उदित वाणी जमशेदपुर : नया साल शुरू हो चुका है और गणतंत्र दिवस भी करीब है। ऐसे समय में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और राज्यपाल आर.एन. रवि के बीच राष्ट्रगान को लेकर हाल ही में हुआ विवाद चर्चा का विषय बना हुआ है। यह घटना न केवल संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है बल्कि राष्ट्रगान जैसे महत्वपूर्ण प्रतीक को राजनीति में घसीटने का प्रयास भी है।
संविधान और राष्ट्रगान का महत्व
भारतीय संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 51(क) के अनुसार, हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज, और राष्ट्रगान का सम्मान करे।
राष्ट्रगान और राष्ट्रीय प्रतीकों का पालन करना न केवल संवैधानिक दायित्व है, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है। विशेष रूप से, राजनेताओं को इन मर्यादाओं का पालन करना चाहिए क्योंकि वे जनता द्वारा चुने जाते हैं।
राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971
राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत राष्ट्रगान का अपमान करना एक गंभीर अपराध है। इसके लिए तीन साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। इस प्रकार, राष्ट्रगान से संबंधित किसी भी विवाद को संवैधानिक दायित्वों और प्रावधानों के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।
तमिलनाडु में विवाद की शुरुआत
7 जनवरी, 2025 को तमिलनाडु विधानसभा के उद्घाटन सत्र के दौरान, राज्यपाल आर.एन. रवि ने राष्ट्रगान न बजाए जाने पर आपत्ति जताते हुए सभा छोड़ दी।
यह परंपरा है कि तमिलनाडु विधानसभा का सत्र राज्य के आधिकारिक गीत ‘थाई वल्थु’ से शुरू होता है और अंत में राष्ट्रगान बजता है। राज्यपाल ने इसे प्रोटोकॉल का उल्लंघन बताया, जबकि सत्तारूढ़ द्रमुक सरकार ने इसे हस्तक्षेप करार दिया।
मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच आरोप-प्रत्यारोप
मुख्यमंत्री स्टालिन ने राज्यपाल के कदम को ‘बचकाना’ कहा, वहीं राजभवन ने इसे ‘अहंकारी’ और ‘संविधान के प्रति असम्मानजनक’ करार दिया।
राज्यपाल ने यह भी आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री संविधान और राष्ट्र के प्रति सम्मान नहीं रखते। वहीं, मुख्यमंत्री ने राज्यपाल पर विधानसभा की परंपराओं का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।
राज्यपाल और राज्य सरकार के संबंध
यह विवाद कोई नई बात नहीं है। राज्यपाल और तमिलनाडु सरकार के बीच 2021 से ही संबंध खराब रहे हैं।
हाल के वर्षों में ‘द्रविड़’ शब्द और अन्य मुद्दों पर भी राज्यपाल और सरकार के बीच खींचतान हो चुकी है।
संघीय ढांचे और राज्यपाल की भूमिका
भारत के संघीय ढांचे में राज्यपाल का पद संवैधानिक रूप से महत्वपूर्ण है। लेकिन उनकी भूमिका राजनीतिक रूप से तटस्थ और सहयोगी होनी चाहिए।
ऐसे विवाद राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच समन्वय को बाधित करते हैं और शासन में व्यवधान उत्पन्न करते हैं।
राष्ट्रगान और राजनीति
राष्ट्रगान देश की अखंडता और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। इसे किसी भी सूरत में राजनीतिक विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए।
राजनेताओं को संयम और मर्यादा का पालन करते हुए राष्ट्रगान और अन्य संवैधानिक प्रतीकों का सम्मान करना चाहिए।
राजनीतिकरण से बचने की आवश्यकता
राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों को संवाद और आपसी समझ के जरिए विवादों को सुलझाना चाहिए।
केंद्र सरकार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्यपालों की नियुक्ति राज्य की राजनीति में टकराव का कारण न बने।
भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना आपसी सम्मान और सहमति में निहित है।
राष्ट्रगान और राज्यगान के बीच किसी भी प्रकार का टकराव नहीं होना चाहिए।
सभी को यह याद रखना चाहिए कि संविधान और उसके आदर्शों का पालन करना हर नागरिक और राजनेता का दायित्व है।
राजनीति में संयम और मर्यादा बनाए रखना अनिवार्य है ताकि देश की गरिमा और लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का विश्वास बना रहे।
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