उदित वाणी, मुंबई: काशी, जहां जीवन और मृत्यु दोनों में महादेव समाहित हैं, वहीं निर्देशक करण शर्मा की नई फिल्म ‘भूल चूक माफ’ काशी की गलियों को मुंबई के सेट पर रचती है। फिल्म में राजकुमार राव, वामिका गब्बी, सीमा पाहवा, संजय मिश्रा, जाकिर हुसैन, रघुवीर यादव, इश्तियाक खान, विनीत कुमार और नलनीश नील जैसे कलाकार हैं। लेकिन प्रचार-प्रसार में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि फिल्म दो ब्राह्मण परिवारों की कहानी है। पंडित जी खीर में लौंग डालते हैं, बेटा गाय को पूरनपोली खिलाता है और सरकारी नौकरी पाने के लिए रिश्वत देता है।
दो महीने में नौकरी! कौन-सा फॉर्मूला है ये?
फिल्म का मूल प्लॉट ही अविश्वसनीय है। दो महीने में सरकारी नौकरी? और यूपी पुलिस को भी यह स्वीकार्य है? फिल्म नेटफ्लिक्स की ‘नेकेड’ और हॉलीवुड की ‘ग्राउंडहॉग डे’ से प्रेरित दिखती है। यहां भी हीरो एक टाइम लूप में फंसा है, क्योंकि उसने महादेव से एक नेक काम की मन्नत मांगी थी।
राजकुमार राव का मजबूरी में चयन
निर्माता दिनेश विजन शायद एक कालजयी फिल्म बना सकते थे, यदि किरदार को निभाने के लिए कोई युवा संघर्षशील अभिनेता होता। लेकिन राजकुमार राव को जबरन फिल्म में ठूंसा गया है। जैसे फिल्म के संवादों में ‘बकैती’ शब्द को जबरन ठूंसा गया है।
नायिका पर कैमरा भी भरोसा नहीं करता
वामिका गब्बी फिल्म की हीरोइन हैं। लेकिन उनके संवादों में वह गहराई नहीं है जो बनारस की बेटी में होनी चाहिए। निर्देशक और अभिनेत्री के बीच ‘ट्यूनिंग’ का अभाव झलकता है। यह लड़की अपने बॉयफ्रेंड के लिए रिश्वत का इंतजाम करती है, वही बॉयफ्रेंड जो हर रोज गाय के गोबर में कूद जाता है।
ब्राह्मण परिवार या सिर्फ नाम के मिश्रा-तिवारी?
फिल्म में मिश्रा और तिवारी नाम भर हैं, पृष्ठभूमि नहीं। रघुवीर यादव और जाकिर हुसैन जैसे अभिनेता उपेक्षित से लगते हैं। सीमा पाहवा का अभिनय विश्वसनीय है लेकिन उनके हिस्से भी बहुत कम दृश्य हैं।
कैमरा भी थका दिखा
सिनेमेटोग्राफर सुदीप चटर्जी का नाम सुनते ही उम्मीद जगी थी, लेकिन कैमरा सिर्फ ड्रोन शॉट्स में उलझा रह गया। काशी को ऊपर से देखने की बजाय भीतर से दिखाने का कोई प्रयास नहीं हुआ।
संगीत और गीतों की दुर्गति
गाने फिल्म में ऐसे हैं जैसे दर्शकों को फोन पर रील्स देखने का मौका देना हो। इरशाद कामिल और तनिष्क बागची की जोड़ी भी इस बार जादू नहीं कर पाई। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक ठीक-ठाक है, लेकिन गाने याद रखने लायक नहीं।
भूल हुई, चूक माफ़ नहीं
‘भूल चूक माफ’ को देखकर लगता है कि यह फिल्म सिनेमाघरों के बजाय सीधे OTT पर आती तो बेहतर होता। यह फिल्म मनोरंजन कम और समय की परीक्षा अधिक लगती है। काशी की पवित्रता, बनारसी जीवन का वास्तविक रंग और हिंदी सिनेमा की ताकत — तीनों ही इस फिल्म से नदारद हैं।
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