उदित वाणी, चाईबासा: पश्चिमी सिंहभूम जिले के कई ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी अंधविश्वास गहराई से व्याप्त है. गंभीर बीमारियों की स्थिति में लोग चिकित्सकीय सहायता लेने के बजाय ओझा-गुनी और झाड़-फूंक पर अधिक भरोसा करते हैं. इसका परिणाम यह होता है कि रोगी की हालत और गंभीर हो जाती है.ताज़ा मामला सदर प्रखंड के गंजड़ा गांव से सामने आया है, जहां एक महिला बीमार होने के बावजूद अस्पताल न जाकर झाड़-फूंक करवाने में व्यस्त है. यह अकेला मामला नहीं, बल्कि जिले में फैली सामाजिक कुरीतियों की एक मिसाल है.
शिक्षा और जागरूकता की कमी बनी बाधा
गांवों में अंधविश्वास के बने रहने के पीछे एक बड़ा कारण अशिक्षा और नशे की लत मानी जा रही है. ‘युवा जागरूकता अभियान’ से जुड़े हरे कृष्णा सुंडी बताते हैं कि वे बार-बार लोगों को समझाते हैं, लेकिन अंधविश्वास से निकल पाना उनके लिए कठिन होता है. इसका असर न केवल उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है, बल्कि आर्थिक स्थिति भी चरमराने लगती है.
स्वास्थ्य विभाग की कोशिशें
सदर अस्पताल चाईबासा के उपाधीक्षक डॉ. शिवचरण हांसदा ने बताया कि सुदूरवर्ती क्षेत्रों में नियमित रूप से स्वास्थ्य शिविर लगाए जा रहे हैं. इन शिविरों में मुफ्त स्वास्थ्य जांच, उपचार और जनजागरूकता से जुड़ी जानकारी दी जाती है. इन प्रयासों से लोगों को धीरे-धीरे आधुनिक चिकित्सा की ओर मोड़ने की कोशिश की जा रही है.
कानून तो हैं, पर असर सीमित
झारखंड सरकार ने डायन प्रथा और अंधविश्वास के खिलाफ सख्त कानून बनाए हैं. इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में इनकी जड़ें अब भी मजबूत हैं. जब तक शिक्षा का व्यापक प्रसार और वैज्ञानिक चेतना नहीं आएगी, तब तक इन कुरीतियों से समाज को पूर्ण मुक्ति मिलना कठिन रहेगा.
वैज्ञानिक सोच ही बनेगी आधार
समाज में सार्थक बदलाव लाने के लिए जरूरी है कि लोग अंधविश्वास से ऊपर उठें और चिकित्सा विज्ञान पर भरोसा करें. केवल वैज्ञानिक सोच अपनाकर ही एक स्वस्थ, उन्नत और समतामूलक समाज की कल्पना साकार की जा सकती है.
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