उदित वाणी, जमशेदपुर: सांस्कृतिक कार्य निदेशालय (झारखंड सरकार) और पथ (पीपुल्स एसोसिएशन फॉर थियेटर) के संयुक्त तत्वावधान में जमशेदपुर में 21 दिवसीय नि:शुल्क नाट्य कार्यशाला उत्साहपूर्वक जारी है. इसका उद्देश्य युवाओं में सृजनात्मकता और सामाजिक चेतना का विकास करना है.इस कार्यशाला में प्रतिभागी न केवल अभिनय के विविध पक्षों को समझ रहे हैं, बल्कि रंगमंच के तकनीकी और सौंदर्यशास्त्रीय पहलुओं से भी परिचित हो रहे हैं.
रंगमंच केवल अभिनय नहीं, एक समग्र दृष्टिकोण
कार्यशाला के 12वें दिन वरिष्ठ रंगकर्मी विजय शर्मा के निर्देशन में दो सत्र आयोजित हुए. उन्होंने बताया कि रंगकर्मी को बहुआयामी होना चाहिए. वह मंच पर अभिनेता ही नहीं, निर्देशक, दर्शक और विचारक भी होता है. उसकी प्रस्तुति तभी प्रभावशाली होती है जब वह विषयवस्तु की आत्मा तक पहुंच सके.उन्होंने विशेष रूप से प्रकाश संयोजन की महत्ता पर ज़ोर दिया. उनके अनुसार, प्रकाश केवल दृश्य का माध्यम नहीं, बल्कि भावनाओं, समय और पात्रों की आंतरिक स्थिति का संप्रेषणकर्ता होता है. प्रकाश की भाषा मंच की आत्मा को मुखर करती है.
नाटक में झलकेगा बिरसा मुंडा का प्रतिरोध और दर्शन
दूसरे सत्र का नेतृत्व मुख्य प्रशिक्षक मोहम्मद निज़ाम ने किया. उन्होंने प्रतिभागियों को नाट्य-निर्माण की रचनात्मक प्रक्रिया में प्रवाहित करते हुए भगवान बिरसा मुंडा के जीवन पर आधारित नाटक का पाठ कराया.इस पाठ के माध्यम से प्रतिभागियों ने संवादों की लय, भावनात्मकता और ऐतिहासिक संदर्भों को आत्मसात किया. उन्होंने जाना कि रंगमंच केवल अभिनय नहीं, बल्कि शोध, स्मृति और सामूहिक आत्मान्वेषण का समागम होता है.
ज्ञान और समर्पण से भरा रहा दिन
पूरा दिन प्रतिभागियों ने अनुशासन और उत्साह के साथ व्यतीत किया. वे यह समझ सके कि एक सफल नाट्य प्रस्तुति के पीछे योजना, अभ्यास और संपूर्ण समर्पण आवश्यक है.
आने वाले दिनों में और गहराई से जुड़ेगा रंगमंच से संवाद
आगामी सत्रों में प्रतिभागी अभिनय तकनीक, संवाद अदायगी, दृश्य संरचना, संगीत, वेशभूषा और निर्देशन की बारीकियों को सीखेंगे. कार्यशाला एक प्रशिक्षण प्रक्रिया से कहीं अधिक, एक सांस्कृतिक यात्रा है जो झारखंड के रंगमंच को नई ऊँचाइयों तक ले जाने की क्षमता रखती है.
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