उदित वाणी, चांडिल: 24 दिसंबर को पेसा कानून दिवस के रूप में मनाया गया. इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता बाबूराम सोरेन ने चांडिल के हमसदा स्थित एक निजी होटल में आयोजित प्रेस वार्ता में आदिवासियों के मुद्दों पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि झारखंड में पेसा कानून लागू होना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, लेकिन इसका पूर्ण लाभ अभी तक जनजातीय समुदायों तक नहीं पहुंचा है.
आदिवासी समुदाय की स्थिति पर सवाल
बाबूराम सोरेन ने कहा कि पेसा कानून का उद्देश्य आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाना था, लेकिन आज भी वे नौकरी, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. 24 दिसंबर 1950 को इस कानून की नींव रखी गई थी, लेकिन सात दशकों बाद भी आदिवासी समुदाय अपने हक की लड़ाई लड़ने को मजबूर है.
कानून के पालन में लापरवाही पर नाराजगी
सोरेन ने झारखंड सरकार पर आरोप लगाया कि राज्य में पेसा कानून का विधिसम्मत पालन नहीं हो रहा है. उन्होंने सरायकेला जिला सहित पूरे झारखंड में आदिवासियों की अनदेखी पर दुख व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि ग्राम प्रधान चयन प्रक्रिया से लेकर ग्रामसभा से जुड़े अन्य मामलों में आदिवासियों को उनके अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं.
सरकार से की विशेष मांग
बाबूराम सोरेन ने राज्य सरकार से मांग की कि असंवैधानिक रूप से चयनित ग्राम प्रधानों की पहचान कर उनकी सूची तैयार की जाए और उन पर सख्त कार्रवाई हो. साथ ही, सभी विभागों के अधिकारियों को निर्देशित किया जाए कि पेसा कानून के तहत आदिवासियों को हर क्षेत्र में प्राथमिकता दी जाए.
उपस्थित गणमान्य
इस अवसर पर पारणिक वनमाली हांसदा, माझी बाबा इंद्र टुडु, बबलू टुडु, विजय मुर्मू और बबलू सोरेन मौजूद रहे.
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