बछेन्द्री पॉल ने अस्मिता को बेटी की तरह पाला, टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन ने उसके सपनों को मुकाम दिया
उदित वाणी, जमशेदपुर: टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) की सीनियर इंस्ट्रक्टर 38 वर्षीय अस्मिता दोरजी बिना सप्लीमेंट्री ऑक्सीजन के एवरेस्ट (8745 मीटर) फतह कर वापस लौटी है,. ऐसा करने वाली वह भारत की पहली महिला बन गई है. हालांकि एवरेस्ट की चोटी (8848 मीटर) से 100 मीटर पहले ही उनकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा, जिस कारण वो एवरेस्ट की चोटी तक नहीं पहुंच पाई. अस्मिता ने 3 अप्रैल को अपने सफर की शुरुआत दिल्ली से की थी जहां से वह नेपाल के लुकला के लिए रवाना हुई थी. यहां से वह एवरेस्ट के बेस कैंप पहुंची. विंडो ओपन होते ही वह 11 लोगों की टीम के साथ एवरेस्ट फतह करने के लिए रवाना हो गई थी.
ऐसे किया खुद को तैयार
नेपाल के नामती बाजार स्थित तेसू गांव में जन्म लेने वाली अस्मिता दोरजी के पिता अंग दोरजी सेरपा थे. उन्हीं के साथ अस्मिता ने पहाड़ों पर चढ़ना सीखा. पिता की मौत के बाद बछेंद्री पाल ने उन्हे पाला और उसे जमशेदपुर ले आई. यहां उन्होने टीएसएएफ ज्वाइन कराया और बिना सप्लिमेंट्री ऑक्सीजन के एवरेस्ट फतह करने का सोंच लिया. इसके लिए तैयारी करते हुए 20 किलो वजन लेकर पहाड़ों की चढ़ाई करने के साथ-साथ कई किमी साइकलिंग भी करती थी.
100 मीटर पहले आंखों के समाने छाया अंधेरा
अस्मिता दोरजी ने बताया कि एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के 100 मीटर पहले ही उन्हे एवरेस्ट की चोटी दिखाई दे रही थी. सेरपा ने कहा कि यहां से आधे घंटे की चढ़ान के बाद सभी एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच जाएगे. इसी बीच उनकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा और वह चोटी पर पहुंचने के 100 मीटर पहले से ही वापस लौट आई. उन्होने कहा कि वो खुद को फिर से एक बार तैयार कर एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचेगी.
पल-पल की खबर ले रही थी टीएसएएफ
टीएसएफ के चेयरमैन चाणक्य चौधरी ने अस्मिता की इस उपलब्धि की तारीफ करते हुए कहा कि अस्मिता ने बिना सप्लीमेंट्री आक्सीजन के इतनी उंचाई को फतह किया यह बहुत बड़ी बात होती है. उन्होने बताया कि वे पल-पल की खबर रखे हुए थे. जिस दिन अस्मिता मात्र 100 मीटर पीछे रह गई थी उस सुबह उन्होने जानकारी ली थी पर सुबह 10 बजे उन्हें जानकारी मिली की अस्मिता के आंखों के सामने अंधेरा छा गया है जिस कारण वह चढ़ाई नहीं कर सकती. पहले यह सोंचा गया कि अक्सीजन की सप्लाई देकर आगे की चढ़ाई को पूरा किया जाए, पर यह निर्णय वापस ले लिया गया. अगली बार फिर से बिना सप्लीमेंट्री आक्सीजन एवरेस्ट फतह करने की तैयारी की जाएगी. टीएसएएफ अस्मिता के साथ है.
अस्मिता की चढ़ाई के अंतिम दिन
9 मई को बेस कैंप से समिट की शुरुआत की. खतरनाक खुंबू हिमपात को पार करने के बाद वह 9 मई को कैंप 2 (21,000 फीट) पर पहुंची. फिर वह 11 मई को कैंप 3 पर पहुंची और 12 मई को सुबह 11 बजे कैंप 4 यानी साउथ कॉल (26,400 फीट) पर कब्जा कर लिया. कैंप 4 में कुछ घंटों के आराम के बाद वह रात 8 बजे शिखर पर अपनी यात्रा के अंतिम चरण में थी. और अंत में 12 मई को जबरदस्त प्रयास, दृढ़ संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाने के बाद वह 13 मई को दक्षिण शिखर से लौट आई.
टीएसएएफ की पहले ही योजना थी
दोरजी को उनके मिशन में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) का सहयोग मिला. टीएसएएफ 2020 और 2021 से ही अस्मिता को माउंट एवरेस्ट पर भेजने की योजना बना रहा था. हालाँकि COVID-19 महामारी के कारण अभियान को स्थगित कर दिया गया था. टीएसएएफ ने अब तक 10 पर्वतारोहियों का समर्थन और प्रशिक्षण दिया है जिन्होंने सफलतापूर्वक माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की है. ये हैं- प्रेमलता अग्रवाल (2011), आर.एस. पाल, मेघलाल महतो, और बिनीता सोरेन (2012), अरुणिमा सिन्हा और सुसेन महतो (2013), हेमंत गुप्ता (2017), संदीप टोलिया, पूनम राणा और स्वर्णलता दलाई (2018).
जाने अस्मिता दोरजी के बारे में
अस्मिता दोरजी, मूल रूप से एक शेरपा, एवरेस्ट क्षेत्र के नामचे बाज़ार के ऊपर एक छोटे से गाँव थेसू में पैदा हुई. हालांकि पहाड़ के ऑक्सीजन उसके खून में दौड़ती है, वह 1989 में अपनी मां के निधन के बाद भारत चली गई. उनके पिता 1984 के दौरान बछेंद्री पाल के शेरपा थे और बाद में एक अन्य अभियान में उनका निधन हो गया. उसके बाद उन्हें बछेंद्री पाल ने परिवार के सदस्य के रूप में पाला. अस्मिता को 2001 में अपना मूल पर्वतारोहण पाठ्यक्रम और बाद में 2003 में उन्नत पर्वतारोहण पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए समर्थन दिया. फिर उन्हें बाहरी नेतृत्व पाठ्यक्रम और अभियानों के संचालन के लिए टीएसएएफ में एक प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था.
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