उदित वाणी, कोलकाता: आरजी कर दुष्कर्म-हत्या मामले में कोर्ट ने दोषी संजय रॉय को उम्रकैद की सजा सुनाई है. साथ ही 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. सुनवाई के दौरान जज ने संजय रॉय से कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप और साबित हुए तथ्य उन्हें पहले ही बताए जा चुके हैं.
West Bengal’s Sealdah court pronounces life imprisonment to convict Sanjay Roy in RG Kar rape-murder case. The court also imposes a fine of Rs 50,000 pic.twitter.com/pPa43LPuKY
— ANI (@ANI) January 20, 2025
आरोपी का पक्ष: निर्दोष होने का दावा
आरोपी संजय रॉय ने अदालत में कहा, “मैंने कुछ नहीं किया है, न दुष्कर्म और न ही हत्या. मुझे झूठा फंसाया गया है. मैं निर्दोष हूं. मुझसे जबरन दस्तखत कराए गए हैं.”
सीबीआई का तर्क: फांसी की सजा की मांग
सीबीआई ने मामले में तर्क दिया कि कोलकाता की इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था. एजेंसी ने संजय रॉय को मृत्युदंड देने की अपील की थी. 18 जनवरी को कोर्ट ने संजय रॉय को दोषी करार दिया था.
कानूनी प्रावधान
दोषी को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 64, धारा 66 और धारा 103(1) के तहत सजा सुनाई गई. इन धाराओं के तहत अधिकतम आजीवन कारावास या मौत की सजा का प्रावधान है.
मां की प्रतिक्रिया: दर्द और नियति का स्वीकार
दोषी संजय रॉय की मां मालती रॉय ने कहा, “यदि मेरा बेटा दोषी है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए, चाहे वह फांसी ही क्यों न हो. मैं अकेले में रोऊंगी, लेकिन उसकी सजा को नियति मानकर स्वीकार करूंगी.”
मालती रॉय ने यह भी कहा, “मैं एक महिला और तीन बेटियों की मां हूं, इसलिए डॉक्टर की मां के दर्द को समझ सकती हूं.”
आखिर क्यों बना संजय रॉय मुख्य आरोपी?
संजय रॉय एक सिविल वॉलंटियर था, जो कोलकाता पुलिस के साथ काम करता था. पीड़िता का शव मिलने के एक दिन बाद यानी 10 अगस्त को उसे गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने उसके गले में लटके ब्लूटूथ इयरफोन और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उसे आरोपी बनाया.
सीबीआई को सौंपी गई जांच
कलकत्ता हाई कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी. कोर्ट ने अपराध के बाद राज्य पुलिस और सरकार के रवैये पर सख्त टिप्पणी की थी.
पूर्व प्रिंसिपल और अधिकारी की गिरफ्तारी
सीबीआई ने सबूत नष्ट करने के आरोप में आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और ताला पुलिस स्टेशन के अधिकारी अभिजीत मंडल को गिरफ्तार किया था. हालांकि, आरोपपत्र समय पर न दाखिल करने के कारण दोनों को जमानत पर रिहा कर दिया गया.
क्या इस फैसले से होगा न्याय?
इस मामले ने न केवल देश की न्याय प्रणाली को, बल्कि समाज की संवेदनशीलता को भी सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है. क्या यह फैसला पीड़िता के परिवार को न्याय दिला पाएगा?
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