- उदित वाणी, जमशेदपुर : राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आयी जमशेदपुर लोकसभा सीट पर मतदान शुरू होने में अब 12 घंटे से भी कम समय रह गया है. लिहाजा शुक्रवार की रात तक भाजपा व झामुमो के प्रत्याशियों समेत बाकी बचे 23 अन्य प्रत्याशी और उनके चुनाव प्रबंधक या रणनीतिकार अपने आपरेशन वोट को अंतिम रूप से समीक्षा कर जरूरी कदम उठाने की कवायद कर रहे हैं. इस शहर के लेकर देहात तक वैसे लोगों में चुनाव को लेकर चर्चा जारी है जो सियासी रूप से खुद को जागरुक रखते हैं.
जमशेदपुर लोकसभा सीट शहर व ग्रामीण इलाकों के समिश्रण से बनी है. छह विधानसभा क्षेत्र इसके अंतर्गत आते हैं. इनमें जमशेदपुर पूर्व, जमशेदपुर पश्चिम पूरी तरह से शहरी क्षेत्र हैं. जुगसलाई व पोटका के कुछ इलाके शहर से जुड़े हैं. घाटशिला, बहरागोड़ा के इलाके ग्रामीण हैं.
मतदान की पूर्व संध्या तक का लोग यही चर्चा करते मिले कि वोटरों में खामोशी बरकरार है. ग्रामीण इलाकों में भी कमोबेश यही हाल है. यहां टक्कर में भाजपा के बिद्युत बरण महतो व झामुमो के समीर मोहंती ही बताए जा रहे हैं.
भाजपा को मोदी मैजिक, केंद्र सरकार के विकास कार्यों व सांसद के दो साल के कार्यकाल की सेवा के भरोसे वोट मिलने की आस है तो झामुमो समेत पूरा इंडिया गठबंधन संविधान, आरक्षण व हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी पर भाजपा को घेरते हुए महंगाई व बेरोजगारी को भी मुद्दा बनाता रहा है. इसके अलावा सांसद बिद्युत बरण महतो के खिलाफ जन भावना को भी भुनाने की जुगत भिड़ा रहा है. तो आइए जानते हैं जमशेदपुर के ग्राामीण इलाकों में कैसी दिख रही तस्वीर:
मोदी की सभा के बाद घाटशिला में नहीं चली बयार
घाटशिला : आमतौर पर यह देखा गया है कि प्रधानमंत्री की जनसभा जहां आयोजित होती है वहां भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में बयार बहने लगती है और पार्टी प्रत्याशी की जीत की संभावना बढ़ जाती है परंतु घाटशिला में ऐसी बयार बहती नहीं दिख रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विद्युत वरण महत्व के समर्थन में जनसभा की थी. मोदी ने लोगों से भाजपा को वोट देने की अपील की. सभा के दौरान नरेंद्र मोदी के द्वारा घाटशिला अनुमंडल की किसी भी समस्या का जिक्र नहीं करना और नहीं एक बार भी घाटशिला का नाम नहीं लिए जाने का लोगों पर अच्छा असर नहीं दिख रहा. घाटशिला वासी बेरोजगारी के दंश झेल रहे हैं. कंपनी 5 वर्षों से बंद है. लोगों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री के आने के बाद कुछ ना कुछ आश्वासन जरूर मिलेगा. आईसीसी कंपनी का जीर्णोद्धार का आश्वासन मिलेगा, लेकिन इस कंपनी के मैदान में सभा तो हुई लेकिन पीएम के संबोधन में आईसीसी कंपनी के विषय में एक शब्द भी नहीं था, इससे लोगों में घोर निराशा दिखी. लोगों का कहना है कि विद्युत वरण महतो ने प्रधानमंत्री को यहां की वस्तु स्थिति से अवगत नहीं कराया होगा और न ही यह बताया होगा कि सभा स्थल जमशेदपुर नहीं घाटशिला में है. जहां से राम मंदिर निर्माण के लिए कई टन तांबा गया था. उसी कंपनी के मैदान में सभा का आयोजन किया गया है, यह चौक चौराहो पर यह चर्चा का विषय बना हुआ है. विद्युत महतो के खिलाफ लोग खुलेआम टिप्पणी कर रहे हैं, उनके कार्यों की आलोचना कर रहे हैं.
बहरागोड़ा में देखते ही चर्चा में आ गए समीर
बहरागोड़ा। समीर मोहंती को झामुमो प्रत्याशी बनाए जाने के बाद ही देखते ही देखते पूरे विधानसभा क्षेत्र में चुनाव का माहौल ही बदला बदला सा नजर आने लगा है. वर्तमान परिपेक्ष में इंडिया गठबंधन प्रत्याशी समीर महंती की चर्चा हर गांव में हो रही है. इसका मुख्य कारण 2019 में विधायक बनने के पश्चात गांव के लोगों तक संपर्क बनाए रखना और उनके दुख सुख में शामिल होना है. ग्रामीण अंचलों में अगर नजर डाली जाए तो झामुमो के परंपरागत वोटरों में हेमंत सोरेन को जेल में डाले जाने के कारण विशेष सहानुभूति लहर भी देखने को मिल रही है. हालांकि भाजपा के विद्युत महतो का भी बहरागोड़ा से गहरा जुड़ाव रहा है. वे यहां से विधायक थे. इसी के बाद 2014 में सांसद बने थे. विधायक रहते उनकी सक्रियता चर्चा में रहती थी. सांसद बनने के बाद महतो का कार्य क्षेत्र बढ़ गया. इस नाते वे विधायक जैसा समय नहीं निकाल पाते हैं. इस चुनाव में विरोधी इसे ही मुद्दा बना रहे हैं.
पोटका क्षेत्र में कांटे की टक्कर
पोटका : इस इलाके में भाजपा और झामुमो में कांटे की टक्कर दिख रही है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बिद्युत महतो को पोटका से 107090 वोट मिले थे. वहीं चंपाई सोरेन को 80118 वोट मिले थे. यानी 26,982 वोट से महतो को बढ़त मिली थी. मात्र 6 माह बाद ही पोटका विधान सभा के चुनाव में संजीव सरदार को 110753 वोट मिले वहीं भाजपा की मेनका सरदार को 67643 मत मिले. यानी 43110 वोट से संजीव सरदार जीत गए. पोटका से विधायक संजीव सरदार है. वे जी जान से लगे हैं. मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन की भी विशेष नजर पोटका पर है. चुनौती का अहसास भाजपा को है। इसीलिए भाजपा ने भी पूरी ताकत झोंक दी है.
जुगसलाई में एकतरफा माहौल नहीं
पटमदा : 2019 की तरह इस बार जुगसलाई विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के लिए एकतरफा माहौल नहीं है। उसके कारणों पर गौर करें तो पहला यह कि इस बार राज्य में झामुमो गठबंधन की सरकार है एवं यहां के विधायक मगंल कालिंदी भी सत्ताधारी दल झामुमो से ही आते हैं। दूसरा कारण है कि विधायक बनने के बाद क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य करने के साथ-साथ गांव से लेकर शहर तक में सक्रिय रहकर उन्होंने लोगों के बीच अच्छी पकड़ बना ली है। तीसरा कारण है कि झामुमो से इस बार सामान्य जाति के उम्मीदवार समीर कुमार मोहंती को मैदान में उतारा गया है जिससे आदिवासी मतदाताओं के साथ-साथ सामान्य वर्ग के मतदाता भी उनसे प्रभावित दिख रहे हैं. चौथा कारण है, खतियान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले जेबीकेएसएस के पूर्व केंद्रीय महासचिव विश्वनाथ महतो का निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरना। पांचवां कारण पूर्व मंत्री सह जुगसलाई के पूर्व विधायक रामचंद्र सहिस की सक्रियता पिछली बार की तुलना में कम होना है। छठा कारण है आरक्षण पर भाजपा के खिलाफ प्रचार। सातवां कारण सांसद के प्रति एंटी एनकंबेंसी का होना। आठवां कारण है, पिछली बार की तरह राष्ट्रवाद का मुद्दा कम, महंगाई, बेरोजगारी, जीएसटी की मार से लोगों का प्रभावित होना।
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