कमीशन का खेल जिले के सभी पंचायतों में जारी
उदित वाणी कांड्रा : पंचायत स्तरीय विकास योजनाओं के कार्यान्वयन में लाभुक समिति की सरकारी अवधारणा को हासिये में रखकर कागजी छद्म समिति (ठेकेदार) के माध्यम से काम करवाने का सरायकेला-खरसावां जिला के लगभग सभी पंचायतों में बढ़ते चलन ने भ्रष्टाचार की मिट्टी में ठेकेदार-पंचायत सदस्य-अफसरों की तीकड़ी ने इतनी गहराई तक जड़ें जमा ली है कि एक जांच की आंच में झारखण्ड सुलगने लगेगा।
झारखंड राज्य में लुट- खसोट (भ्रष्टाचार) के मामले इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। और ईडी के द्वारा कड़ी कार्रवाई की जा रही है। कई आईएएस अधिकारी जेल के अंदर हैं। लेकिन आपको बता दें कि इस तरह का भ्रष्टाचार खाली ऊपर स्तर में नहीं बल्कि जमीनी स्तर में भी खूब हो रहा है। झारखंड में पंचायत चुनाव काफी लंबे अंतराल के बाद हुआ। जिससे क्षेत्र के जनमानस में काफी खुशी की लहर थी। और लोगों की सोच थी कि अब क्षेत्र में विकास की गंगा बहेगी। लेकिन इसके विपरीत जनप्रतिनिधि और प्रखंड और पंचायत स्तर के पदाधिकारी,कर्मचारियों द्वारा भ्रष्टाचार का एक नया प्रोपगेंडा तैयार किया है। पंचायत स्तर में जो भी योजना आता है उसका चयन ग्रामसभा के माध्यम से किया जाना है। साथ ही चयनित योजना की स्वीकृति प्रदान होते ही जिस वार्ड में कार्य स्वीकृत प्रदान हुई है। ग्राम सभा बुलाकर ग्रामप्रधान की अध्यक्षता में पंचायत की मुखिया और वार्ड सदस्य उपस्थिति में योजना का संचालन करने हेतु लाभुक समिति का गठन किया जाता है। जिसमें अध्यक्ष और सचिव सहित पांच निगरानी सदस्य होते हैं। इंजीनियर द्वारा बनाए गए एस्टीमेट का पालन करते हुए लाभुक समिति को कार्य करना होता है। लेकिन अब पंचायत प्रतिनिधि,प्रखंड और पंचायत कर्मचारियों की मिलीभगत से इसी की परिभाषा कुछ अलग कर दी गई है। अब ग्राम सभा किया जाता है लेकिन ग्राम प्रधान की उपस्थिति नहीं होती है। सिर्फ और सिर्फ खानापूर्ति करते हुए ग्रामसभा किया जाता है। और ग्राम प्रधान के घर ग्राम सेवक जाकर ग्राम सभा पुस्तक में ग्राम प्रधान का मोहर सहित सिग्नेचर करा लिया जाता है। कहानी यहीं नहीं खत्म होती लाभुक समिति का चयन भी मुखिया और अन्य कर्मचारी द्वारा घर बैठे ही तैयार कर लिया जाता है। आपको बता दें कि लाभुक समिति सिर्फ और सिर्फ मुखौटा ही बने रह जाते है। कार्य का निष्पादन पंचायत के बाहर के ठेकेदार (दलाल) द्वारा किया जाता है। जिससे एक मोटी रकम प्राप्त हो जाता है। इसमें मजेदार की बात यह है कि लाभुक समिति को दो-तीन हजार रुपये देकर कार्य योजना की प्राक्कलन राशि का पूरा भुगतान सप्लायर कहकर ठेकेदार को कर दिया जाता है। कहीं ना कहीं कानून की धज्जियां तो उड़ रही है। पंचायत प्रतिनिधि, सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों की मिलीभगत से कार्य योजना का स्टीमेट दुगुना तो हो रहा है। सरकारी पैसों का पूरी तरह गलत तरीके से दुरुपयोग हो रहा है। वही पंचायत में अवस्थित छोटे-छोटे ठेकेदार जो लाभुक समिति में शामिल है। वह पूरी तरह बेरोजगार होते जा रहे हैं। और आने वाले दिनों में देखना है कि पंचायत का यही हाल रहा तो ईडी जैसे महत्वपूर्ण संस्था की कार्रवाई छोटे स्तरों में भी होने लगेगी। सरायकेला खरसावां जिले के कोई एक पंचायत की कहानी नहीं है बल्कि अधिकांश पंचायत की यही कहानी है। इस पूरे खेल में जिला प्रशासन पूरी तरह मौन धारण किए हुए हैं।
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