उदित वाणी, जमशेदपुर: झारखंड सरकार अब क्षेत्रीय जनजातीय मातृभाषाओं में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है. संताली भाषा, जिसे अब आठवीं अनुसूची में स्थान मिला है, में कक्षा 1 से 8 तक शिक्षा अनिवार्य करने का निर्णय लिया गया है. यह घोषणा झारखंड सरकार के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के मंत्री रामदास सोरेन ने संथाल इंटेलेक्चुअल एसोसिएशन (ए. एस आई ए) और एलबीएसएम कॉलेज के संताली विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र में की.
आने वाले समय में शिक्षा की नई दिशा
रामदास सोरेन ने बताया कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री से अनुमति मिल चुकी है और आगामी 15 दिनों के भीतर इस पर कार्य प्रारंभ किया जाएगा. इसके अतिरिक्त, राज्य में सभी विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर (वीसी) की नियुक्ति प्रक्रिया की जानकारी दी गई. उन्होंने यह भी बताया कि रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय में जल्द ही शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी.
संताली भाषा के विकास के लिए कृतसंकल्प सरकार
रामदास सोरेन ने राज्य में भाषा और संस्कृति के संरक्षण एवं विकास की बात की. उन्होंने कहा कि राज्य के निर्माण के बाद 24 वर्षों में भाषागत विकास नहीं हुआ, लेकिन उनकी सरकार इस दिशा में सक्रिय प्रयास करेगी और सभी निर्धारित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कृतसंकल्प है. इसके अंतर्गत, उन्होंने को-ऑपरेटिव कॉलेज में लॉ कॉलेज, लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल कॉलेज में बी.एड. कॉलेज और घाटशिला कॉलेज में 300 सीटों वाले लड़कियों के छात्रावास की स्थापना की योजना साझा की.
संथाली भाषा में साहित्य और शोध को बढ़ावा
इस अवसर पर संथाली भाषा में ए. एस आई ए द्वारा लोकार्पित पुस्तक “धाड़ दिसोम” और भूगोल विभाग के डॉ. संतोष कुमार द्वारा लोकार्पित पुस्तक “अंडरस्टैंडिंग इंडिया” के लिए बधाई दी गई.
आदिवासी जीवनशैली और संस्कृति को समझने का प्रयास
सेमिनार के मुख्य संरक्षक, प्रमंडलीय आयुक्त और कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति हरि कुमार केसरी ने आदिवासी जीवनशैली, प्रकृति, पर्यावरण, औषधीय ज्ञान और लोकधर्मिता को संताली भाषा में व्यक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया. उनका मानना है कि संताली भाषा उच्च शिक्षा और शोध की कारगर भाषा बन सकती है. यह राष्ट्रीय सेमिनार उच्च शिक्षा में शोध को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है.
संताली भाषा के संरक्षण के प्रति राजनीतिक समर्थन
पोटका विधायक संजीव सरदार ने संथाली भाषा के संरक्षण और विकास को लेकर अपने विचार प्रस्तुत किए और हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया. महाविद्यालय के प्राचार्य बी. एन. प्रसाद ने भी 1 से 8 तक मातृभाषा में शिक्षा देने की व्यवस्था की सराहना की और पाठ्य-पुस्तकों के माध्यम से साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का समर्थन किया.
समारोह की महत्वपूर्ण उपस्थिति
इस सेमिनार में विभिन्न शैक्षणिक और शोध संस्थाओं के प्रमुख व्यक्ति उपस्थित थे, जिनमें गोपाल हंसदा, डॉ. रामू हेंब्रम, डॉ. धनेश्वर मांझी, डॉ. सुनील मुर्मू, रामु टुडू, डॉ. तपन कुमार खानराह, डॉ. नाकु हांसदा और अन्य कई शिक्षक और शोधकर्ता शामिल थे.
इस मौके पर शिक्षकों, छात्रों और शोधार्थियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति ने सेमिनार को एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक घटना बना दिया. इस प्रकार, यह आयोजन संताली भाषा के विकास, संरक्षण और उसकी उपयोगिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम साबित होगा.
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