उदित वाणी जमशेदपुर : टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड (टीएसयूआईएसएल) की बिजली दर बढ़ाने के मसले पर झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन न्यायाधीश अमिताभ कुमार गुप्ता और उसके दो सदस्यों अतुल कुमार और महेंद्र प्रसाद के समक्ष हुई सुनवाई में चैंबर ऑफ कामर्स का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और अधिवक्ता ऋषभ रंजन ने किया.
उन्होंने आयोग को बताया कि टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड के प्रस्ताव में सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि यह कंपनी टाटा स्टील की ही शत प्रतिशत सहायक कंपनी है, जो टाटा स्टील से बिजली खरीदती है. उन्होंने सबसे पहलेवैधानिक सवाल उठाते हुए कहा कि टाटा स्टील न तो बिजली की उत्पादक है न वितरण करती है. तब यह कंपनी इलेक्ट्रिसिटी एक्ट की धारा 14 के तहत सालों से लाइसेंसधारी किस आधार पर है?
उन्होंने कहा कि टाटा स्टील को इलेक्ट्रिसिटी एक्ट की धारा 14 के तहत मिला लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निरस्त होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर टाटा स्टील खुद वितरण करना चाहती है, तब टाटा स्टील यूटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड का लाइसेंस रद्द होना चाहिए.
श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने टाटा की तीनों कंपनियों का एन्युअल रिवेन्यू रिटर्न देखा है उसके अनुसार टाटा स्टील, टाटा पावर से 3.72 प्रति यूनिट बिजली खरीदती है और बिना कोई सेवा दिए उसे 4.82 प्रति यूनिट की दर से टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड को बेच देती है. इससे उसे 1.10 पैसे का सीधा लाभ है.उन्होंने आगे कहा कि तीनों कंपनियां, टाटा ग्रुप की हैं. ऐसे में टाटा स्टील जो एक इंटरमीडियरी की भूमिका में है,
उसे हटाकर बाकी दोनों कंपनियों के एन्युअल रिवेन्यू रिटर्न की कॉस्ट अकाउंटिंग रिकार्ड रूल्स के अनुसार जांच करनी चाहिए और गैरवाजिब कॉस्ट को हटाकर समेकित कॉस्ट सीट बनानी चाहिए, तभी बिजली का सही मूल्य निर्धारण हो सकेगा.
टाटा स्टील यूआईएसएल के पक्ष को गलत बताया उन्होंने इलेक्ट्रिसिटी एक्ट की धारा 61 का उल्लेख करते हुए कहा कि टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड द्वारा जो रिप्रेजेंटेशन दिया गया है, वह धारा 61 के प्रावधानों के अनुसार नहीं है और इसमें गैरवाजिब कॉस्ट भी जोड़े गये है ताकि ये अपनी बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव को जायज ठहरा सके.
अधिवक्ता ने कहा कि टाटा स्टील यूटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड को जो सरकारी सब्सिडी मिली है उसका प्रस्ताव में कहीं जिक्र नहीं है. उन्होंने आगे बताया कि फिस्क्ड चार्जेस घटना चाहिए, जबकि ये बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि फिक्सड चार्जेज और फ्यूअल सरचार्ज बढ़ाने की टाटा स्टील यूटिलिटीज एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड की जो मांग है वह बिल्कुल गलत है क्योंकि उसे जायज ठहराने का इनके पास वजह नहीं है.
उन्होंने एल आई सी बनाम एस्कॉर्ट्स (1986) मामले का हवाला देते हुए आगे कहा कि फ्रॉड के मामले में आयोग तीनों कंपनियों के कॉरपोरेट के फर्जी आवरण को हटा कर तीनों कंपनियों को एक मान कर इसके कॉस्ट स्ट्रक्चर को समेकित कर सकती है और अगर ऐसा किया गया तो बिजली की जो दर अभी है वह भी कम हो जायेगी.
उन्होंने आयोग के समक्ष अपना लिखित हस्तक्षेप प्रस्तुत किया और अपना पूरक लिखित हस्ताक्षेप दायर करने की अनुमति भी मांगी. आयोग के सदस्यों की निष्पक्षता पर अधिवक्ता अखिलेश ने बताया कि आयोग के सदस्यों द्वारा खुलेआम टाटा स्टील और इसकी सहयोगी कंपनियों की तारीफ करना आयोग की निष्पक्षता को कटघरे में खड़ा करता है.
आयोग को बताया गया कि टाटा स्टील तथाकथित लीज की शर्तों के अनुसार बिजली और पानी का जमशेदपुर में मुनाफे का व्यवसाय नहीं कर सकती, पर टाटा स्टील ने टाटा स्टील यूटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड बनाकर इसे मुनाफे का धंधा बना दिया.
उन्होंने ये भी कहा कि टाटा स्टील यूटिलिटीस एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज लिमिटेड बिजली और पानी की आपूर्ति के लिए शहर में गैरकानूनी तरीके से बिल्डरों को अपना एजेंट बनाकर रखा है जो उपभोक्ताओं से मनमाने पैसे वसूलते है और मीटर आधारित बिल भी नहीं देते. उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ी तो इस जन सुनवाई के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा.
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