उदित अग्रवाल
कुछ मुलाकातें जीवन में इतनी गहरी छाप छोड़ जाती हैं कि उनका प्रभाव समय की सीमा से परे होता है. ऐसी ही एक छोटी किंतु अत्यंत प्रभावशाली भेंट मेरी स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज से हुई.स्वामीजी से मिलते ही उनके तेजस्वी व्यक्तित्व और आध्यात्मिक आभा का असर तुरंत मन पर हुआ. उनके चेहरे की शांति, वाणी की सरलता और दृष्टि की गहराई—सब कुछ ऐसा था मानो किसी ऋषि का साक्षात दर्शन हो गया हो. इस संक्षिप्त भेंट में जो बात सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली और प्रेरणादायक थी, वह थी उनकी अद्भुत स्मरणशक्ति.
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि उन्हें ‘उदित वाणी’ में वर्षों पूर्व—लगभग दो दशक पहले—प्रकाशित उनकी यात्राओं और साक्षात्कारों की बातें अब भी याद हैं. वे न केवल लेख और शीर्षक याद रखते हैं, बल्कि संवाद और लेखकों की भावनाएं भी. यह जानकर मैं चकित रह गया.
स्वामीजी केवल मिलते नहीं हैं, वे संवाद करते हैं. वे हर व्यक्ति से व्यक्तिगत रूप से जुडऩे का प्रयास करते हैं—नाम पूछते हैं, कार्य पूछते हैं, और यह भी जानना चाहते हैं कि वह व्यक्ति भीतर से कैसा है. उनके शब्दों में आत्मीयता होती है, और यही कारण है कि वे कुछ ही मिनटों में हृदय को छू जाते हैं. पहले मुझे लगता था कि क्या वाकई कोई ऐसा व्यक्तित्व हो सकता है जिसकी उपस्थिति मात्र से पूरे वातावरण में एक दिव्यता का प्रसार हो जाए और मन को ऐसा लगे कि किसी दूसरे लोक में आगमन हो गया हो, लेकिन स्वामीजी से मुलाकात के बाद मुझे विश्वास हो गया कि उनकी काया से एक तरह की दैवीय आभा का प्रस्फुटन होता है जो पूरे वातावरण पर अपना प्रभाव डालकर उसे अप्रतिम आनंद की अनुभूति में परिवर्तित कर देता है- स्वर्गिक आनंद की अनुभूति की मानिंद.उनके चेहरे पर गजब का तेज है और वाणी में ओज. वे जब बोलते हैं तो उनका स्वर अपनी प्रभावोत्पदकता से सम्मोहन का भाव पैदा करता है, इसलिए उनका प्रवचन सुनने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है और इस भीड़ में अंध श्रद्धा से लैस लोग नहीं होते, बल्कि जीवन के विविध क्षेत्रों में कामयाबी का शिखर छू चुकेे लोग भी स्वामीजी के चरणों में दंडवत होते हैं- दिल से, दिखावे के लिए नहीं. यह सम्मान और आदर स्वामी जी की वर्षों की साधना का प्रतिफल है.
अपने भक्तों के लिए उनके दिल में भी स्नेह का अथाह समुद्र बहता है. उनकी स्मृति जितनी विलक्षण है, उनका ज्ञान उतना ही अथाह है—एक ऐसा महासागर जिसमें उतरते जाएं तो थकें नहीं और सुनते जाएं तो मन तृप्त होता जाए. जब वे सत्य के साधकों और संतत्व की ऊँचाइयों की चर्चा कर रहे थे, तो हर शब्द जैसे आत्मा में उतरता जा रहा था. उन्होंने कहा, ”जो सत्य के मार्ग पर चलता है, उसे अंतत: कष्ट नहीं आता—वह प्रकाश से भर जाता है.” उनके इन शब्दों ने हमारे भीतर यह संकल्प और दृढ़ किया कि हम अपने पत्रकारिता धर्म में सत्य के प्रति समर्पित रहें—अपने पाठकों के प्रति सच्चे और जवाबदेह बने रहें. मैं स्वयं एक ‘मिनिमलिस्टिक जीवनशैली’ का पक्षधर रहा हूँ और जब स्वामीजी ने मुस्कुराते हुए कहा, ”सफर तभी आसान होगा जब सामान कम होगा” तो मुझे लगा मानो किसी ने मेरे विचारों को शब्द दे दिए हों.
यह वाक्य केवल एक व्यक्तिगत जीवन मंत्र नहीं, बल्कि समाज के अनेक संकटों का समाधान है- यह जलवायु परिवर्तन, मानसिक तनाव से मुक्ति, भोगवाद की दौड़ से अलग हटकर आत्मिक विकास की दिशा में बढऩे की प्रेरणा देता है.स्वामीजी के साथ बिताए गए वे कुछ ही पल एक आंतरिक क्रांति जैसे थे. उन्होंने मेरे सोचने, देखने और जीने के दृष्टिकोण को नया रूप दिया. जब भी उलझनों से घिरूंगा, उनके कहे शब्द और उनकी आत्मीय दृष्टि मुझे मार्ग दिखाएगी. स्वामी अवधेशानंद जी जैसे संत से मिलना जीवन की उस धरोहर से मिलना है, जो हर क्षण प्रेरणा देती है—शब्दों में नहीं, अनुभवों में.
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