उदित वाणी,जमशेदपुर: शहर व आसपास के इलाकों में लक्खी कोजागरी पूर्णिमा पूजा को लेकर धूम है. रविवार 9 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के दिन इस पूजा का आयोजन होगा. इसे लेकर शनिवार देर शाम तक बाजारों मे चहल पहल रही, लोगों ने जमकर खरीदारी की तो रात भर जागकर पूजा की तैयारी की. कोरोना के दो साल बाद इस पर्व पर खास रौनक देखी जा रही है. प्रतिमाओं की खूब बिक्री हुई है. इसी तरह पूजन सामग्री व फल-मिठाई बाजार में भी रौनक रही.
रविवार को आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है. इस तिथि को शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत की बूंदे बरसती हैं. शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
कोजागरी पूर्णिमा का पर्व पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड और असम में बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इस दिन लक्ष्मी जी की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन व्रत रखकर लक्ष्मी जी के साथ भगवान विष्णु की भी पूजा का जाती है. मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक पूजा करने से आर्थिक दिक्कतों से मुक्ति मिलती है और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है.
श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास
पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था. इस दिन चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है. इस तिथि को खीर का प्रसाद चढ़ाया जाता है. रात मे खीर को आसमान की नीचे रखा जाता है. इस दिन अमृत वर्षा होती है. शरद पूर्णिमा की तिथि से ही सर्दियों की शुरुआत भी मानी जाती है. शास्त्रों के अनुसार इस तिथि को चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है.
बंग समुदाय करेगा लक्खी पूजा
बंग समुदाय के सभी दुर्गा पूजा पंडालों और घर-घर में कोजागरी लक्खी पूजा की जाएगी. इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है. शुभता के लिए घरों को अल्पना और मां लक्ष्मी के पैर उकेरे जाएंगे. साथ ही, कौड़ी खेली जाएगी. मां को परमान्न (खीर), लावा, मखाना, चूड़ा, नारियल लड्डू, मौसमी फल, खिचड़ी और पांच किस्म के भाजा (तली हुई सब्जी) का भोग लगाया जाएगा.
धान से भरा घट स्थापित करने और अखंड दीया प्रज्वलित करने की भी परंपरा है. मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी भक्तों के घर आती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है, इसी कारण इसका नाम- कोजागरी लक्खी पूजा है. जो जागता है मां लक्ष्मी उसके घर जाती हैं, ऐसी लोकमान्यता है.
बुधवार के दिन बंगाली समाज के लोग बुधवार को माता लक्खी की पूजा करेंगे। वहीं दूसरी और मिथिलांचलवासी भी कोजागरी पूजा करेंगे जिसे कोजगरा भी कहा जाता है। दुर्गोत्सव का समापन होने के साथ ही बंगाली समाज में मां कोजागरी लक्ष्मी (लक्खी) की पूजा की तैयारी शुरू हो जाती है.
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