उदित वाणी जमशेदपुर : भारतीय तेज़ गेंदबाज़ वरुण ऐरन ने रणजी ट्रॉफ़ी में झारखंड और राजस्थान के बीच खेले जाने वाला मुक़ाबला उनका अंतिम मैच होगा। वहीं सफे़ेद गेंद की क्रिकेट में अभी उन्होंने संन्यास का फ़ैसला नहीं लिया है लेकिन अगले घरेलू सीज़न से पहले वह इस संदर्भ में अपना अंतिम फ़ैसला लेंगे।
वरुण को उनकी गति के लिए जाने जाते है। 2010-11 में झारखंड की टीम विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी जीतने में क़ामयाब रही थी। इसी सीज़न वरुण को घरेलू क्रिकेट में 153 की गति से भी गेंदबाज़ी करते हुए देखा गया था। इसके बाद से ही वह राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की नज़र में थे। 2011 में वरुण को पहले वनडे में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ वनडे में डेब्यू करने का मौक़ा मिला और फिर इसी मैदान पर उन्हें वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ डेब्यू टेस्ट कैप भी दिया गया।हालांकि चोट ने वरुण को उनके करियर में हमेशा परेशान किया है। उनकी पीठ और पैर में कुल आठ स्ट्रेस फ़्रैक्चर हुए और एक सर्जरी हुई। इसका असर उनके करियर पर भी काफ़ी पड़ा और कई बार वह इसके कारण महत्वपूर्ण सीरीज़ से बाहर भी हुए। हालांकि वरुण का मानना है कि कभी और किसी भी क़ीमत पर उन्होंने अपने गति के साथ समझौता नहीं किया है। वरुण कहते हैं, “मैं 2008 से रेड बॉल क्रिकेट खेल रहा हूं। इस दौरान काफ़ी तेज़ गति से गेंदबाज़ी के कारण मुझे कई बार इंजरी का सामना करना पड़ा है। हालांकि अब मुझे अब यह समझ आ गया है कि मेरा शरीर रेड बॉल क्रिकेट में ज़्यादा देर तक मुझे उस गति के साथ गेंदबाज़ी करने की इज़ाजत नहीं देगा। इसी कारण से मैंने अभी रेड बॉल क्रिकेट को अलविदा कहने का फ़ैसला लिया है।”2014 में इंग्लैंड के दौरे पर वरुण की एक तेज़ गति से की गई बाउंसर गेंद पर स्टुअर्ट ब्रॉड को नाक में काफ़ी ज़ोर से चोट लगी थी और बाद में उन्हें उसके लिए सर्जरी भी करानी पड़ी थी। तब उनकी गेंदबाज़ी और गति की काफ़ी चर्चा हुई थी और इसे देखते हुए काउंटी क्रिकेट में भी उन्हें डरहम की टीम में मौक़ा दिया गया था। वरुण अभी भी घरेलू क्रिकेट में जब भी गेंद डालते हैं तो उनका प्रयास रहता है कि वह अपनी तेज़ गति को बरकरार रखें।वह कहते हैं, “गेंदबाज़ी करते हुए गति मेरी सबसे प्रिय चीज़ है। मैं जब भी गेंदबाज़ी करता हूं तो मेरा हमेशा प्रयास रहता है कि मैं तेज़ गति से गेंदबाज़ी करूं। तेज़ गति से गेंदबाज़ी करना मेरे लिए सबसे प्रिय काम में से एक रहा है। हालांकि आपको अपने शरीर को भी समझना होता है। जमशेदपुर में अपने परिवार और यहां के लोगों के सामने यह शायद मेरा अंतिम मैच होगा। सफ़ेंद गेंद की क्रिकेट अक्सर हम यहां नहीं खेलते तो शायद घरेलू मैदान में यह मेरा अंतिम मैच होगा। मैंने यहीं से अपना करियर शुरू किया था तो स्वभाविक रूप से मेरे लिए यह पल काफ़ी इमोशनल होने वाला है।”वरुण अपने आगे के करियर के बारे में कहते हैं कि वह अभी एमआरएफ पेस फाउंडेशन के एक स्पेशल प्रोजक्ट पर काम कर रहे हैं, जहां वह देश भर के युवा तेज़ गेंदबाज़ों का चयन कर के उनके साथ काम करेंगे और भारत को अगला सबसे तेज़ गेंदबाज़ देने का प्रयास करेंगे। वरुण ख़ुद 15 साल की उम्र से ही एमआरएफ पेस फ़ाउंडेशन का हिस्सा रहे हैं। दरअसल 2002 में बीसीसीआई ने टैलेंट रिसर्च डेवलेपमेंट ऑफ़िसर नियुक्त किया था, जिन्हें 2004 में युवा गेंदबाज़ों को ट्रायल के लिए चुनने का काम मिला था। पूरे देश में तीन या चार गेंदबाज़ों का चयन हुआ था, जिसमें से एरन एक थे। तब उन्हें डेनिस लिली की देख रेख में ट्रेनिंग दी गई थी। अब वह युवा गेंदबाज़ों को भी उसी तरह का मौक़ा दिलाने का प्रयास कर रहे हैं।
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