टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के नेतृत्व में 12 पर्वतारोहियों ने किया है एवरेस्ट फतह, उनकी कहानी जानकर हो जाएंगे हैरान
अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस पर विशेष
संजय प्रसाद
जब आप जिंदगी में कभी हार रहे हो तो एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहियों को याद कर लेना, जिन्होंने तमाम मुश्किलों और चुनौतियों के बावजूद कभी गिव अप नहीं किया. उन्होंने बताया कि जिंदगी में कुछ भी असंभव नहीं है. अगर आपमें कुछ गुजरने की चाहत है. आज से ठीक 70 साल पहले 29 मई 1953 को न्यूजीलैंड के सर एडमंड हिलेरी और नेपाल के तेनजिंग नोर्गे शेरपा ने माउंट एवरेस्ट को पहली बार फ़तह कर दुनिया को यह संदेश दिया था कि जिंदगी में कुछ भी असंभव नहीं है. वह चाहे जिंदगी की चढ़ाई हो या फिर पहाड़ की चढ़ाई. इतिहास के पन्नों पर नई इबारत लिखने के लिए 29 मई को अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस मनाया जाता है. नेपाल ने 2008 में इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया, जब प्रसिद्ध पर्वतारोही हिलेरी का निधन हुआ था.
यह दिन हमें बताता है कि कुछ भी असंभव नहीं है-हेमंत
टाटा स्टील खेल विभाग और एडवेंचर फाउंडेशन के प्रमुख हेमंत गुप्ता कहते हैं-यह दिन हमें बताता है कि जिस एवरेस्ट पर चढ़ना मानव के लिए असंभव माना जाता था, उस एवरेस्ट पर सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने चढ़ाई कर असंभव पर संभव की नई कहानी लिखी. वह भी उस वक्त, जब पर्वतारोहण के लिए न तो आज की तरह सुविधाएं और उपकरण थे और न ही क्लाइंबिंग का कोई कल्चर था. बकौल हेमंत गुप्ता, जिस तरह से कोई पहली बार चांद पर गया, उसी तरह से एवरेस्ट की चढ़ाई भी थी. इसके बाद माउंटेनियरिंग के बारे में दुनिया ने जाना एवरेस्ट के दरवाजे दुनिया के लिए खुले.
1965 में कर्नल अवतार चीमा ने किया था एवरेस्ट फतह
भारत में पर्वतारोहियों के एक दल ने 20 मई 1965 में पहली बार एवरेस्ट फतह किया था. इस दल में लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा और नवांग गोम्बू शेरपा ने माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की. लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय थे. इसी साल एक भाई-बहन ने एवरेस्ट फतह कर देश का नाम रौशन किया. उनका नाम हैं- सोनम ग्यात्सो और सोनम वांग्याल. वैसे, माउंट एवरेस्ट पर भारतीयों द्वारा चड़ाई करने का पहला प्रयास 1960 में ही किया गया था. 1965 में कप्तान एम एस कोहली के नेतृत्व में एक दल शिखर पर पहुंचने वाले पहले भारतीय थे. 1965 और 2018 के बीच 422 भारतीयों ने कुल 465 प्रयास किए. इनमें से 29 ने शिखर पर 43 बार प्रयास किया हैं. भारत की 74 महिलाओं द्वारा 81 प्रयास किए गए हैं और 4 महिला द्वारा शिखर पर 7 बार प्रयास किए गए हैं.
टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के 12 पर्वतारोहियों ने किया एवरेस्ट फतह
टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के अब तक 12 पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट फतह किया है. 1984 में एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेन्द्री पॉल थी. इनके अलावा और 11 पर्वतारोही है. अभी कुछ दिन पहले ही 23 मई 2023 को टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) की प्रमुख पर्वतारोही और वरिष्ठ प्रशिक्षक अस्मिता दोरजी (उम्र 39) ने एवरेस्ट फतह कर अपनी गुरू बछेन्द्री पाल को शानदार गुरू दक्षिणा दी है. ठीक 39 साल पहले आज ही के दिन 23 मई 1984 को एवरेस्ट फतह कर बछेन्द्री पॉल देश की पहली महिला पर्वतारोही बनी थी. यह भी इत्तफाक था कि जिस साल बछेन्द्री पाल ने एवरेस्ट फतह किया था, उसी साल अस्मिता दोरजी का जन्म हुआ था.
टीएसएएफ के एवरेस्टर्स के नाम हैं
नाम साल4
1.बछेन्द्री पाल 1984
2.प्रेमलता अग्रवाल 2011
3. आरएस पॉल, बिनिता सोरेन और मेघलात महतो 2012
4. अरूणिमा सिन्हा और सुसेन महतो 2013
5.हेमंत गुप्ता 2017
6.संदीप तोलिया, स्वर्णलता दलाई और पूनम
2018
7. अस्मिता दोरजी 2023
बछेन्द्री पाल के बाद 27 साल लग गये एवरेस्ट फतह करने में
टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के तहत 1984 में बछेन्द्री पाल मैम ने एवरेस्ट फतह किया था. इसके बाद 2011 में शहर की प्रेमलता अग्रवाल ने एवरेस्ट फतह कर नई कहानी लिखी. प्रेमलता अग्रवाल की यह चढ़ाई इसलिए एक मिसाल थी क्योंकि उन्होंने 47 साल की उम्र में यह समिट किया था. उस वक्त तक वह दो बच्चों की मां थी. यही नहीं टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के तहत एवरेस्ट फतह करने वाली अरूणिमा सिन्हा की कहानी और भी प्रेरक है. उन्होंने एक पैर की बदौलत यह करिश्मा कर दिखाया. एक पैर से एवरेस्ट फतह करने वाली अरुणिमा ने कहा-अक्षमता हमारी सोच में होती है. उन्होंने कभी माना ही नहीं कि उनके पैर नहीं है. 12 अप्रैल 2011 को लखनऊ से दिल्ली जाते समय उसके बैग और सोने की चेन खींचने के प्रयास में कुछ अपराधियों ने बरेली के निकट पदमवाती एक्सप्रेस से अरुणिमा को बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण वह अपना पैर गंवा बैठी थी. एक पैर गंवा चुकने के बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया.
हेमंत गुप्ता ने इंजीनियरिंग छोड़ माउंटेनियरिंग को करिअर बनाया
हेमंत गुप्ता ने आईआईटी मुंबई से इंजीनियरिंग की. मगर माउंटेनियरिंग को करिअर बनाया. 2015 में जब एवरेस्ट की चढ़ाई कर रहे थे तो नेपाल में भूकंप आ गया और उनके सारे साथी मारे गये. लेकिन हेमंत डरे नहीं और न ही हार मानी.
2017 में एक बार फिर हौसले को उड़ान दी और एवरेस्ट को फतह किया.
2019 में टाटा स्टील ने दस एवरेस्टर्स को किया था सम्मानित
टाटा स्टील स्टील फाउंडेशन ने 2019 में एसएनटीआई सभागार बिष्टुपुर में आयोजित एक समारोह में टीएसएएफ के उन दस एवरेस्टर्स को सम्मानित किया गया था, जिन्होंने बछेन्द्री पॉल के नेतृत्व में एवरेस्ट फतह किया. इस समारोह में खुद बछेन्द्री पाल मौजूद थी. नो माउंटेन टू हाई नामक इस कार्यक्रम के दौरान एक पैनल डिस्कशन भी आयोजित किया गया था, जिसमें इन पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट चढ़ाई के अपने अनुभव शेयर किए थे. राजेन्द्र सिंह पाल ने बताया कि कैसे चढ़ाई के दौरान उनके ऑक्सीजन खत्म हो गये थे. तो अरूणिमा सिन्हा ने अपनी चढ़ाई का श्रेय बछेन्द्री पाल मैम को दिया और कहा कि अगर मैम मुर्दा को भी डांट दे तो वह उठ खड़ा हो जाए. बिनिता सोरेन ने बताया कि पहाड़ पर चढ़ने से ज्यादा उतरना मुश्किल होता है. सुशेन ने कहा कि एवरेस्ट की चढ़ाई में डिसिजन मेकिंग की भूमिका काफी होती है. स्वर्णलता ने बताया कि जब उनका शेरपा गुम हो गया था वह डेड बॉडी से पानी मांग रही थी. पूनम राणा ने बताया कि बछेन्द्री पाल मैम के पास नौकरी मांगने गई थी, मगर उन्होंने एवरेस्ट फतह करा दिया. मेघलाल ने कहा कि बछेन्द्री पाल मैम के नेतृत्व में फेल होने की संभावना बहुत कम होती है. संदीप टोलिया ने बताया कि दूसरे के सिलिंडर से ऑक्सीजन लेकर एवरेस्ट फतह किया. प्रेमलता अग्रवाल ने अपने जज्बे को बताया-या तो एवरेस्ट पर जाना है या फिर भगवान के घर. जबकि हेमंत गुप्ता ने बताया कि आईआईटी से पढ़ाई कर ऐसे पेशे में आना पागलपन था. मेरे लिए एवरेस्ट फतह करना आसान था, लेकिन मम्मी को मनाना मुश्किल.
एवरेस्ट पर चढ़ाई की खबर तीन दिन बाद दुनिया को पता चली
29 मई 1953 को एवरेस्ट फतह की खबर दुनिया को तीन रोज बाद 2 जून 1953 को दुनिया को लगी. इस अभियान की सफलता की खबर को बेहद गोपनीय रखा गया और 2 जून को महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के राज्याभिषेक दिवस पर “रानी को उपहार” के रूप में घोषित किया गया. इस बारे में कोडेड संदेश नेपाल के काठमांडू में ब्रिटिश उच्चायोग को भेजा गया था, जहां से इसे लंदन भेज दिया गया था. महारानी एलिजाबेथ को 1 जून को सफल एवरेस्ट अभियान के बारे में पता चला.
जिंदगी की लड़ाई को आसान बनाती है पहाड़ की चढ़ाई
टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के प्रमुख हेमंत गुप्ता कहते हैं कि जिंदगी की लड़ाई को आसान बनाती है पहाड़ की चढ़ाई. जो क्लाइंबिंग करता है, उसमें चुनौतियों का सामना करने का साहस होता है. वह कम संसाधन में बेहतर टीम वर्क और फोकस के साथ अपना लक्ष्य हासिल करता है. यही नहीं पहाड़ की चढ़ाई यह भी बताती है कि आपको गिव अप नहीं करना है. कई ऐसी स्थिति आती है, जब आप निराश हो जाते हैं लेकिन एक क्लाइंबर कभी टूटता और झूकता नहीं है. वह एवरेस्ट को अपनी कदमों में लाता है.
उदित वाणी टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।