उदित वाणी, रांची: झारखंड में बढ़ी व्यापक निर्माण (कंस्ट्रक्शन) गतिविधियों के चलते तेजी से घटते पर्यावास के कारण हाथियों एवं इंसानों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ गई हैं और एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में 1&& लोगों की जान चली गयी जबकि उसके पिछले साल 84 लोग मारे गए थे.
रांची के तमाड़ इलाके में 22 जनवरी को 65 वर्षीय एक व्यक्ति को हाथी ने कुचल दिया था जबकि दो साल एक ब‘चे की भी हाथियों की झुंड ने जान ले ली थी. अधिकारियों के अनुसार अकेले जनवरी में ही रा’य में पांच व्यक्तियों ने हाथियों के हमले में जान गंवायी है.वकील सत्य प्रकाश को आरटीआई आवेदन के जवाब में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से सूचित किया गया कि 2017 के बाद से पिछले पांच सालों में 462 व्यक्ति इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष की भेंढ़ चढ गये और अकेले पिछले वित्त वर्ष में 1&& लोगों की जान चली गयी.
पिछले पांच सालों में पड़ोसी रा’य ओडिशा में 499 लोगों ने, असम में &85 और पश्चिम बंगाल में &58 लोगों ने हाथियों के हमले में जान गंवायी है.वन्यजीव विशेषज्ञों एवं वन अधिकारियों ने कहा है कि सिकुड़ते पर्यावास गलियारे, घटता भोजन आदि इस संघर्ष के कारण हैं.
इंडिया स्टेट ऑफ फोरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में वनक्षेत्र 2015 के 2&,478 वर्ग किलोमीटर से बढक़र 2021 में 2&,716 वर्ग किलोमीटर हो गया लेकिन उससे इंसान-हाथी संघर्ष नहीं रूका.भारत सरकार की हाथी परियोजना संचालन समिति के पूर्व सदस्य डी एस श्रीवास्तव ने बताया कि अनियोजित विकास कार्य, खनन गतिविधियों, अनियंत्रित चारागाह, दावानलों और माओवादियों के साथ सुरक्षाबलों की मुठभेड़ों ने वन्यजीव पर्यावास को बड़ा नुकसान पहुंचाया है.उन्होंने कहा, ‘‘ भले ही पिछले एक दशक में रा’य में वन क्षेत्र बढ़ गया हो लेकिन वन्यजीव पर्यावास का क्षरण हुआ है.
बांसों और घास के लगातार सिकुडऩे के चलते हाथियों के सामने भोजन की कमी की चुनौती पैदा हो गयी है.’’ श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘ हाथियों के पारंपारिक आवाजाही मार्ग भी लुप्त हो रहे हैं. झारखंड में सारंडा वन से ओडिशा के सुंदरगढ़ तक का एक उनका मार्ग खनन के चलते नष्ट हो गया. इसी तरह, झारखंड में रामगढ़ से लेकर बंगाल के पुरूलिया तक एक राष्ट्रीय राजमार्ग के चलते हाथियों को कई रूकावटें आयी हैं. ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनका हवाला दिया जा सकता है.’’
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