैं स्वयं एक ‘मिनिमलिस्टिक जीवनशैली’ का समर्थक रहा हूँ. जब स्वामीजी ने कहा, “सफर तभी आसान होगा जब सामान कम होगा.” तो लगा मानो किसी ने मेरे विचारों को शब्द दे दिए हों. यह केवल जीवनमंत्र नहीं, बल्कि समाज की कई समस्याओं का समाधान भी है.
अनुभव से उपजी आंतरिक क्रांति
स्वामीजी के साथ बिताए गए वे क्षण एक आंतरिक क्रांति जैसे थे. उन्होंने मेरे सोचने, देखने और जीने के ढंग को नई दृष्टि दी. जब भी जीवन में संशय होगा, उनके शब्द और आत्मीय दृष्टि मार्गदर्शन करेंगी. स्वामी अवधेशानंद गिरि से मिलना केवल एक संत से मिलना नहीं, बल्कि जीवन की उस धरोहर से मिलना है जो शब्दों से नहीं, अनुभवों से प्रेरित करती है.
उदित वाणी टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।