उदित वाणी, रायपुर: शनिवार को रायपुर (छत्तीसगढ़) में वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा 24वीं राष्ट्रीय वनवासी क्रीड़ा प्रतियोगिता (National Vanvasi Krida Competition) का उद्घाटन किया गया. इस प्रतियोगिता में बिहार, झारखंड, अंडमान निकोबार, मणिपुर, पंजाब, पूर्वोत्तर राज्यों सहित देश भर के 33 प्रांतों और पड़ोसी देश नेपाल से लगभग 800 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं.
प्रतियोगिता की विशेषताएँ
इस प्रतियोगिता में फुटबॉल और तीरंदाजी की स्पर्धाएँ आयोजित हो रही हैं. रायपुर के कोटा स्टेडियम में फुटबॉल का मैच होगा, जबकि पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ग्राउंड में तीरंदाजी का खेल आयोजित किया जाएगा. प्रतियोगिता का समापन 31 दिसंबर को होगा.
खिलाड़ियों की तैयारी
इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी पहले अपने जिले में सफलता हासिल करने के बाद प्रांत स्तर पर चयनित हुए थे. अब वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं.
तापमान की चुनौती
खिलाड़ियों ने बताया कि अंडमान निकोबार में तापमान सामान्य रहता है, जबकि अन्य राज्यों में ठंड के कारण तीरंदाजी में निशाना साधने में कठिनाई हो रही है. ठंड की वजह से प्रदर्शन प्रभावित हो रहा है और खिलाड़ी अपने स्तर पर प्रदर्शन करने में संघर्ष कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार की शुभकामनाएं
प्रतियोगिता के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, वन मंत्री और स्वागत समिति के अध्यक्ष केदार कश्यप ने भी शुभकामनाएं दीं. उद्घाटन समारोह में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय संगठन मंत्री अतुल जोग, राष्ट्रीय महामंत्री योगेश बापट, छत्तीसगढ़ प्रांत के अध्यक्ष उमेश कच्छप और संगठन मंत्री रामनाथ कश्यप भी उपस्थित रहे.
पूर्व प्रधानमंत्री की श्रद्धांजलि
समारोह के दौरान सभी उपस्थित अतिथियों और खिलाड़ियों ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.
इतिहास में पहला आयोजन
1991 में पहली बार वनवासी क्रीड़ा प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था, जिसे स्वर्गीय अशोक साठे के प्रयासों से शुरू किया गया. उस पहले आयोजन में 15 राज्यों के 392 खिलाड़ियों ने भाग लिया था. तब से अब तक कुल 23 राष्ट्रीय वनवासी खेल स्पर्धाओं का आयोजन हो चुका है. इस वर्ष 24वीं प्रतियोगिता हो रही है.
वनवासी कल्याण आश्रम का उद्देश्य
वनवासी कल्याण आश्रम का उद्देश्य खेल केंद्रों के माध्यम से वनवासी जनजातियों के खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना है, ताकि वे अपनी प्रतिभा को निखार सकें और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकें.
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