- प्रौद्योगिकी के माध्यम से भविष्य का रूपांतरण
उदितवाणी, जमशेदपुर : 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन 1998 में पोखरण में भारत द्वारा किए गए सफल परमाणु परीक्षणों की स्मृति और देश की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में व्यापक प्रगति के सम्मान में मनाया जाता है.
भारत की तकनीकी यात्रा उसकी आत्मनिर्भरता और नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है. 1975 में पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के प्रक्षेपण से लेकर चंद्रयान और कम लागत वाले अंतरिक्ष अभियानों तक, साथ ही डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलों के माध्यम से, देश ने एक सशक्त डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव रखी है.
इस यात्रा में इस्पात उद्योग एक महत्वपूर्ण आधार है, जो औद्योगिक विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर की रीढ़ माना जाता है. वैश्विक इस्पात क्षेत्र ने दक्षता, सस्टेनेबिलिटी और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाया है.
अब इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस का युग
पारंपरिक ब्लास्ट फर्नेस के स्थान पर अब इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (EAF) तेजी से अपनाए जा रहे हैं, जो लौह अयस्क और कोयले के बजाय स्क्रैप स्टील और बिजली का उपयोग करते हैं. इसका मुख्य उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना है.
इसी तरह, डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (DRI) प्रक्रिया, जो प्राकृतिक गैस या हाइड्रोजन के माध्यम से लौह अयस्क को शुद्ध करती है, एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प के रूप में लोकप्रिय हो रही है.
हाइड्रोजन आधारित इस्पात निर्माण का भविष्य
हाइड्रोजन आधारित इस्पात निर्माण, जो कोकिंग कोल का विकल्प बन रहा है, हरित इस्पात उत्पादन की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है. भारत समेत कई देशों में पायलट परियोजनाएं इस तकनीक का मूल्यांकन कर रही हैं.
साथ ही कार्बन कैप्चर, यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (CCUS) तकनीकों पर भी काम हो रहा है, जिससे ब्लास्ट फर्नेस से निकलने वाले उत्सर्जन को पकड़कर दोबारा उपयोग में लाया जा सके या सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जा सके.
बायोचार और वैकल्पिक ईंधन का उपयोग
बायोचार जैसे वैकल्पिक ईंधनों और स्क्रैप के उपयोग को भी परीक्षण के रूप में अपनाया जा रहा है. टाटा स्टील ने इन तकनीकों को अपने संचालन में एकीकृत करते हुए सतत इस्पात उत्पादन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया है. कंपनी यूके और भारत में EAF आधारित स्टील प्लांट्स बना रही है.
अल्ट्रा लो कार्बन डाइऑक्साइड स्टीलमेकिंग में नेतृत्व
2004 में शुरू हुई यूरोपीय पहल Ultra Low CO2 Steelmaking इस्पात निर्माण में मौलिक परिवर्तन की दिशा में कार्य कर रही है. इसी पहल के अंतर्गत हिसारना तकनीक — जो कोक ओवन और सिन्टर प्लांट की आवश्यकता को खत्म कर लौह अयस्क को सीधे पिघले हुए लोहे में परिवर्तित करती है — पर टाटा स्टील नीदरलैंड द्वारा पायलट परीक्षण किए जा रहे हैं.
यदि यह तकनीक प्रभावी सिद्ध होती है, तो भारत में इसका क्रियान्वयन इस्पात निर्माण की डीकार्बोनाइज़ेशन प्रक्रिया को तेज करेगा.
इंडस्ट्री 4.0 और स्मार्ट तकनीक का समावेश
सुरक्षा और दक्षता को बढ़ावा देने के लिए टाटा स्टील इंडस्ट्री 4.0 के तहत कई आधुनिक तकनीकों को अपना रहा है. इनमें शामिल हैं:
डिजिटल ट्विन्स
प्रीडिक्टिव एनालिटिक्स
रोबोटिक्स आधारित रखरखाव
AI संचालित प्रोसेस ऑप्टिमाइज़ेशन
रियल-टाइम मॉनिटरिंग प्लेटफॉर्म्स
स्मार्ट सेंसर और स्वचालित सामग्री प्रबंधन प्रणाली
ये तकनीकें उत्पादन लाइनों को अधिक आधुनिक, कुशल और सुरक्षित बना रही हैं.
टाटा स्टील में डिजिटल नवाचार
टाटा स्टील ने अपने प्लांट संचालन में डिजिटल ट्विन मॉडल्स, रोबोटिक्स, AI-संचालित रखरखाव, और डेटा एनालिटिक्स में बड़े पैमाने पर निवेश किया है. कंपनी ने वर्चुअल रियलिटी आधारित प्रशिक्षण, एआई-संचालित सुरक्षा विश्लेषण, और पहनने योग्य उपकरणों को भी कार्यस्थल सुरक्षा के लिए अपनाया है.
तकनीकी प्रगति की व्यापक तस्वीर
आज तकनीक ने कल्पनाओं को वास्तविकता में बदला है — चाहे वह मानव उड़ान हो या ब्लू ओरिजिन जैसी अंतरिक्ष यात्राएं. भारत में डिजिटल भुगतान प्रणाली ने लेन-देन को पारदर्शी और ट्रेस करने योग्य बना दिया है. थ्री-डी प्रिंटिंग और जनरेटिव एआई जैसे नवाचारों ने शिक्षा, मीडिया और निर्माण क्षेत्रों में क्रांति ला दी है. इस्पात उद्योग भी एक ऐसे परिवर्तन की ओर अग्रसर है, जो न केवल इसकी दिशा बदल सकता है, बल्कि ग्रह और मानवता के भविष्य को भी गहराई से प्रभावित कर सकता है.
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