उदित वाणी, चांडिल: बुधवार को चांडिल प्रखंड के सालगाडीह स्थित निर्माणाधीन सिदो-कान्हू पब्लिक स्कूल में संथाली शिक्षा देवी बिदु चानदान पूजा के अवसर पर एक प्रेस वार्ता आयोजित की गई. इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता बाबूराम सोरेन ने झारखंड सरकार पर संथाली भाषा और उसकी ओल चिकि लिपि की उपेक्षा का आरोप लगाया.
ओल चिकि लिपि का ऐतिहासिक महत्व
बाबूराम सोरेन ने बताया कि संथाली भाषा के लिए ओल चिकि लिपि का आविष्कार गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू ने 1925 में किया था. 2004 में इसे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिला, जिससे यह आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषा बनी. लेकिन सौ वर्ष पूरे होने के बावजूद सरकारें संथाली भाषा और इसकी लिपि को बढ़ावा देने में असफल रही हैं, जो आदिवासी समाज के लिए चिंता का विषय है.
सरकार की नीति पर नाराजगी
बाबूराम सोरेन ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली अबुआ सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह कैसा आदिवासी सरकार है जो अपने ही समुदाय की भाषा और संस्कृति को दरकिनार कर रही है. उन्होंने बताया कि रघुबर दास के नेतृत्व में पूर्ववर्ती सरकार ने संथाली भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए थे. सरकारी शिक्षण संस्थानों में ओल चिकि लिपि में पठन-पाठन शुरू कराया गया था और सरकारी कार्यालयों में संथाली भाषा के प्रयोग के लिए अधिसूचना जारी की गई थी. आंगनबाड़ी केंद्रों में भी बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा संथाली भाषा में देने का निर्देश दिया गया था.
संथाली भाषा की शिक्षा पर कुठाराघात?
उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने इन सभी नीतियों से ध्यान हटा लिया है, जिससे संथाली भाषा और ओल चिकि लिपि के संरक्षण को खतरा पैदा हो गया है. बाबूराम सोरेन ने सरकार से मांग की कि पूर्ववर्ती सरकार के आदेशों पर पुनः विचार किया जाए और उन्हें फिर से लागू किया जाए. इसके साथ ही, झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (JTET), झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) जैसी परीक्षाओं में संथाली विषय के प्रश्नपत्रों में ओल चिकि लिपि का समावेश सुनिश्चित किया जाए.
मांगों के समर्थन में उपस्थित लोग
इस प्रेस वार्ता में बनमाली हांसदा, सुदन टुडू, मोहन हांसदा, सुनिल मार्डी समेत कई अन्य लोग उपस्थित थे, जिन्होंने एकस्वर में संथाली भाषा के संरक्षण की मांग की.
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