उदित वाणी, झारखंड: झारखंड में वर्ष 1975 में शुरू हुआ भूमि सर्वेक्षण कार्य अब तक अधूरा है. इस गंभीर मुद्दे पर झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एम.एस. रामचंद्र राव की खंडपीठ ने सोमवार को सुनवाई की. अदालत ने राज्य सरकार को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि राजस्व सचिव के माध्यम से दो सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल किया जाए और यह स्पष्ट किया जाए कि राज्य में भूमि सर्वेक्षण का कार्य कब तक पूरा किया जाएगा.
यह जनहित याचिका अधिवक्ता गोकुलचंद की ओर से दाखिल की गई थी. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि सर्वेक्षण अधूरा रहने के कारण राज्य में जमीन माफिया सक्रिय हैं. जमीन के कागजातों में हेराफेरी की जा रही है और जमीन का नेचर बदलकर उसे बेचा-खरीदा जा रहा है, जिससे न सिर्फ आम जनता को नुकसान हो रहा है, बल्कि राज्य सरकार को भी बड़े पैमाने पर राजस्व की हानि हो रही है.
हाईकोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार के अनुसार, अदालत ने राज्य सरकार से यह पूछा है कि सर्वेक्षण कार्य अब तक क्यों अधूरा है और इसे पूरा करने में और कितना समय लगेगा.
गौरतलब है कि झारखंड से अलग होने के बाद बिहार ने वर्ष 2011 में ही तकनीकी कर्मियों की नियुक्ति कर सर्वेक्षण का काम लगभग पूरा कर लिया है, जबकि झारखंड में अभी भी तकनीकी कर्मचारियों की भारी कमी है. दिसंबर 2024 में हुई पिछली सुनवाई में राज्य सरकार ने अदालत को बताया था कि कुछ जिलों—जैसे लोहरदगा और लातेहार—में सर्वे का कार्य पूरा किया जा चुका है और बाकी जिलों में काम जारी है, जिसे पूरा करने में कम से कम छह महीने और लग सकते हैं.
भूमि सर्वेक्षण कार्य के धीमे पड़ने का असर राजस्व संग्रहण पर भी साफ दिख रहा है. 23 अप्रैल को राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में भू-राजस्व संग्रहण का लक्ष्य 1700 करोड़ रुपये रखा गया था, लेकिन अब तक केवल 544.81 करोड़ रुपये यानी मात्र 32 प्रतिशत ही संग्रह हो पाया है. मंत्री ने यह भी कहा था कि वे इस विषय पर जल्द ही भू-राजस्व मंत्री के साथ बैठक करेंगे.
हाईकोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीर मानते हुए अगली सुनवाई से पहले राज्य सरकार से ठोस कार्ययोजना और समयसीमा प्रस्तुत करने को कहा है.
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