उदित वाणी, पटमदा : बोड़ाम प्रखंड के लावजोड़ा शिव मंदिर प्रांगण में बुधवार को सोलोआना कमेटी की ओर से पारंपरिक भोक्ता घूरा कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस बार भूला, कांदरूजोना, लावजोड़ा, बांकादा और नामशोल—इन पाँच गांवों के ग्रामीणों द्वारा भोक्ता गाछ (खूंटा) गाड़ा गया.
100 से अधिक भोक्ताओं का साहसिक प्रदर्शन
दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक, 100 से अधिक भोक्ताओं ने पीठ में हुक लगाकर 45 फीट ऊंचाई पर घूमते हुए साहसिक करतब दिखाए. इस दौरान नोटों की बारिश हुई, जिसे पकड़ने के लिए लोग चारों ओर दौड़ते दिखे. दर्शकों में बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक उत्साह देखने लायक था.
10 साल का धनंजय बना आकर्षण का केंद्र
मेले में 10 वर्षीय धनंजय सिंह ने भी भोक्ता घूरा में भाग लिया और सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा. इतनी कम उम्र में भागीदारी ने उसे खास बना दिया. उसकी हिम्मत और श्रद्धा ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
हजारों श्रद्धालुओं की जुटान
पटमदा, बोड़ाम, चांडिल, नीमडीह, जमशेदपुर और घाटशिला के अलावा पश्चिम बंगाल से भी हजारों महिला-पुरुष मेले में शामिल हुए. यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक एकजुटता का उत्सव भी बन चुका है.
पूर्व में 12 गांवों से गाड़े जाते थे 16 खूंटे
लावजोड़ा निवासी और पूर्व जिला पार्षद स्वपन कुमार महतो ने बताया कि यह मेला क्षेत्र की पुरातन परंपराओं में से एक है. पहले इसमें 12 गांव भाग लेते थे और 16 खूंटे गाड़े जाते थे. लेकिन बीते एक दशक से यह कार्यक्रम पांच खूंटों के साथ आयोजित हो रहा है.
उपवास, आराधना और छऊ नृत्य
कार्यक्रम की पूर्व संध्या पर मंगलवार को सैकड़ों महिलाओं ने उपवास रखा और भगवान भोलेनाथ की आराधना की. शाम को लावजोड़ा शिव मंदिर में पूजा के बाद पश्चिम बंगाल की रासु हाड़ी व स्व. दुर्योधन महतो की टीम ने रात्रि जागरण के दौरान छऊ नृत्य प्रस्तुत किया. बुधवार की रात रॉयल छऊ नृत्य दल और हेम सिंह महतो की टीम ने भी मनमोहक प्रस्तुति दी.
बलि परंपरा और गुरुवार की पूजा
गुरुवार को तेल हल्दिया के अवसर पर प्रसिद्ध हाथीखेदा मंदिर में दो दिनों की बंदी के बाद पूजा-अर्चना होगी. शिव मंदिर में बकरे और हाथीखेदा मंदिर में भेड़ की बलि चढ़ाई जाएगी.
श्रद्धालुओं के लिए जलपान शिविर
स्वपन कुमार महतो की ओर से प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी शिविर लगाकर हजारों लोगों के बीच गुड़, चना, शरबत और तरबूज का वितरण किया गया. भीषण गर्मी में यह सेवा श्रद्धालुओं के लिए राहत का साधन बनी.
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