उदितवाणी, दिल्ली: भोजपुरी भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर भोजपुरी जनजागरण अभियान द्वारा दिल्ली में एक धरने का आयोजन किया गया. यह धरना राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संतोष पटेल के नेतृत्व में किया गया, जिसमें प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. धरने के बाद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के नाम ज्ञापन और मांगपत्र सौंपा गया.
धरने में प्रमुख नेताओं की उपस्थिति
रविवार, 8 दिसंबर, 2024 को दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित इस धरने की अध्यक्षता पूर्व सांसद महाबल मिश्र ने की. धरने में सासाराम के सांसद मनोज कुमार ने कहा, “हम भोजपुरी के साथ हैं और इस जनजागरण अभियान के उद्देश्य के साथ खड़े हैं. मैं विपक्ष में हूं, फिर भी प्रयास करूंगा कि सदन में इस मुद्दे को उठाऊं.” महाबल मिश्र ने अपने संबोधन में कहा, “हम पूर्वांचल के लोग हमेशा संघर्षशील रहे हैं. भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देना सरकार का काम है और हमें इसे आठवीं अनुसूची में शामिल करवाना ही होगा.”
वरिष्ठ रंगकर्मी महेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा, “भोजपुरी हमारी मातृभाषा है, और हम सभी इसके सम्मान के लिए वर्षों से संवैधानिक दर्जे की मांग कर रहे हैं.” संगठन के अध्यक्ष डॉ. संतोष पटेल ने कहा कि सरकार बार-बार आश्वासन देती है, लेकिन अब तक भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है. “हम सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं, और जब तक भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलती, तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा.”
भोजपुरी जनजागरण अभियान का इतिहास
भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लंबे समय से की जा रही है. भोजपुरी जनजागरण अभियान, जो ‘पुरवैया (रजि.)’ द्वारा संचालित एक संस्था है, 2015 से लगातार भोजपुरी भाषा को भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए देशभर में आंदोलन चला रहा है. डॉ. संतोष पटेल के नेतृत्व में इस संगठन ने पहले 22 बार धरना प्रदर्शन किया है और सरकार से निरंतर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की है. भोजपुरी को मॉरीशस और नेपाल में संवैधानिक मान्यता मिली हुई है.
आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएं
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं. इनमें असमिया, बांगाली, गिराती, हिंदी, कन्नड, कश्मिरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, मसांधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, सांथाली, मैथिली और डोंगरी शामिल हैं.
यह धरना आंदोलन भोजपुरी भाषा के संवैधानिक दर्जे को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है.
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