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उदित वाणी, जमशेदपुर: झारखंड हाई कोर्ट ने राइट टू एजुकेशन (आरटीई) मामले में निजी विद्यालयों की मान्यता के प्रश्न पर प्राइवेट स्कूल्स एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन (पासवा) द्वारा दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। इसमें कोर्ट ने मंगलवार को वर्ष 2019 के निजी विद्यालयों पर मान्यता के प्रश्न पर कार्रवाई न करने के पुराने आदेश को जारी (स्टे आर्डर) रखा है।
पासवा की ओर से इस केस पर वरीय अधिवक्ता ओंकारनाथ तिवारी और उनकी टीम ने इस प्रश्न पर निजी विद्यालयों का पक्ष रखते हुए कहा कि जब उच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में ही निजी विद्यालयों पर किसी तरह की पीड़क कार्रवाई पर रोक लगाई थी और स्टे जारी किया गया था, तब भी लगातार निजी विद्यालयों को शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों द्वारा मान्यता के प्रश्न पर पुनः आवेदन देने को बाध्य किया जा रहा है।
पासवा के अधिवक्ता की बातों को सुनते हुए उच्च न्यायालय ने अपने स्टे आदेश को जारी रखते हुए स्पष्ट किया कि वर्तमान समय में निजी विद्यालयों पर अगले आदेश तक मान्यता के प्रश्न पीड़क कार्रवाई नहीं करने के आदेश को बहाल रखा जाएगा। पासवा के पूर्वी सिंहभूम जिलाध्यक्ष रमन रमन झा ने इस मसले पर कहा कि निजी विद्यालयों के हितों की रक्षा करने वाली देश की सबसे बड़ी संस्था है जो झारखंड आलोक दुबे के नेतृत्व में बहुत ही सराहनीय काम कर रही है।
उन्होंने कहा की आरटीई के नाम पर मान्यता के लिए 2019 में हुए संशोधन रूपी काले कानून को निरस्त करवाने के लिए विधायक सरयू राय के माध्यम से विधानसभा में मुद्दे को उठाया गया। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी एक प्रतिनिधिमंडल मिला था जिसपर उन्होंने सकारात्मक पहल करने का आश्वाशन दिया था और आज न्यायालय के माध्यम से भी इसके खिलाफ सफलता पाई। बताते चलें कि आरटीई के नियम के अनुसार जिन निजी स्कूलों के पास अपनी जमीन नहीं है या 30 साल से अधिक समय के लिए लीज पर जमीन नहीं मिली है, उन्हें आरटीई की मान्यता नहीं दीजाएगी। आरटीई की मान्यता नहीं होने पर स्कूलों को बंद करने की चेतावनी भी शिक्षा विभाग की ओर से दी गई थी।
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