उदित वाणी, जमशेदपुर: शहर के 97 फीसदी स्टूडेन्ट्स क्यों पढ़ रहे हैं, उन्हें पता नहीं होता. वे अपने लक्ष्य के बारे में क्लियर नहीं होते. ये वहीं करते हैं, जो उनके दोस्त करते और पैरेन्ट्स बताते हैं. अब जब विभिन्न बोर्ड की परीक्षाओं के रिजल्ट आने वाले हैं, तो अधिकतर स्टूडेन्ट्स को इस सवाल से दो चार होना पड़ेगा. शहर के मनोचिकित्सक डॉ.संजय अग्रवाल कहते हैं, अगर स्टूडेन्ट्स की काउंसलिंग सही तरीके से हो, तो अधिकतर स्टूडेन्ट्स अपनी रूचि और एप्टीट्यूट के अनुरूप अपने करिअर का चयन कर सकते हैं. लेकिन अभी भी हमारे स्कूल काउंसलिंग को महत्व नहीं देते. स्कूलों में स्थायी रूप से काउंसलर होना चाहिए, जो बच्चों को करिअर काउंसलिंग से लेकर जेहनी तौर पर काउंसलिंग कर सके. पैरेन्ट्स भी केवल देखा देखी करते हैं. पड़ोस का बेटा एमबीए कर रहा है तो वह भी अपने बेटे को एमबीए कराने के पीछे पड़ जाते हैं. भले ही किसी प्राइवेट कॉलेज से एमबीए करने के बाद उसे पांच हजार की नौकरी नहीं मिलें. समाज में बच्चों को पढ़ाने का दिखावा भी है.
जिंदगी का फैसला बाहरी दिखावा के प्रभाव में आकर नहीं लें
बकौल डॉ.अग्रवाल, सबसे पहले स्टूडेन्ट्स को अपने गोल को लेकर क्लियर होना जरूरी है. जो लक्ष्य वह रखा है, उसकी वजह भी उसे पता होना चाहिए. अगर वह मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग या मेडिकल करना चाहता है? तो क्यों करना चाहता है? जिंदगी का कोई भी फैसला बाहरी दिखावा में आकर नहीं लें. सबसे अहम बात यह है कि आप खुद का मूल्यांकन करें कि आप इस क्षेत्र में क्यों जाना चाहते हैं? क्या उस क्षेत्र में जाने की पात्रता आपमें है. जब आपने एक बार लक्ष्य को निर्धारित कर लिया तो फिर उसे पाने के लिए पूरे दमखम के साथ लग जाय.
असफलता से नहीं घबड़ाएं
डॉ.संजय अग्रवाल कहते हैं-जब आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए कोशिश कर रहे होते हैं, तो कई बार असफलता भी मिलती है. अधिकतर लोग इस शुरूआती असफलता से घबड़ाकर अपने लक्ष्य से पीछे हट जाते हैं. लेकिन यह सही नहीं है. प्रयास यानि कोशिश जारी रखनी चाहिए, क्योंकि कोई भी असफलता स्थायी नहीं होती. आप जिंदगी में जितनी भी परीक्षाएं देते हैं, उसमें से कई में सफल और कई में असफल रहते हैं. सारे रिजल्ट टेम्पोरेरी होते हैं.
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