उदित वाणी जमशेदपुर : टाटा कमिंस कर्मचारी यूनियन का चुनाव हो चुका है. नई कमेटी बन गई है और ग्रेड को लेकर कर्मचारियों से मिलने-जुलने का सिलसिला भी शुरू हो गया है. लेकिन कंपनी के कर्मचारियों के साथ ही शहर की यूनियन गतिविधियों को नजदीक से देखने वाले नेताओं की जुबान पर एक ही सवाल है-क्या विदेश दौरे से आने के बाद अनूप सिंह यूनियन की नई टीम को स्वीकार करेंगे या एक बाऱ् फिर विरोध का रास्ता अख्तियार करेंगे और नई यूनियन की संवैधानिकता को कानूनी चुनौती देंगे. इन सारे कयासों और सवालों को लेकर हमने यूनियन के चुनाव पदाधिकारी हरेन्द्र प्रताप सिंह से बात की. एक समय हरेन्द्र प्रताप सिंह भी इस यूनियन का नेतृत्व कर चुके हैं, लेकिन इस बार उनकी बदली भूमिका के तहत हुए चुनाव में ऐतिहासिक फैसला यह रहा कि बाहरी अध्यक्ष बनाने की परम्परा खत्म हो गई. कहा जा रहा है कि भले ही जीतकर आई नई यूनियन ने बाहरी अध्यक्ष को को-ऑप्ट नहीं करने का फैसला लिया, मगर यह फैसला प्रबंधन का था, जिसे यूनियन के जरिए संवैधानिक जामा पहनाया गया. इन सारे सवालों पर हरेन्द्र प्रताप सिंह क्या कहते हैं, जानिए-
सवाल-सबसे पहले यूनियन का चुनाव कराने के लिए आपको बधाई? कितना मुश्किल रहा यह काम?
हरेन्द्र प्रताप सिंह-आप एक बात समझ लीजिए, बैक गियर में गाड़ी चलाना हमेशा मुश्किल होता है, भले ही रास्ता साफ हो. अगर गाड़ी आगे ले जाना हो तो आप दनादन बढ़ जाते हैं, लेकिन जब गाड़ी को बैक गियर में ले जाना होता है तो आपको आगे-पीछे, ऊपर-नीचे सब देखना होता है. यही हाल टाटा कमिंस कर्मचारी यूनियन की गाड़ी का था. यूनियन की गाड़ी बैक गियर में चल रही थी. यही नहीं यूनियन की आपसी गुटबाजी के साथ ही प्रबंधन और अनूप सिंह के बीच के फासले बैक गियर ड्राइविंग को मुश्किल बना रहे थे. प्रबंधन को कोई राह नहीं सूझ रही थी. इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर कई दूसरे लेवल पर भी फासले को कम करने की कोशिश की गई, लेकिन गाड़ी न तो आगे और न ही पीछे बढ़ पा रही थी. यूनियन के कुछ लड़कों ने मुझसे संपर्क साधा. मैं चार साल से अमेरिका में बेटे के पास रहा. चूंकि मैं इस यूनियन से जुड़ा हुआ था, तो मैंने एक ही बात कही-एक ही शर्त पर चुनाव होगा, जब यूनियन में आपसी एकता और एकजुटता हो. लेकिन जैसे-जैसे चीजों को जानने की कोशिश की, पता चला कि बेहद जटिल है यूनियन का चुनाव करा पाना. बावजूद मैंने दिसंबर माह में चुनाव प्रक्रिया शुरू की ताकि यूनियन का गठन हो सके. श्रम कानून के अनुसार चुनाव कराना पूरी तरह से यूनियन का अधिकार क्षेत्र है. ऐसे में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई, लेकिन इसके बाद प्रबंधन से लेकर मेरे पर चुनाव प्रक्रिया को रोकने के लिए कई तरह के दबाव आने लगे. कमिंस गेट पर जिला प्रशासन हर रोज कर्मचारियों का कोविड टेस्ट कर ऐसा माहौल बना दिया कि अगर चुनाव हुआ तो कंपनी में कोविड विस्फोट हो जाएगा. श्रम विभाग भी नोटिस जारी कर दिया. और इसका नतीजा यह हुआ कि मुझे दबाव में आकर मतदान को स्थगित करना पड़ा. जबकि हमसे बड़ी यूनियन टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन में चुनाव हुआ, जहां पांच हजार वोटर्स थे और हमारे यहां केवल आठ सौ. इसके बाद मैं साइलेंट हो गया. कई बार यूनियन के नेताओं ने चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की बात कही, लेकिन मैंने साफ कर दिया कि मैं एजिटेटर नहीं हूं. मेरी जिम्मेवारी केवल चुनाव कराने तक है. इसके बाद प्रबंधन और अनूप सिंह के बीच वार्ता होती रही. वे एक बार कंपनी में भी आए. लेकिन उसके बाद भी चुनाव प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रह थी. चुनाव के तीन साल की अवधि में 14 माह खत्म गये थे. प्रबंधन और यूनियन ने अनूप सिंह को छह माह तक मौका दिया कि वे बैक गियर गाड़ी चलाकर मामले को सुलझा लें. लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल रहा था. आखिर में यूनियन की चुनाव कमेटी ने मतदान की तारिख घोषित कर दी और हमने चुनाव करा लिया?
सवाल-अनूप सिंह का बयान आया है कि यह चुनाव संवैधानिक नहीं है और पुरानी यूनियन ही कायम रहेगी? अगर वे इस यूनियन को वैधानिक और कानूनी चुनौती देते हैं तब?
हरेन्द्र प्रताप सिंह-मुझे लगता है कि वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि अनूप सिंह एक मैच्योर्ड नेता है. राजेन्द्र बाबू जैसे कद्दावर नेता के बेटे हैं. वे कोल लीडर है और विधायक भी है. अगर उनके मन में किसी भी तरह के सवाल होंगे, तो हम उस पर बात करेंगे और उनको समझाने की कोशिश करेंगे. मुझे नहीं लगता है कि अब पहले जैसा गतिरोध होगा, क्योंकि उन्हीं का कहना था कि चुनकर आए कमेटी मेंबर्स यह फैसला करेंगे कि बाहरी अध्यक्ष होगा या नहीं? हमने तो उन्हीं के कहे अनुसार चुनाव कराया है. फिर उनका ऐतराज क्यों होगा?
सवाल-पब्लिक डोमेन में यह चर्चा भी है कि प्रबंधन और अनूप सिंह की आपस में कहीं सेटिंग-गेटिंग तो नहीं हो गई है?
हरेन्द्र प्रताप सिंह-एक बात समझ लिजिए, भले ही अनूप सिंह अब यूनियन के नेता नहीं है, लेकिन हम उनके सम्मान को कम नहीं होने देंगे. मुझे नहीं लगता कि ऐसी बात में कोई सच्चाई है. उनके विरोधी लोग दुष्प्रचार कर रहे हैं.
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