उदित वाणी, जमशेदपुर: भारतीय सनातन धर्म में व्रत-त्योहारों को न केवल धार्मिक आस्था से जोड़ा जाता है, बल्कि ये पारिवारिक जीवन में संतुलन, समर्पण और समृद्धि का संदेश भी देते हैं. इन्हीं विशेष व्रतों में एक है वट सावित्री व्रत, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुखमय दांपत्य जीवन और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक करती हैं.
इस बार कब रखा जाएगा वट सावित्री व्रत?
हिंदू पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है. इस वर्ष यह पुण्य व्रत 26 मई को मनाया जाएगा. इस दिन व्रती महिलाएं विशेष रूप से वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा करती हैं, जिसे अनंत सौभाग्य, पवित्रता और तपस्या का प्रतीक माना गया है.
वट वृक्ष की पूजा क्यों है आवश्यक?
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण बचाने के लिए वट वृक्ष के नीचे कठोर तप किया था. उनकी दृढ़ आस्था और तपस्या से प्रसन्न होकर यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दिया. तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि इस व्रत में वट वृक्ष की विधिवत पूजा की जाती है.
बरगद का पेड़ पास न हो तो क्या करें?
आधुनिक शहरी परिवेश में हर जगह वट वृक्ष उपलब्ध नहीं होता. ऐसे में महिलाएं व्रत से एक दिन पहले किसी परिचित या फूल विक्रेता से बरगद की एक टहनी मंगवा सकती हैं. पूजन के दिन उस टहनी को स्वच्छ स्थान पर स्थापित कर, संकल्प लेकर विधिपूर्वक पूजा की जा सकती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से भी व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है.
यदि टहनी भी न मिल पाए तो?
यदि बरगद की टहनी भी उपलब्ध न हो, तो व्रती महिलाएं तुलसी के पौधे के समीप बैठकर पूरे विधि-विधान के साथ पूजन कर सकती हैं. संकल्प लें, व्रत कथा का श्रवण करें और भगवान से अपने संकल्प की पूर्ति की प्रार्थना करें. तुलसी को भी शुभता, पवित्रता और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है. श्रद्धा और विश्वास से किया गया पूजन निष्फल नहीं जाता.
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