उदित वाणी, जमशेदपुर: अखिल भारतीय संगठन FMRAI ने दवाओं और चिकित्सा उपकरणों पर 0% जीएसटी की मांग की है. FMRAI ने हमेशा दवा विपणन में स्वच्छता लाने की बात की है. दवा का प्रचार वैज्ञानिक आधार पर किया जाए, ताकि फिजूल खर्चे से दवाओं के दाम प्रभावित न हों. हमारे संगठन ने फार्मा कंपनियों के लिए ‘‘यूनिफार्म कोड फॉर मार्केटिंग प्रैक्टिसेस (UCPMP)’’ को लागू करने में सफलता प्राप्त की है, लेकिन इस पर कोई सजा का प्रावधान नहीं किया गया है.
चुनावी बॉन्ड और स्वास्थ्य संबंधी भ्रष्टाचार
FMRAI ने कहा जब हम सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाइयों की मांग कर रहे थे, तब फार्मा कंपनियाँ चुनावी बॉन्ड के जरिए करोड़ों रुपये चंदा दे रही थीं. इसके माध्यम से सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों से सहयोग प्राप्त कर रही थीं, जो जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले फार्मा कंपनियों के साथ मिलकर भ्रष्टाचार कर रहे थे. 35 फार्मा कंपनियों ने लगभग 1000 करोड़ रुपये का चुनावी बॉन्ड खरीदा है. ऐसे में, हम मांग करते हैं कि इन कंपनियों और उनके कार्यों की गंभीर जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बजट की आवश्यकता
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के अनुसार, 2025 तक सरकारी स्वास्थ्य खर्च को जीडीपी के 2.5% तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. वर्तमान में, 2024-25 के केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य पर जीडीपी का 2.3% आवंटित किया गया है. FMRAI की मांग है कि इसे बढ़ाकर कम से कम 5% किया जाए. FMRAI की सलाह है कि बड़े कॉर्पोरेट घरानों से कर्ज वसूला जाए और कार्पोरेट टैक्स में छूट को बंद किया जाए.
मुख्य मांगें
जनहित में स्वास्थ्य नीति बनाई जाए और स्वास्थ्य के बजट में जीडीपी का 5% आवंटित किया जाए.
दवाओं की कीमतों को उत्पादन मूल्य के आधार पर निर्धारित किया जाए और दवाओं पर 0% जीएसटी लागू किया जाए.
दवा विपणन में स्वच्छता लाने के लिए कड़ा कानून पारित किया जाए और उल्लंघन करने वालों को सजा दी जाए.
चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा देने वाली दवा और वैक्सीन कंपनियों और कॉर्पोरेट अस्पतालों पर कड़ी जांच और कार्रवाई हो.
महंगी दवाइयाँ और उपचार
हाल ही में केंद्र सरकार ने थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में वृद्धि के आधार पर दवाओं के दाम बढ़ाने की अनुमति दी है. इससे जीवनरक्षक दवाइयाँ, एंटीबायोटिक्स, बीपी और शुगर की दवाइयाँ, कैंसर व दमा की दवाइयाँ महंगी हो जाएंगी. हमारी मांग है कि सरकार दवाओं के दामों को उत्पादन, विनिर्माण और वितरण खर्च के आधार पर तय करे, न कि बाजार मूल्य के हिसाब से.
जीएसटी का दवाइयों पर प्रभाव
दवाओं पर लगने वाले जीएसटी ने दवाओं की कीमतों को और बढ़ा दिया है. वर्तमान में दवाओं पर 5%, 12% और 18% स्लैब में जीएसटी लगता है, जो कच्चे माल के आयात पर 10% अतिरिक्त टैक्स लगाता है. यह निश्चित रूप से देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव डालता है.
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