उदित वाणी, जादूगोड़ा: संथाली भाषा की स्वलिखित लिपि ओलचिकी के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर पूर्वी सिंहभूम जिले के नरवा पहाड़ क्षेत्र में उत्सव का उल्लास देखा गया. मुर्गाघुटू स्थित धोरोंम अखाड़ा की ओर से आयोजित ओलचिकी शताब्दी महोत्सव के तहत आदिवासी समुदाय द्वारा भव्य मोटरसाइकिल रैली निकाली गई. इस रैली का उद्देश्य ओलचिकी भाषा के प्रचार-प्रसार और जनजागरूकता को बढ़ावा देना था.
मोटरसाइकिल रैली बनी चेतना का माध्यम
रैली डोमजूड़ी, कदमा, बाघमारा, नरवा पहाड़ और यूसीआईएल कॉलोनी होते हुए वापस धोरोंम अखाड़ा पहुंचकर सभा में परिवर्तित हुई. रास्ते भर संथाली परंपरा, वेशभूषा और नारों से वातावरण जीवंत रहा. रैली का नेतृत्व भुरका ईपिल ओलचिकी इतुन आसड़ा के सचिव लोबो मुर्मू और असेका के महासचिव शंकर सोरेन ने किया.
महापुरुषों को श्रद्धांजलि, संकल्प के साथ समारोह
रैली से पूर्व ओलचिकी लिपि के जनक स्वर्गीय पंडित रघुनाथ मुर्मू और बिंदु चादान की पूजा-अर्चना कर उनके योगदान को स्मरण किया गया. मुख्य मंच से बोलते हुए लोबो मुर्मू और शंकर सोरेन ने कहा कि मात्र 20 वर्ष की उम्र में रघुनाथ मुर्मू ने संथाली समाज को अपनी लिपि दी, जो आज हमारी अस्मिता का प्रतीक बन चुकी है.
राज्यभाषा का दर्जा देने की मांग
लोबो मुर्मू ने झारखंड सरकार से मांग की कि ओलचिकी भाषा को राज्य भाषा का दर्जा दिया जाए. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक लिपि नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत और पहचान का माध्यम है. यदि राज्य सरकार इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाती है, तो यह पूरे संथाली समाज के लिए सम्मान की बात होगी.
स्थानीय नेतृत्व और जनभागीदारी
इस समारोह में आसनवानी क्षेत्र के परगना हरिपदो मुर्मू, ग्राम प्रधान उदित कुमार हेंब्रम, बुद्धेश्वर मुर्मू, संजय हांसदा, बीरेंद्र हेंब्रम, मोहन किस्कू, सनातन मुर्मू समेत बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने भाग लिया. कार्यक्रम में समुदाय की गूंजती आवाज़ और जोश ने यह संकेत दिया कि ओलचिकी सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि भविष्य का सपना है.
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