अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को जानेवाला था विमान, अमेरिका रख रहा करीबी नजर
उदित वाणी,वाशिंगटन/मॉस्को: अमेरिका ने कहा है कि सैन फ्रांसिस्को आने वाली एअर इंडिया की एक उड़ान के रूस के उत्तर-पूर्वी शहर मगादान में आपात स्थिति में उतरने के बाद वह स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए है.टाटा समूह के स्वामित्व वाली एअरलाइन ने मंगलवार शाम एक बयान में कहा था कि उड़ान एआई173 ने दिल्ली से उड़ान भरी थी और इंजन में गड़बड़ी आने के बाद इसे मंगलवार को मगादान में उतारा गया.बोइंग 777-200 एलआर विमान में 216 यात्री और चालक दल के 16 सदस्य सवार थे. विमान को सुरक्षित रूप से उतारा गया.हवाई अड्डे के प्रवक्ता ने रूस की आधिकारिक समाचार एजेंसी स्पूतनिक से कहा कि सभी यात्री विदेशी नागरिक हैं, जिनमें 40 से अधिक अमेरिकी नागरिक हैं और कई लोग कनाडा के नागरिक हैं.रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास की खबर के अनुसार, ”विमान का निरीक्षण करने के बाद विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आगे की यात्रा के लिए एक अन्य विमान की जरूरत है.ÓÓ इस बीच, एअर इंडिया ने बुधवार को भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं के साथ एक वैकल्पिक उड़ान मगादान भेजी, जो वहां फंसे यात्रियों को सैन फ्रांसिस्को ले जाएगी.एअरलाइन ने कहा कि वैकल्पिक उड़ान सभी यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को आठ जून को सैन फ्रांसिस्को ले जाएगी.इसने कहा कि एअरलाइन की एक टीम भी गई है जो यात्रियों एवं चालक दल की जरूरी सहायता करेगी.स्पूतनिक की खबर में मगादान क्षेत्र के परिवहन मंत्री एलेक्सी सिरोपास के हवाले से बताया गया है कि सभी यात्रियों को हवाई अड्डे के पास एक स्कूल में रखा गया है, जबकि छोटे बच्चों के साथ यात्रा कर रहीं महिलाओं को शहर के एक मेडिकल कॉलेज के ‘डोरमेटरीÓ में रखा गया है.अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उप-प्रवक्ता वेदांत पटेल ने मंगलवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा, ”हमें अमेरिका आ रहे एक विमान के आपात स्थिति में रूस में उतरने के बारे में जानकारी मिली है. हम स्थिति पर करीबी नजर रख रहे हैं.ÓÓउल्लेखनीय है कि बंदरगाह शहर मगादान, पूर्व सोवियत संघ में स्टालिन के शासन काल में राजनीतिक दमन के लिए कुख्यात रही सरकारी एजेंसी गुलाग का मुख्य ट्रांजिट बिंदु था. गुलाग श्रम कारावास संचालित करती थी.मगादान, मॉस्को से करीब 10,167 किलोमीटर की दूरी पर है. मॉस्को से वायु मार्ग से वहां पहुंचने में करीब सात घंटे 37 मिनट का वक्त लगता है.गुलाग कैदियों को कोलयमा सोने की खान में काम करने के लिए ले जाती थी और वहां ले जाए जाने के दौरान हजारों लोगों की रास्ते में मौत हो गई थी.
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