उदित वाणी :
– ललित गर्ग –
हाल ही में प्रकाशित यूनिसेफ की रिपोर्ट ‘द फ्यूचर ऑफ चिल्ड्रेन इन चेंजिंग वर्ल्ड’ने भारत में बच्चों के भविष्य के सामने खड़ी चुनौतियों और संकटों की गंभीर तस्वीर पेश की है। यह रिपोर्ट बताती है कि साल 2050 तक भारत में 35 करोड़ बच्चे जलवायु परिवर्तन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और तकनीकी बदलावों जैसे संकटों से जूझ रहे होंगे। ऐसे में बच्चों को भयंकर लू, गर्मी, बाढ़, तूफान, चक्रवात, और जलवायु जनित बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, वायु प्रदूषण, जल संकट और सिमटते प्राकृतिक संसाधन उनकी जिंदगी को कठिन बना देंगे।
जलवायु परिवर्तन और बच्चों का स्वास्थ्य
यूनिसेफ की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में बच्चों को जलवायु संकट के चलते स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 2021 में बच्चों के जलवायु जोखिम सूचकांक में भारत का स्थान 163 देशों में 26वां था, और आने वाले समय में बच्चों को आठ गुना अधिक गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। इन संकटों के कारण बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और पानी जैसे मूलभूत संसाधनों पर बुरा असर पड़ेगा। ऐसे में बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए सावधानी से नीति निर्माण और कार्ययोजना की आवश्यकता है।
डिजिटल विभाजन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव
दूसरी ओर, डिजिटल विभाजन भी बच्चों के भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। उच्च आय वाले देशों में 95% लोग इंटरनेट से जुड़े हैं, जबकि निम्न आय वाले देशों में यह संख्या केवल 26% है। भारत में इंटरनेट की बढ़ती पहुंच ने बच्चों के जीवन में नई समस्याएं खड़ी कर दी हैं। यूनिसेफ ने इस डिजिटल डिवाइड को खत्म करने के लिए समावेशी प्रौद्योगिकी पहल की वकालत की है, ताकि बच्चों तक नई तकनीक की सुरक्षित और समान पहुंच सुनिश्चित की जा सके।
शहरीकरण और बच्चों की समस्याएं
भारत में शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, और अनुमान है कि 2050 तक देश की आधी आबादी शहरी क्षेत्रों में रहने लगेगी। लेकिन इससे शहरी सेवाएं दबाव में आ सकती हैं और सबसे गरीब वर्ग के बच्चों को स्कूल, अस्पताल और अन्य बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच में समस्याएं हो सकती हैं। खासकर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को इन सेवाओं तक पहुंचने में कठिनाई हो सकती है। इसके अलावा, असमान शहरीकरण के कारण गरीबी, साफ-सफाई की कमी और वायु प्रदूषण जैसी समस्याएं बच्चों के जीवन को प्रभावित कर सकती हैं।
आने वाले समय की चुनौतियों के लिए नीति निर्माण
यदि सरकारें अभी से इन समस्याओं का समाधान नहीं करतीं, तो 2050 तक बच्चों के लिए परिस्थितियां और भी मुश्किल हो सकती हैं। बच्चों के जीवन के शुरुआती वर्षों के दौरान, समाज और परिवारों पर अधिक दबाव बनने से उनका मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित हो सकता है। इसलिए, सरकारों को नीति-निर्माण के स्तर पर प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और डिजिटल विभाजन जैसी समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए।
यूनिसेफ की यह रिपोर्ट बच्चों के भविष्य को लेकर गहरी चिंता का संकेत देती है। जलवायु परिवर्तन, डिजिटल विभाजन, और शहरीकरण जैसी चुनौतियों का प्रभाव बच्चों की जिंदगी पर पड़ेगा, और अगर समय रहते उपाय नहीं किए गए तो यह समस्याएं विकराल रूप धारण कर सकती हैं। बच्चों के लिए समृद्ध और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने के लिए हमें उनके अधिकारों को नीतियों का केंद्र बनाना होगा।
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