उदित वाणी, गिरिडीह: गिरिडीह व्यवहार न्यायालय को शहर से बाहर जोगीटांड़ क्षेत्र में स्थानांतरित किए जाने के प्रस्ताव ने अधिवक्ताओं के बीच आक्रोश की लहर पैदा कर दी है. अधिवक्ताओं का कहना है कि प्रस्तावित स्थल भू-धंसान की चपेट में है, जहां कोर्ट भवन का निर्माण न केवल न्यायिक अधिकारियों बल्कि आम नागरिकों के लिए भी गंभीर खतरा साबित हो सकता है.
वर्तमान परिसर में है पर्याप्त स्थान, क्यों हो रहा अनावश्यक खर्च?
पूर्व शिक्षा मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्र मोहन प्रसाद ने सरकार पर गैर-ज़िम्मेदाराना फैसले का आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान कोर्ट परिसर में पर्याप्त जगह उपलब्ध है. यदि सरकार नया भवन ही बनाना चाहती है तो उसे किसी सुरक्षित और स्थायी स्थान पर बनाया जाना चाहिए, न कि ऐसे क्षेत्र में जो पहले से असुरक्षित घोषित है.
कोयला खनन से ज़मीन अस्थिर, बार एसोसिएशन ने जताई चिंता
बार एसोसिएशन के महासचिव चुन्नूकांत ने जानकारी दी कि जोगीटांड़ क्षेत्र की जमीन पहले ही कोयला खनन के कारण अस्थिर हो चुकी है. ऐसी ज़मीन पर स्थायी न्यायालय भवन का निर्माण करना, प्रशासन की गंभीर चूक साबित हो सकती है. उन्होंने इसे “खतरे को खुला निमंत्रण” बताया.
चेतावनी: स्थानांतरण नहीं रुका तो होगा आंदोलन
बार एसोसिएशन ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर सरकार और हाईकोर्ट द्वारा स्थानांतरण के निर्णय को वापस नहीं लिया गया, तो वे सर्वदलीय बैठक बुलाकर आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेंगे. इस मुद्दे को लेकर अधिवक्ताओं में एकजुटता देखी जा रही है.
जनता भी चिंतित, शहर में तेज हुई बहस
इस प्रस्ताव को लेकर शहर में भी बहस तेज हो गई है. आम नागरिकों ने भी न्यायालय भवन को भू-धंसान क्षेत्र में स्थानांतरित किए जाने पर चिंता जताई है. जनहित और न्यायिक सुरक्षा को खतरे में डालने वाले इस फैसले को लेकर जनता की ओर से भी विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं.
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