उदित वाणी, चांडिल: प्राचीन जयदा मंदिर के समीप स्वर्णरेखा नदी के तट पर मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित चार दिवसीय टुसू मेले में प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु जुट रहे हैं. झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में टुसू पर्व की विशेष महत्ता है. चांडिल प्रखंड के खूंटी पंचायत अंतर्गत कुर्ली मौजा स्थित जयदा मंदिर में लगने वाला यह मेला अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है.
स्वच्छता और अनुशासन का प्रतीक
यह मेला चांडिल अनुमंडल क्षेत्र का सबसे स्वच्छ और व्यवस्थित मेला माना जाता है. स्थानीय प्रशासन ने शराब बिक्री, जुआ, हब्बा-डब्बा और मुर्गा लड़ाई जैसे कृत्यों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है. हालांकि, पॉकेटमारी और मोबाइल चोरी जैसी घटनाओं में वृद्धि के कारण श्रद्धालुओं को सतर्क रहने की अपील की गई है.
टुसू की परंपरा को जीवंत बनाए रखने का प्रयास
पहले मेले में श्रद्धालु कुंवारी टुसू का विसर्जन करने के लिए टुसू लाते थे. यह परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त हो रही थी. आदिवासी कुड़मी समाज ने इसे पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया है. गुरुवार को घोड़नेगी गांव से गाजे-बाजे के साथ टुसू जुलूस निकालते हुए मंदिर परिसर में पारंपरिक नृत्य-संगीत के साथ टुसू को स्वर्णरेखा नदी में प्रवाहित किया गया.
“हमें अपनी विरासत पर गर्व है”
टुसू विदाई कार्यक्रम में गोपेश महतो ने कहा, “टुसू पर्व हमें प्रकृति और कृषि से जोड़ता है. यह हमारे पूर्वजों की विरासत को संरक्षित रखने की प्रेरणा देता है. हमें इसे जीवित रखना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी संस्कृति पर गर्व कर सकें.”
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