रांची: झारखंड में ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते मामलों पर रोकथाम को लेकर राज्य सरकार की निष्क्रियता पर झारखंड हाईकोर्ट ने गंभीर नाराजगी जताई है. मंगलवार को चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.
6 मई तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का अंतिम अवसर
कोर्ट ने सरकार को 6 मई तक का अंतिम मौका देते हुए स्पष्ट निर्देश दिया है कि पूरे राज्य में ध्वनि प्रदूषण पर उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट पेश की जाए. इसी दिन याचिका पर अगली सुनवाई होगी.
सिर्फ रांची की जानकारी, बाकी जिलों की अनदेखी पर बेंच नाराज
इससे पूर्व 8 अप्रैल को हुई सुनवाई में अदालत ने सरकार से पूछा था कि पर्व-त्योहारों के दौरान ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए क्या उपाय किए गए हैं? इसके जवाब में मंगलवार को जो शपथ पत्र सरकार ने दाखिल किया, उसमें सिर्फ रांची जिले की कार्रवाई की जानकारी दी गई थी.
इस पर खंडपीठ ने सख़्त टिप्पणी करते हुए पूछा,”क्या शेष झारखंड राज्य में ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के कोई प्रयास नहीं हुए हैं?, कोर्ट के आदेश का इस प्रकार आधा अधूरा पालन क्यों किया गया?”
जनहित याचिका में किया गया नियमों के उल्लंघन का उल्लेख
यह याचिका झारखंड सिविल सोसाइटी एवं अन्य की ओर से दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि ‘ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) अधिनियम 2000’ के तहत बनाए गए नियमों का राज्यभर में उल्लंघन हो रहा है.चाहे रेजिडेंशियल एरिया हो, कमर्शियल या इंडस्ट्रियल, हर स्थान पर निर्धारित मानकों से अधिक शोर पाया जा रहा है.प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता शुभम कटारुका ने अदालत में दलीलें पेश करते हुए बताया किध्वनि प्रदूषण की शिकायतों पर सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती.
नागरिक हित में कार्रवाई की उम्मीद
अब अदालत की कड़ी फटकार के बाद देखना होगा कि सरकार 6 मई तक कितनी गंभीरता से संपूर्ण राज्य का विवरण प्रस्तुत करती है. ध्वनि प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे पर राज्य प्रशासन की लापरवाही नागरिकों के स्वास्थ्य और शांति के अधिकार का हनन है.
(IANS)
उदित वाणी टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।