स्पेशल स्टोरी
अगले 5 साल में तीन चौथाई टाटा स्टील का उत्पादन ओडिशा में होगा
उदित वाणी, संजय प्रसाद, जमशेदपुर: चीन की चुनौतियों के बीच नये साल में टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेन्द्रन के इस बयान ने टाटा स्टील कर्मियों के साथ ही शहरवासियों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब टाटा स्टील की प्राथमिकताएं बदल रही है और उसका जोर झारखंड से ज्यादा ओडिशा पर है, क्योंकि ओडिशा में व्यापार के प्रसार की संभावनाएं हैं. जमशेदपुर प्लांट में 10.5 मिलियन टन से ज्यादा उत्पादन क्षमता करना संभव नहीं है. कलिंगानगर प्लांट के नया और अत्याधुनिक होने के चलते वहां पर कम मैनपावर में ज्यादा उत्पादन हो रहा है, जबकि टाटा स्टील जमशेदपुर में ज्यादा मैनपावर है. नये साल पर टाटा स्टील के वीपीसीएस चाणक्य चौधरी ने बताया कि ओडिशा और झारखंड के अलावा हमने पंजाब और महाराष्ट्र में भी प्लांट लगा रखे हैं, मगर विस्तारीकरण की संभावनाएं ओडिशा में ज्यादा है. ऐसे में हमारी प्राथमिकताएं भी तेजी से बदल रही है. टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेन्द्रन ने कहा कि ओडिशा में हमारा ऑपरेशनल कॉस्ट काफी कम है, क्योंकि वहां पर शहर नहीं चलाना पड़ता है.
2030 तक 40 मिलियन टन होगा उत्पादन
2030 तक टाटा स्टील की उत्पादन क्षमता 40 मिलियन टन हो जाएगी, जो फिलहाल 20 मिलियन टन के बराबर है. उत्पादन क्षमता का विस्तार ओडिसा में होगा, क्योंकि जमशेदपुर प्लांट का विस्तारीकरण अब संभव नहीं है. फिलहाल जमशेदपुर प्लांट की उत्पादन क्षमता 10.5 मिलियन टन के बराबर है. इस तरह टाटा स्टील के कुल उत्पादन में आधे से ज्यादा की हिस्सेदारी जमशेदपुर प्लांट की है. अभी टाटा स्टील की उत्पादन क्षमता 20 मिलियन टन है. इस 20 मिलियन टन में 10.5 टन अकेले टाटा स्टील जमशेदपुर की हिस्सेदारी है. लेकिन 40 मिलियन टन उत्पादन होने पर ओडिशा की हिस्सेदारी लगभग 30 मिलियन टन हो जाएगी. टाटा स्टील का प्लांट जमशेदपुर के अलावा ओडिशा के कलिंगानगर और अंगुल (मेरामंडली) में है. टाटा स्टील जमशेदपुर के सामने उत्पादन को बढ़ाने के साथ ही कार्बन उत्सर्जन को जीरो करने की दोहरी चुनौती भी है, क्योंकि यह पूरा प्लांट है. कलिंगानगर में नया प्लांट होने के चलते कार्बन उत्सर्जन कम है. उल्लेखनीय है कि टाटा स्टील ने 2047 तक नेट जीरो कार्बन का लक्ष्य निर्धारित किया है.
जमशेदपुर में विस्तारीकरण क्यों संभव नहीं
टाटा स्टील के जमशेदपुर प्लांट का विस्तारीकरण अब संभव नहीं है. एक तो यह प्लांट शहर के बीचोबीच है, दूसरे इसे और विस्तारीकरण के लिए इन्वायरमेंटल क्लीयरेंस नहीं है. ऐसे में टाटा स्टील जमशेदपुर के लिए यहां पर अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाना बेहद मुश्किल है. यह मदर प्लांट जब 1907 में शुरू हुआ था, तो इसकी उत्पादन क्षमता केवल आधा मिलियन टन थी, जो आज 21 गुना बढ़ गई है. फिलहाल इस प्लांट की उत्पादन क्षमता 10.5 मिलियन टन है. यही कारण है कि अब जमशेदपुर में डाउनस्ट्रीम बिजनेस में टाटा समूह निवेश कर रहा है. इसी के तहत टिनप्लेट और तार कंपनी में नया निवेश किया गया है.
आडिशा में दो प्लांट
टाटा स्टील के दो प्लांट ओडिशा में है. इसमें से एक कलिंगानगर और दूसरा अंगुल (मेरामंडली) में है. कलिंगानगर में दूसरे चरण का विस्तारीकरण शुरू होने जा रहा है. दो साल पहले टाटा स्टील ने महंगा सौदा होने के बाद भी नीलांचल को अधिग्रहित किया, क्योंकि उसके पास जमीन काफी है, जिसे विस्तारीकरण के लिए उपयोग में लाया जाएगा. नीलांचल में उत्पादन भी शुरू हो गया है और इसकी उत्पादन क्षमता को 6 मिलियन टन ले जाने का लक्ष्य है. यही नहीं अंगुल स्थित भूषण स्टील की उत्पादन क्षमता बढ़ेगी. टाटा स्टील कलिंगानगर का उत्पादन क्षमता 8 मिलियन टन हो गई है. इस तरह अगले पांच साल में टाटा स्टील का उत्पादन 40 मिलियन टन के करीब हो जाएगा, जिसमें से 30 मिलियन टन यानि तीन चौथाई उत्पादन ओडिशा में होने लगेगा.
ओडिशा में विस्तारीकरण की क्या है वजह
टाटा स्टील द्वारा अपने बिजनेस और निवेश को ओडिशा में बढ़ाने की वजह यह है कि वहां पर उत्पादन के साथ ही बिजनेस की संभावनाएं काफी है. यही नहीं नया प्लांट होने के चलते यहां पर प्रति टन स्टील बनाना, जमशेदपुर के मुकाबले काफी किफायती है. जमशेदपुर प्लांट पर लाइबिलिटी काफी है. एक तो पुराने कर्मचारियों के (स्टील वेज) होने के कारण उनके वेतन का भार ओडिशा के प्रति कर्मचारी के वेतन से काफी है. दूसरा जमशेदपुर का प्लांट पुराना है. ऐसे में पुराने की जगह नये इन्फ्रास्ट्रक्चर करने पर कंपनी को काफी लागत आ रही है. मसलन कंपनी अपने सारे पुराने ब्लास्ट फर्नेस को बदल कर उसे ग्रीन फर्नेस करने जा रही है. अब इसमें परम्परागत ईंधन की जगह हाइड्रोजन का इस्तेमाल होगा. तीसरी कि ओडिसा के ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट होने के चलते सरकार की ओर से कंपनी को कई तरह की रियायतें मिल रही है. साथ ही ओडिशा में टाटा स्टील को शहर नहीं संचालित करना पड़ता. यही कारण है कि टाटा स्टील का जोर भी अब ओडिशा पर ज्यादा है.
क्या होगा इसका असर
टाटा स्टील का तीन चौथाई बिजनेस ओडिशा में चले जाने के बाद कंपनी का पूरा डोमेन बदल जाएगा और उसका जोर जमशेदपुर की बजाय ओडिशा पर होगा. इसका असर होगा कि कंपनी का एडमिनिस्ट्रेशन धीरे-धीरे ओ़डिशा शिफ्ट कर जाएगा. यही नहीं अधिकतर कंपनी के बड़े अधिकारी ओडिशा में बैठेंगे और वहां से काम देखेंगे, क्योंकि अगले पांच साल में तीन चौथाई बिजनेस ओडिशा के पास होगा. इसके चलते प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही एमडी, आईआल टू अधिकारियों का ज्यादा समय ओडिशा में बीतेगा. यही नहीं नये रोजगार के सृजन होने पर ओडिशा के स्थानीय लोगों को ज्यादा नौकरी मिलेगी. टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेन्द्रन ने नये साल के पहले दिन कंपनी के वर्क्स के केक कटिंग समारोह में यह कह दिया है कि अब सारे कार्यक्रम जमशेदपुर में नहीं होगा. संभव हो अगले एक अप्रैल का कार्यक्रम हम ओडिशा में करें. इससे जाहिर है कि कंपनी ओडिशा मोड में जाना शुरू हो गई है.
(संजय प्रसाद, जमशेदपुर)
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