जमशेदपुर: “दन्तविशोधनम् गन्धम् वैरस्यम् च निहन्ति…” महर्षि वाग्भट द्वारा रचित अष्टांग हृदयम का यह श्लोक दातुन की उपयोगिता को स्पष्ट करता है. उनके अनुसार दांतों की सफाई से दुर्गंध मिटती है, स्वाद में सुधार होता है और संपूर्ण शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
क्यों बेहतर है प्राकृतिक दातुन?
नीम, बबूल, मदार, अर्जुन जैसे वृक्षों की टहनियों से बनी दातुन न केवल दांतों को स्वच्छ और मजबूत बनाती है, बल्कि मसूड़ों को भी स्वस्थ रखती है. दातुन के कड़वे या कसैले स्वाद को श्रेष्ठ माना गया है. महर्षि वाग्भट ने विशेष रूप से मदार को नीम से भी अधिक प्रभावी बताया है.
कौन-से मौसम में कौन-सी दातुन?
महर्षि वाग्भट ने सालभर के मौसम के अनुसार अलग-अलग दातुन की सलाह दी है.
चैत्र से ग्रीष्मकाल – नीम, मदार या बबूल
वर्षा ऋतु – आम या अर्जुन
शीत ऋतु – अमरुद या जामुन
इसके अलावा महुआ, करंज, बरगद, बेर, शीशम, अपामार्ग और बांस जैसी टहनियों का भी उल्लेख मिलता है.
निरंतर नहीं करनी चाहिए नीम की दातुन
नीम की दातुन तीन महीने तक लगातार करने के बाद एक विराम आवश्यक बताया गया है. इस अवधि के बाद मंजन या किसी अन्य वृक्ष की दातुन करनी चाहिए ताकि शरीर को संतुलित लाभ मिल सके.
नीम: एंटीबैक्टीरियल गुणों का खजाना
नीम की टहनियों में निम्बीन, मार्गोसीन और निम्बोस्टेरोल जैसे तिक्त तत्व पाए जाते हैं, जो दांतों की सड़न, मसूड़ों की सूजन, पायरिया और दुर्गंध जैसी समस्याओं में उपयोगी हैं. गर्भवती महिलाओं के लिए नीम की दातुन विशेष रूप से लाभकारी मानी गई है.
बबूल: रक्त और कफ विकारों का नाशक
बबूल की दातुन में मौजूद गोंद में ऐसे तत्व होते हैं जो अतिसार, फेफड़ों की बीमारी, दांतों के गिरने और मसूड़ों से खून आने जैसी समस्याओं से राहत देते हैं. ब्रह्मलीन पं. तृप्तिनारायण झा शास्त्री के अनुसार यह बांझपन और गर्भपात के डर को भी दूर करता है.
अर्जुन: हृदय का रक्षक
अर्जुन की टहनी में क्रिस्टलाइन लेक्टोन पाया जाता है. इससे दातुन करने से हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह, टीबी जैसी गंभीर बीमारियों में भी आराम मिलता है. यह रक्त शोधक भी माना गया है.
महुआ, बरगद और अन्य वृक्षों के लाभ
महुआ – त्वचा, मूत्र और पाचन तंत्र की समस्याओं में लाभकारी
बरगद – आंखों की रोशनी, गर्भावस्था से जुड़ी परेशानियों और शरीर की समग्र समस्याओं के लिए लाभकारी
अपामार्ग – क्षारीय गुणों से युक्त, पथरी और त्वचा रोगों में उपयोगी
करंज – पाचन और बवासीर में राहत देने वाला
बेर – मुंह की दुर्गंध, गले की खराश और अधिक मासिक स्राव जैसी समस्याओं में सहायक
दातुन होनी चाहिए कैसी?
आयुर्वेदाचार्य बताते हैं कि दातुन 6-8 इंच लंबी होनी चाहिए. इसका सिरा कोमल और महीन कूची जैसा होना चाहिए. दातुन करते समय उकड़ू बैठने की सलाह दी जाती है, ताकि इसके फायदे पूरे शरीर को मिल सकें. सुबह और शाम नियमित रूप से दातुन करना सर्वोत्तम माना गया है.
उदित वाणी टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं।