उदित वाणी जमशेदपुर : कदमा मंडल क्षेत्र में शनिवार को बंग समाज के तत्वावधान में एक बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें कदमा मंडल के अध्यक्ष द्विपाल बिस्वास के नेतृत्व में बंगाली समाज के हकों और उनके सांस्कृतिक प्रतीकों को हटाने पर गहरी नाराजगी प्रकट की गई। इस विरोध प्रदर्शन का उद्देश्य न केवल बंगाली समुदाय के प्रति बढ़ते अन्याय को उजागर करना था, बल्कि बंगाली क्रांतिकारियों की स्मृति को सम्मानित करते हुए उनके योगदान को सुरक्षित और संरक्षित रखने की अपील भी करना था। बंगाली समाज ने अपनी संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने के साथ-साथ उनके अधिकारों की बहाली की आवश्यकता को भी रेखांकित किया।
इस आयोजन के केंद्र में कदमा मंडल में स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का मुद्दा प्रमुख था, जिसे कुछ समय पहले क्षेत्र से हटा दिया गया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस न केवल बंगाली समाज के महानायक हैं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता भी हैं, जिनका योगदान किसी भी प्रकार से विस्मृत नहीं किया जा सकता।
नेताजी की प्रतिमा को हटाए जाने से बंगाली समाज में गहरा असंतोष है, और इसी असंतोष को व्यक्त करते हुए वक्ताओं ने यह स्पष्ट किया कि नेताजी की मूर्ति को उसी स्थान पर, पूर्व सम्मान के साथ पुनः स्थापित किया जाना चाहिए। इस प्रतिमा को क्षेत्र में वापस लगाकर नेताजी के प्रति बंगाली समाज की श्रद्धा को बहाल करने की मांग की गई, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ नेताजी की विचारधारा और स्वतंत्रता संग्राम में उनके बलिदानों को स्मरण कर सकें।
बैठक में एक अन्य गंभीर मुद्दा 80 वर्षीय वृद्ध महिला पूर्णिमा बोस का भी सामने आया, जिनकी जमीन को चार महीने पहले प्रशासन द्वारा छीन लिया गया था। बोस के पास कानूनी तौर पर भूमि का कोई दस्तावेज़ी अधिकार नहीं था, इसके बावजूद यह जमीन उनके लिए आजीविका का साधन थी और वह इस पर पिछले कई वर्षों से आश्रित थीं। बंग समाज ने पूर्णिमा बोस की उम्र और स्थिति को देखते हुए मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की अपील की और उनके भूमि अधिकार को बहाल करने की मांग की।
वक्ताओं का कहना था कि पूर्णिमा बोस जैसी वरिष्ठ महिला की भूमि इस प्रकार जबरन छीन लेना प्रशासन की असंवेदनशीलता को दर्शाता है और इस मामले में न्याय होना चाहिए। बंग समाज के नेताओं ने प्रशासन से अपील की कि वे इस मामले को गंभीरता से लेकर बोस की भूमि वापस लौटाएं और उन्हें सम्मानपूर्वक उनके अधिकारों की पुनर्स्थापना की जाए।
इसके अलावा, कदमा मंडल के मुख्य बाजार चौक का नाम, जो पहले ‘असीम महतो चौक’ था और जो स्थानीय नेता असीम महतो का प्रतीक माना जाता था, को भी एक महीने पहले प्रशासन द्वारा हटा दिया गया था। यह चौक न केवल असीम महतो की यादगार है, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक पहचान का प्रतीक है।
स्थानीय लोगों ने इस चौक का नाम और प्रतीक फिर से बहाल करने की मांग की, ताकि समुदाय की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को सुरक्षित रखा जा सके। बंग समाज ने इस बात पर जोर दिया कि इस चौक का नाम बदले बिना पुनः स्थापित किया जाए, ताकि समुदाय की भावनाओं का सम्मान किया जा सके और असीम महतो की स्मृति को जीवित रखा जा सके।
इसके अलावा कदमा मंडल क्षेत्र में नील सरोवर का मुद्दा भी प्रमुखता से उठाया गया। यह भूमि एक महिला सुनीता महतो की थी, जो उनके लिए एकमात्र संपत्ति थी, किंतु आठ महीने पहले प्रशासन ने बिना किसी पूर्व सूचना के इसे अधिग्रहित कर लिया। नील सरोवर सुनीता महतो और उनके परिवार के लिए जीवनयापन का एकमात्र साधन था, और इस भूमि के अधिग्रहण से उनका जीवन यापन संकट में पड़ गया है।
विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले बंगाली समाज के सदस्यों ने मांग की कि सुनीता महतो को उनकी भूमि वापस की जाए, जिससे उनकी आजीविका बहाल हो सके। वक्ताओं ने कहा कि बिना सूचना और उचित मुआवजा दिए किसी भी नागरिक की भूमि का अधिग्रहण करना संविधान और मानवीय अधिकारों का उल्लंघन है।
यह न केवल असंवैधानिक है, बल्कि किसी भी समुदाय के प्रति अन्याय का प्रतीक भी है। इस प्रकार की घटनाओं से समाज में निराशा और असुरक्षा की भावना बढ़ती है, और इसे समाप्त करने के लिए प्रशासन को शीघ्र कदम उठाने चाहिए।
विरोध प्रदर्शन में आए लोगों ने इस बात पर भी जोर दिया कि बंगाली समाज अपनी सांस्कृतिक धरोहर, पहचान और गौरव को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। वक्ताओं ने कहा कि बंगाली क्रांतिकारियों और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महापुरुषों की प्रतिमाओं और प्रतीकों को हटाकर बंगाली समाज के सम्मान और अस्मिता को चुनौती दी जा रही है।
बंग समाज के नेताओं ने स्पष्ट किया कि वे अपने समाज के प्रतीकों और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए एकजुट हैं और किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ खड़े रहेंगे। उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया कि वे बंगाली समाज के प्रतीकों को सुरक्षित रखें और इस समुदाय के प्रति किसी भी प्रकार की अन्यायपूर्ण कार्रवाई से बचें।
इस में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए, जिनमें बच्चे, वृद्ध, महिलाएँ, और युवा शामिल थे। सभी ने एकजुट होकर समाज के हितों की रक्षा के लिए आवाज उठाई। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि बंग समाज अपने इतिहास और अपने क्रांतिकारी नायकों के प्रति गहरी श्रद्धा रखता है, और इस प्रकार के घटनाओं के माध्यम से उनके अधिकारों की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए।
बंग समाज ने प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो भविष्य में और भी बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे।
समाज के सदस्यों ने कहा कि बंगाली क्रांतिकारियों के योगदान को भुलाना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। सुभाष चंद्र बोस, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान विभूतियों का जीवन और उनका आदर्श आज भी समाज को प्रेरणा देता है।
वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि समाज इन प्रतीकों को पुनर्स्थापित किए बिना चैन से नहीं बैठेगा और जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे संघर्ष करते रहेंगे।
इस विरोध प्रदर्शन के माध्यम से बंग समाज ने अपनी शक्ति, एकता और साहस को प्रदर्शित किया। समाज ने प्रशासन से अपनी मांगों को तुरंत मानने का आग्रह किया और अपनी पहचान और गौरव को सुरक्षित रखने की दिशा में इस संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया।
बंगा समाज के तरफ द्वीपल बिस्वास ने कहा, “बंगाली समाज के प्रतीक और संस्कृति हमारी पहचान हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का प्रतीक हटाना असहनीय है; इसे तुरंत बहाल किया जाए। पूर्णिमा बोस और सुनीता महतो जैसे कमजोर समुदाय के सदस्यों की जमीनें जब्त करना अन्यायपूर्ण और अमानवीय है। उनकी भूमि लौटाई जाए।” असीम महतो चौक के नाम को बहाल करने की मांग करते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि मांगें पूरी न होने पर बड़ा आंदोलन होगा।
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