संजय प्रसाद
उदित वाणी, जमशेदपुर: अगर बोनस का नया फॉर्मूला बनता तो टाटा स्टील के पिछले वित्तीय वर्ष (2021-22) के ऐतिहासिक परफॉर्मेंस की पिच पर 700 करोड़ रूपए से ज्यादा का बोनस होता.
लेकिन प्रबंधन ने पुराने फॉर्मूले को बरकरार रख बोनस की पिच पर ज्यादा करोड़ नहीं बनने दिए. ये बात अलग है कि टाटा वर्कर्स यूनियन टी-20 की तर्ज पर इसे 2020 की जीत बता रही है, जिसमें कर्मचारियों के बेसिक और डीए के 20 फीसदी बोनस के साथ फ्लैट 20 हजार रूपए की गुडविल राशि शामिल है.
टाटा वर्कर्स यूनियन के तत्कालीन अध्यक्ष आर रवि प्रसाद ने 2017 में बोनस का पुराना फॉर्मूला बनाया था, जिसमें एक क्लौज यह भी था कि बोनस की राशि कुल बेसिक और डीए के 20 फीसदी से ज्यादा होने पर इस फॉर्मूला के पैरामीटर्स के आधार पर बोनस नहीं मिलेंगे. प्रबंधन ने दो साल पहले एक्स्पायर हो चुके इस फॉर्मूले को नया जीवन देकर कर्मचारियों के प्रोफिट शेयरिंग को कम किया है.
यहीं नहीं इस फॉर्मूले अगले तीन साल के लिए एक्सटेंशन दे दिया गया है क्योंकि नये फॉर्मूले बनने पर प्रबंधन को कर्मचारियों को बोनस की एवज में ज्यादा राशि देनी पड़ती और 2017 के समझौते का यह क्लौज भी शिथिल हो जाता जिसमें 20 फीसदी से ज्यादा बोनस की राशि नहीं देने की शर्त थी.
इस बारे में टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष संजीव कुमार चौधरी का कहना है कि यह समझौता यह देखकर बनाया गया था कि कंपनी का परफॉर्मेंस खराब और अच्छा होने पर कर्मचारियों को ज्यादा से ज्यादा बोनस मिल सकें.
पिछले वित्तीय वर्ष में कंपनी का परफॉर्मेंस ऐतिहासिक रहा है. कभी भी कोई फॉर्मूला उस वक्त नहीं बनाना चाहिए, जब मार्केट बूम हो. अगर प्रोफिट कम होता है तो उस वक्त का भी ध्यान रखना चाहिए.
लेकिन यूनियन के विपक्षी खेमे का कहना है कि जब कंपनी का प्रोफिट कम होता है, उस वक्त कंपनी 20 फीसदी बोनस नहीं देती है, लेकिन जब प्रोफिट ज्यादा हुआ है तो उसका शेयर कर्मचारियों को भी मिलना चाहिए.
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