उदित वाणी, रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के 13वें केंद्रीय महाधिवेशन के दूसरे दिन ऐतिहासिक राजनीतिक क्षण देखने को मिला, जब दिशोम गुरु शिबू सोरेन को पार्टी का संस्थापक संरक्षक घोषित किया गया और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को केंद्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई. रांची के खेलगांव में आयोजित इस महाधिवेशन में हजारों कार्यकर्ताओं की उपस्थिति ने निर्णय को ऐतिहासिक स्वीकृति दी.
38 वर्षों की विरासत से नेतृत्व का परिवर्तन
1987 से 2025 तक शिबू सोरेन झामुमो के अध्यक्ष पद पर बने रहे. अब उन्होंने स्वयं प्रस्ताव रखा कि हेमंत सोरेन को पार्टी का नेतृत्व सौंपा जाए. प्रस्ताव पर तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा पंडाल गूंज उठा. हेमंत को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया और पार्टी की केंद्रीय समिति में 289 सदस्य शामिल किए गए.
राजनीतिक सफर: नेमरा से बरहेट तक
10 अगस्त 1975 को हजारीबाग जिले के नेमरा गांव में जन्मे हेमंत, दिशोम गुरु की तीसरी संतान हैं. 2009 में वे 34 वर्ष की उम्र में राज्यसभा सदस्य बने और उसी वर्ष दुमका से विधायक भी. 35 में उपमुख्यमंत्री और 38 में मुख्यमंत्री बने. 2014 से वे लगातार बरहेट विधानसभा क्षेत्र से जीतते आ रहे हैं.
संघर्षों से तपकर बनी नेतृत्व की पहचान
हेमंत का प्रारंभिक जीवन चुनौतियों से भरा रहा. पिता के पास खेती के अलावा कोई आय नहीं थी. मां रूपी किस्कू ने चारों संतानों की परवरिश की. हेमंत ने गांव के सरकारी विद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और पटना में इंटर तक पढ़ाई की. बीआईटी मेसरा में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लेने के बाद उन्होंने राजनीति को चुना.
छात्र मोर्चा से राजनीतिक पथ की शुरुआत
2003 में हेमंत झारखंड छात्र मोर्चा के अध्यक्ष बने. परिवार में तब बड़ा संकट आया, जब पिता को जेल और बड़े भाई दुर्गा की तबीयत बिगड़ने लगी. वर्ष 2000 में झारखंड राज्य के गठन के बाद शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री न बनाए जाने से हेमंत विचलित हुए. उन्होंने झामुमो कार्यकर्ताओं के साथ पिता को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया.
पहली चुनावी हार और उत्तराधिकार की शुरुआत
2005 में दुमका से पहला चुनाव लड़ा, लेकिन स्टीफन मरांडी के सामने हार का सामना करना पड़ा. 2009 में बड़े भाई दुर्गा की मृत्यु के बाद हेमंत को पार्टी में उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाने लगा. उसी वर्ष राज्यसभा और फिर विधानसभा पहुंचे. 2010 में उपमुख्यमंत्री बने.
मुख्यमंत्री बनने की पहली पटकथा
जनवरी 2013 में भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद राष्ट्रपति शासन लागू हुआ. फिर जुलाई 2013 में हेमंत कांग्रेस और राजद के साथ गठबंधन बनाकर मुख्यमंत्री बने. हालांकि यह कार्यकाल केवल 17 महीने चला और 2014 में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
पुनरागमन और पुनर्निर्माण की राजनीति
विपक्ष में रहते हुए हेमंत ने रघुवर दास सरकार के भूमि कानूनों के खिलाफ आदिवासी पहचान की लड़ाई लड़ी. 2019 के चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने बहुमत हासिल किया और वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने.
जेल, वापसी और छवि का पुनर्निर्माण
दूसरे कार्यकाल में उन पर खनन और भूमि घोटालों के आरोप लगे. जनवरी 2024 में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल गए. पांच माह बाद रिहा होकर फिर मुख्यमंत्री बने. इस दौरान उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने संगठन में सक्रियता दिखाई और राजनीतिक ताकत के रूप में उभरीं. उन्होंने मिलकर पार्टी को चुनावी सफलता दिलाई.
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