डॉ. सुशील जोशी
उदित वाणी,जमशेदपुर: आगामी दशक में चंद्र अभियानों में ज़बर्दस्त उछाल की संभावना जताई जा रही है. एक विचार यह है कि कुछ अभियान चांद पर स्थायी ठिकाना बनाने का प्रयास करेंगे. इन प्रयासों के सामने तमाम चुनौतियां हैं. इनमें से एक प्रमुख चुनौती यह है कि चांद पर समय का हिसाब कैसे रखें. और दुनिया भर के मापन वैज्ञानिक इससे जूझ रहे हैं.
फिलहाल चांद का कोई अपना स्वतंत्र समय नहीं है. हर चंद्र अभियान समय का अपना-अपना पैमाना इस्तेमाल करता है और इसे पृथ्वी पर बैठे परिचालक समन्वित सार्वभौमिक समय (coordinated universal time, UTC) से लिंक करके रखते हैं. UTC ही वह पैमाना है जिसके सापेक्ष पृथ्वी की सारी घड़ियों का तालमेल बनाकर रखा जाता है.
अलबत्ता, यह तरीका थोड़ा कम सटीक है और चांद का अन्वेषण करते विभिन्न यान एक-दूसरे के साथ समय को सिंक्रोनाइज़ नहीं करते हैं. दो-चार यान होने तक तो यह तरीका चल जाता है लेकिन दर्जनों यान मिलकर काम करेंगे तो परेशानी शुरू हो जाएगी. इसके अलावा, अंतरिक्ष एजेंसियां इन यानों पर अपने उपग्रहों के ज़रिए नज़र रखना चाहेंगी. अब यदि सब अपना-अपना समय रखेंगे तो तालमेल मुश्किल होगा.
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि चांद के लिए UTC का समकक्ष (universal lunar time) क्या हो. और इसका तालमेल पृथ्वी के समय से कैसे बनाया जाए. चांद और पृथ्वी पर गुरुत्व बल अलग-अलग होता है. इसलिए दोनों की घड़ियां अलग-अलग गति से चलती है. इस प्रभाव के कारण चांद पर रखी घड़ी पृथ्वी की घड़ियों की तुलना में रोज़ाना 58.7 माइक्रोसेकंड आगे हो जाएगी. अब जब सारा कामकाज अधिक सटीकता से होगा तो इतना अंतर भी अहम साबित होगा.
पहला सवाल तो यह आएगा कि क्या अधिकारिक चंद्र-समय ऐसी घड़ियों पर आधारित हो जिन्हें UTC के साथ लयबद्ध कर दिया गया हो या वहां के लिए स्वतंत्र समय का निर्धारण किया जाए. और खगोलविदों का मानना है कि निर्णय जल्दी करना होगा क्योंकि ऐसा न हुआ तो विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियां और निजी कंपनियां अपना-अपना समाधान लागू करने लगेंगी.
धरती के चक्कर काट रहे उपग्रहों के लिए एक ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम (GPS) स्थापित की गई है. यह सिस्टम उपग्रहों की मदद से पृथ्वी पर किसी बिंदु की स्थिति का सटीक निर्धारण करने में मददगार होती है. इसी प्रकार का एक सिस्टम – ग्लोबल सेटेलाइट नेविगेशन सिस्टम – ज़रूरी होगा जो चांद व अन्यत्र भी स्थितियों के निर्धारण में कारगर हो क्योंकि समय के साथ बात सिर्फ चंद्रमा तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि मंगल वगैरह भी शामिल हो जाएंगे. अंतरिक्ष एजेंसियां चाहती हैं कि ऐसी कोई व्यवस्था 2030 तक स्थापित हो जाए.
अब तक चंद्र अभियान अपनी स्थिति को पक्का करने के लिए पृथ्वी से निर्धारित समयों पर भेजे गए रेडियो संकेतों के भरोसे रहते हैं. लेकिन दर्जनों अभियान होंगे तो ऐसे संकेत भेजने के लिए संसाधनों की कमी पड़ जाएगी.
इस वर्ष युरोपियन स्पेस एजेंसी और नासा चंद्रमा पर स्थिति के निर्धारण के लिए पृथ्वी-स्थित दूरबीनों से उपग्रह के क्षीण संकेत भेजने का परीक्षण करेंगे. इसके बाद योजना है कि कुछ ऐसे उपग्रह चंद्रमा के आसपास स्थापित किए जाएंगे जो इसी काम के लिए समर्पित होंगे. इनमें से हरेक पर अपनी-अपनी परमाणु घड़ियां लगी होंगी. तब चंद्रमा पर रखा कोई रिसीवर इन सबसे प्राप्त संकेतों की मदद से (त्रिकोणमिति की मदद से) अपनी स्थिति पता कर लेगा. इसके लिए इस बात का फायदा उठाया जाएगा कि अलग-अलग उपग्रह से रिसीवर तक संकेत पहुंचने में कितना समय लगता है. युरोपियन स्पेस एजेंसी शुरू में चार अंतरिक्ष यान स्थापित करने की योजना बना रही है जो चांद के दक्षिण ध्रुव के आसपास स्थिति निर्धारण में मदद करेंगे. दक्षिण ध्रुव को इसलिए चुना गया है क्योंकि वहीं सबसे ज़्यादा पानी है और इस वजह से सबसे ज़्यादा अभियान वहीं होने की उम्मीद है.
युरोपियन स्पेस एजेंसी के यॉर्ग हान का कहना है कि विभिन्न अभियानों के परस्पर संवाद और सहयोग करने के लिए एक अधिकारिक चंद्र समय की ज़रूरत होगी. इसके साथ ही दूसरा सवाल यह है कि क्या अंतरिक्ष यात्री पूरे चंद्रमा पर युनिवर्सल ल्यूनर टाइम (ULT) का उपयोग करेंगे. हो सकता है कि ULT ही अधिकारिक टाइम रहे लेकिन उसका उपयोग करने वाले चाहें कि वे अलग-अलग टाइम ज़ोन निर्धारित कर पाएं, जैसा पृथ्वी पर किया गया है. इसका फायदा यह होगा कि वे आकाश में सूरज की स्थिति से जुड़े रह पाएंगे.
कुल मिलाकर चंद्र समय को परिभाषित करना आसान नहीं होगा. मसलन, एक सेकंड की परिभाषा तो सब जगह एक ही है लेकिन सापेक्षता का सिद्धांत बताता है कि ज़्यादा शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण में घड़ियां धीमी चलती हैं. चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की अपेक्षा कमज़ोर है. इसका मतलब होगा कि पृथ्वी के किसी प्रेक्षक को चंद्र-घड़ी तेज़ चलती नज़र आएगी. और तो और, चंद्रमा की सतह पर अलग-अलग जगहों के लिए यह अंतर भी अलग-अलग होगा. ऐसा लगता है कि एक चंद्र-मानक परिभाषित करने के लिए कम से कम तीन मास्टर घड़ियां स्थापित करनी होंगी जो चांद की स्वाभाविक रफ्तार से चलेंगी. फिर इनके समयों पर कोई एल्गोरिद्म लागू करके एक वर्चुअल घड़ी बनेगी और वही मानक होगी.
वैसे, एक मानक चंद्र समय परिभाषित करने की दिशा में काम शुरू भी हो चुका है. अगस्त में अंतर्राष्ट्रीय खगोल संघ ने सभी अंतरिक्ष एजेंसियों से औपचारिक रूप से आव्हान किया है कि वे चंद्रमा के लिए एक समय मापन मानक स्थापित करें. नासा को कहा गया है कि वह 2026 तक चंद्र समय के मानकीकरण के लिए कोई रणनीति विकसित कर ले. इस नए मानक के लिए चार शर्तें रखी गई हैं: इसका तालमेल यूटीसी से हो सके, अंतरिक्ष में यातायात की दृष्टि से पर्याप्त सटीकता हो, पृथ्वी से संपर्क टूट जाने की स्थिति में भी यह काम कर सके और यह मात्र पृथ्वी-चंद्रमा से आगे भी लागू किया जा सके.
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