उदित वाणी, रांची: झारखंड विस चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद नई विधानसभा के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस बार झारखंड विधानसभा में सदस्यों की संख्या 82 से घटकर 81 हो गई है. इसका कारण है एंग्लो इंडियन समुदाय के मनोनीत सदस्य की संवैधानिक व्यवस्था का अंत.
एंग्लो इंडियन प्रतिनिधित्व का सफर
वर्ष 2019 में झारखंड की पांचवीं विधानसभा में मैकलुस्कीगंज निवासी ग्लेन जोसेफ गॉलस्टेन को 82वें विधायक के रूप में मनोनीत किया गया था. लेकिन, पांचवीं विधानसभा के विघटन के साथ ही यह व्यवस्था समाप्त हो गई. अब झारखंड विधानसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं रहेगा.
कैसे हुआ संवैधानिक व्यवस्था का अंत?
1952 से लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व अनुच्छेद 334 बी और 333 के तहत सुनिश्चित किया गया था.
अनुच्छेद 334 बी के अनुसार, लोकसभा में राष्ट्रपति अधिकतम दो एंग्लो इंडियन सदस्यों का मनोनयन कर सकते थे.
अनुच्छेद 333 के तहत, राज्यपाल को राज्यों की विधानसभाओं में एक सदस्य को मनोनीत करने का अधिकार था.
जनवरी 2020 में संसद द्वारा पारित 126वें संविधान संशोधन के बाद यह प्रावधान समाप्त कर दिया गया. इसके साथ ही देश की संसद और 13 राज्यों की विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन समुदाय का मनोनयन बंद हो गया.
झारखंड में एंग्लो इंडियन प्रतिनिधित्व का इतिहास
झारखंड जब एकीकृत बिहार का हिस्सा था, तब बिहार विधानसभा में 325 सदस्यों में से एक सदस्य एंग्लो इंडियन समुदाय से मनोनीत होता था. झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद यह परंपरा जारी रही.
2005 में जोसेफ पंचोली ग्लेस्टिन पहले एंग्लो इंडियन विधायक बने.
2009 में उनका दूसरा कार्यकाल हुआ.
2014 और 2019 में उनके पुत्र ग्लेन जोसेफ गॉलस्टेन को मनोनीत किया गया.
1952 से चली आ रही यह व्यवस्था खत्म होने के बाद झारखंड विधानसभा में ‘विधायक नंबर 82’ का स्थान इतिहास का हिस्सा बन गया है.
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