# स्टील मैन के बनाए फौलादी आधार पर आज चमक रही टाटा स्टील
# 1990 के दशक में तब की टिस्को को भीषण झंझावातों से उबारा
# मजबूत इरादों से कार्ययोजना पर अमल, संख्या बल को किया कम
# नये शब्दों से कारपोरेट जगत को कराया अवगत, आगे बन गए नजीर
उदित वाणी, जमशेदपुर: डॉ. जेजे इरानी. लौहनगरी के लोगों के इरानी साहब. अब इस दुनिया में नहीं रहे. लेकिन उनके कर्म पूरी दुनिया के कारपोरेट जगत में किसी प्रेरक शक्ति के रूप में, सीख के रूप में, उदाहरण के रूप में और अति प्रतिकूल परिस्थिति से उबरने की शक्ति के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे.
जमशेदपुर खासकर टाटा स्टील को तो आप हमेशा याद आएंगे क्योंकि आप ही के बनाए फौलादी आधार पर आज टाटा स्टील चमक रही है और यहां के निवासी दमक रहे हैं. यदि आप नहीं होते. आपके भीतर ईमानदारी का आत्मबल नहीं होता, कुछ नया करने की ठान न ली होती और कंपनी को बचाने का संकल्प न लिया होता तो संभव है कि 1990 के दशक में वैश्विक चुनौतियों के बीच तब टिस्को (अब नाम टाटा स्टील) जिस झंझावात में फंसी थी.
शायद सही तरीके से ऊबर नहीं पाती. लेकिन यह तो आपकी दूरदर्शिता, दृढता और पेशेवर ईमानदारी थी जो कंपनी को सही रास्ते पर चलने का आधार बनाया और तमाम चुनौतियों का सफलता पूर्वक सामना करती हुई कंपनी एक नए रूप में वैश्विक पटल पर अवतरित हुई. आज हर किसी को गर्व है और हर कोई इसके लिए आपका ऋणी है कि आपने 1990 के दशक में टाटा स्टील में ऐसा बदलाव कर दिखाया जिसके बारे में तब कोई सोच तक नहीं सकता था, करने की बात तो दूर थी.
तब आपने भांप लिया था कि कंपनी का विशाल श्रम बल ही आनेवाले दिनों में उसके अस्तित्व के लिए संकट बनेगा. इसीलिए आपके मजबूत इरादों के साथ श्रम बल कम करने का जो बीड़ा उठाया वह आपकी पेशेवर ईमानदारी के कारण ही सफल हो सका.
इस क्रम में आपने टाटा घराने के उच्चतम नैतिक मूल्यों व आदर्शों को कायम रखते हुए श्रम बल को अवश्य कम किया लेकिन कंपनी की सेवा के अलग होते हुए भी किसी को अलगाव का भान नहीं हुआ. आर्थिक सुरक्षा के कवच के साथ कंपनी के पेरोल से अलग हुआ.
ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि आप पूरी तरह ईमानदार थे. मन से भी वचन से भी और कर्म से भी. आप ऊपर से भले ही सख्त दिखते थे लेकिन अंदर से बेहत ही कोमल थे, मानवीय संवेदना आपमें कूट-कूट कर भरी थी. इसीलिए ऐसा सेपरेशन स्कीम लेकर आए जिसके बारे में दूसरी कंपनियों या घरानों में सोचा भी नहीं आ जा सकता था.
कंपनी में बदलाव की मुहिम इसलिए परवान चढ़ सकी क्योंकि आप किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ थे और इसपर लगाम लगाने को किसी भी हद तक जा सकते थे. आपकी ईमानदारी आपको ऐसा करने में सक्षण बनाती रही. यही कारण रहा कि टाटा वर्कर्स यूनियन के तब के धाकड़ कहे जाने वाले नेताओं को भी खरी-खरी सुनाने से परहेज नहीं करते थे.
आप जान गए थे कि टिस्को को अपने मूल कारोबार पर ही फोकस करना होगा तभी अस्तित्व बचाकर रखा जा सकता है. इसीलिए आपने तब कारपोरेट जगत को कई नए शब्दों के परिचित कराया था. एक ऐसा ही शब्द था- कोर कंपिटेंसी. यानी कंपनी को अपने मूल कारोबार पर ध्यान देना है.
सीमेंट व बियरिंग कारोबार को समेटकर आपने इस शब्द को चरितार्थ किया और बाद में कारपोरेट जगत ने इसे अंगीकार किया. इसीतरह आउटसोर्सिंग शब्द से आपके कार्यकाल में ही लोग परिचित हुए.
आप गुणवत्ता और सकारात्मक कार्यों महान समर्थक थे. गुणवत्ता से समझौता किए बगैर लागत मूल्य में कमी लाने का जो तरीका आपने अपनाया, वह बाद में दूसरों के लिए नजीर बन गया. इस्पात उद्योग पर आपके विचार और भविष्य के लिए अनुमान इतने सटीक साबित हुए कि टाटा स्टील के प्रतिद्वंद्वियों द्वारा भी इन्हें व्यापक रूप से स्वीकार किया गया.
आप पारदर्शिता के साथ काम करने में विश्वास करते थे. निर्णय पर अडिग व आचरण में साफ सुथरा रहते थे. आपके निर्णय न सिर्फ साथ सुथरा हुआ करते थे बल्कि दिखते भी थे. ऐसा इसलिए क्योंकि आप किसी चीज की गहराई में जाकर तथ्यों को समझते थे तब जाकर किसी निर्णय पर पहुंचते थे.
जमशेदपुर के सामाजिक सरोकार से भी आप गहराई से जुड़े थे. हर क्षेत्र के लोगों के साथ संवाद रहता था आपका. इसीलिए कंपनी भी अपने सामाजिक दायित्वों का सम्यक तरीके से अनुपालन करती थी.
आप सिर्फ टाटा के ही नहीं थे. आपका व्यक्तित्व वैश्विक था. आप ग्लोबल कारपोरेट लीडर थे. यही कारण रहा कि 1997 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा मानद नाइटहुड से सम्मानित किया गया था.
2004 में भारत सरकार ने आपको नए कंपनी अधिनियम का मसौदा तैयार करने के लिए सलाह देने के लिए विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया था. 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया.
पहले टाटा समूह की सभी कंपनियों के गैर-कार्यकारी निदेशकों की सेवानिवृत्ति की आयु 75 वर्ष हुआ करती थी. डॉ. जेजे इरानी को भी इस आयु सीमा का लाभ मिला था. 75 वर्ष की उम्र पूरा करने के बाद वे टाटा समूह से विदा जरूर हो गए थे लेकिन उनके मन में जमशेदपुर, टाट स्टील, कंपनी कर्मचारी व शहरवासी कुछ इस तरह से रचबस गए थे कि उन्होंने रिटायरमेंट के बाद जमशेदपुर में ही रहने का फैसला लिया.
वे चाहते तो देश विदेश में कहीं भी बस सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं किया. क्योंकि शहर से खास लगाव था. शहर में उन्हें बेहद प्यार व मान सम्मान देता आया है. यही कारण है कि उनके निधन की खबर से स्तब्घ शहर वासियों को फिराक गोरखपुरी की ये पंक्तियां डॉ. जेजे इरानी के संदर्भ में खूब आद आ रहीं:
ऐ मौत आकर खामोश कर गई तू
सदियों दिलों में हम गूंजते रहेंगे.
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