रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के अस्पतालों, क्लीनिकों और नर्सिंग होम्स से उत्पन्न होने वाले बायो मेडिकल वेस्ट के निष्पादन को लेकर जिलों से रिपोर्ट नहीं मिलने पर तीखी नाराजगी जाहिर की है. चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि यह विषय जनस्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर मामला है, लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी जिलों की ओर से कोई रिपोर्ट नहीं आना सरकारी तंत्र की उदासीनता को दर्शाता है.
छह हफ्ते की मोहलत की मांग नामंजूर
राज्य सरकार की ओर से कोर्ट से छह हफ्तों का अतिरिक्त समय मांगा गया था, जिसे खंडपीठ ने ठुकरा दिया. कोर्ट ने साफ कर दिया कि अब और विलंब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. मामले की अगली सुनवाई 8 मई को निर्धारित की गई है.
25 फरवरी को जारी हुआ था निर्देश
गौरतलब है कि 25 फरवरी को हुई पिछली सुनवाई में झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के सभी 24 जिलों के उपायुक्तों को निर्देश दिया था कि वे शपथ पत्र के माध्यम से बायो वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट की स्थिति, मेडिकल वेस्ट से उत्पन्न प्रदूषण, और अस्पतालों द्वारा नियमों के अनुपालन से जुड़ी जानकारी प्रस्तुत करें.
पांच जिलों में ही प्लांट संचालित
सुनवाई के दौरान झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि वर्तमान में राज्य के केवल पांच जिलों – लोहरदगा, रामगढ़, पाकुड़, धनबाद और आदित्यपुर – में बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट संचालित हो रहे हैं. देवघर में एक और प्लांट निर्माणाधीन है. बोर्ड ने इन प्लांट्स को संचालन की स्वीकृति भी प्रदान की है.
जनहित याचिका में उठाया गया बड़ा मुद्दा
इस मामले में झारखंड ह्यूमन राइट्स कनफेडरेशन की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में मांग की गई है कि राज्य में एनवॉयरमेंटल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स को पूरी सख्ती से लागू किया जाए.
जनस्वास्थ्य पर मंडरा रहा खतरा
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य में बायोमेडिकल कचरे के उचित निष्पादन की व्यवस्था न होने के कारण आमजन के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है. अस्पतालों, नर्सिंग होम और क्लीनिक से निकलने वाला कचरा बिना किसी नियम के यदि यूं ही फेंका जाता रहा, तो यह महामारी जैसी स्थितियों को जन्म दे सकता है.
(IANS)
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