- एसोसिएशन ऑफ झारखंड अनएडेड प्राइवेट एजुकेशनल इंस्टीट्यूट ने जारी किया पत्र
उदित वाणी, जमशेदपुर: जमशेदपुर के निजी अंग्रेजी स्कूलों के संगठन एसोसिएशन ऑफ झारखंड अनएडेड प्राइवेट एजुकेशनल इंस्टीट्यूट ने एक पत्र जारी कर निजी स्कूलों को आ रही समस्याओं पर चिंता जाहिर की है. इसमें एसोसिएशन ने निजी स्कूलों पर अलग-अलग तरह के आर्थिक दबाव पड़ने का दावा किया है. एसोसिएशन में पत्र में कहा है कि आर्थिक दबाव के कारण अगले कुछ वर्षों में सरकारी स्कूलों और निजी स्कूलों के बीच बहुत कम अंतर रह जाएगा. अलग-अलग तरह की नीतियों के कारण निजी स्कूल आर्थिक दबाव झेल रहे हैं और ऐसी स्थिति में निजी स्कूलों के पास बच्चों के शैक्षणिक सुधार के लिए संसाधनों में वृद्धि करने की क्षमता नहीं बची है.
एसोसिएशन के अध्यक्ष बी. चंद्रशेखर की ओर से जारी पत्र में निजी स्कूलों पर मुनाफाखोरी के आरोपों पर आपत्ति जताई है. कहा है कि स्कूलों पर मुनाफाखोरी में लिप्त होने का आरोप लगाया जा रहा है. कुछ लोगों द्वारा निहित स्वार्थ के चलते स्कूलों की ओर से अभिभावकों पर एमआरपी से 20% अधिक कीमत पर किताबें खरीदने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया जा रहा है. एसोसिएशन का कहना है कि यह बेबुनियाद आरोप है. अभिभावकों ने इस बारे में शिकायत नहीं की, क्योंकि उन्हें यह सुविधाजनक लगता है और किताबें बाजार के समान कीमत पर मिलती हैं. इसका विकल्प यह है कि स्कूलों की ओर से अभिभावकों को एक पुस्तक सूची दी जाएगी, लेकिन तब किताबें खरीदने के लिए उन्हें आधा दर्जन पुस्तक विक्रेताओं के पास जाना होगा. उन्हें अधिक भुगतान भी करना पड़ सकता है, क्योंकि कोई भी स्कूल एमआरपी से एक रुपये भी अधिक कीमत पर किताबों की बिक्री को प्रोत्साहित नहीं करता है. एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि सबको यह ज्ञात होना चाहिए कि दिल्ली उच्च न्यायालय (दिनांक 21-06-2018 के परिपत्र) ने स्कूल परिसर में एमआरपी पर पुस्तकों की बिक्री को मंजूरी दे दी है.
एसोसिएशन ने इस पत्र में कहा कि राज्य सरकार ने अप्रैल 2024 से न्यूनतम वेतन में 35% की वृद्धि दर को लागू कर दिया है. इस कारण स्कूलों पर अलग से आर्थिक बोझ बढ़ा है. इसके बावजूद सरकार ने यह फैसला सुनाया है कि निजी स्कूल हर दो साल में ही अपनी फीस में महज 10% ही बढ़ोतरी कर सकते हैं. इससे स्कूल अब नकदी संकट की ओर बढ़ रहे हैं. एसोसिएशन के अध्यक्ष बी. चंद्रशेखर ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा तैयार आरटीई के अनुसार, निजी स्कूलों को अपनी सीटों का 25% बीपीएल श्रेणी के वंचित बच्चों को उपलब्ध कराना है. यह निर्दिष्ट किया गया है कि स्कूलों को राज्य द्वारा किए गए प्रति बच्चे के खर्च की सीमा तक या नियमित बच्चों से ली जाने वाली वास्तविक राशि, जो भी कम हो के अनुसार व्यय की प्रतिपूर्ति दी जाएगी. इसके विरुद्ध आरटीई अधिनियम की स्थापना के समय से राज्य सरकार ने 2000 रुपये की सामान्य फीस के मुकाबले प्रति बच्चे 425 रुपये का भुगतान किया. वर्ष 2022 से सरकार ने स्कूलों को ये फीस पूरी तरह से देना बंद कर दिया है. यह वस्तुतः राज्य सरकार द्वारा स्कूलों पर 25% आयकर लगाने के बराबर है, जबकि स्कूलों को कर का भुगतान करने से छूट दी गई है और राज्य सरकार के पास इस तरह का कर लगाने का कोई अधिकार नहीं है. बी. चंद्रशेखर ने पत्र में कहा कि ऐसी स्थिति में इस दर से कुछ वर्षों में सरकारी स्कूलों और निजी स्कूलों के बीच बहुत कम अंतर रह जाएगा.
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