उदित वाणी, जमशेदपुर: अपनी इस्पाती इच्छाशक्ति की बदौलत कैंसर से जंग करने वाले टिनप्लेट कंपनी के पूर्व एमडी भूषण रैना का मंगलवार सुबह 8 बजे टिनप्लेट हॉस्पिटल में इलाज के दौरान निधन हो गया. निधन की खबर सुनते ही कारपोरेट जगत से जुड़ी हस्तियां उनके विजया होम स्थित आवास पहुंचीं. घर में शव पहुंचने के बाद पूजा पाठ हुआ और उनकी अंतिम यात्रा दोपहर साढ़े तीन बजे निकली.
शाम चार बजे पार्वती घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ. मुखाग्नि बेटे मोहित और बेटी मोना ने दिया. मौके पर टाटा स्टील के वीपी चाणक्य चौधरी, संजीव पॉल, पीयुष गुप्ता समेत टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन के प्रेसीडेन्ट राकेश्वर पांडेय, जुस्को के एमडी तरूण डाग्गा, रितुराज सिन्हा, नकुल कमानी, किलोल कमानी और विशाल बादशाह मौजूद थे.
टिनप्लेट कंपनी को दिया जीवन दान
78 साल के भूषण रैना ने टिनप्लेट कंपनी को जीवन दान दिया. इनकी अंतिम यात्रा में शामिल टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष राकेश्वर पांडेय ने बताया कि आज टिनप्लेट जो फल फूल रही है, उसका श्रेय भूषण रैना को जाता है. 1997 में लग रहा था कि कंपनी बंद हो जाएगी, मगर उस मुश्किल वक्त में रैना साहब, कंपनी ज्वाइन किए और उसे मुश्किल दौर से बाहर निकाला.
बकौल राकेश्वर पांडेय, महान इंसान थे रैना साहब. डायनेमिक लीडर के साथ अच्छे इंसान भी थे. उन्होंने कर्मचारियों के लिए काफी काम किया. उनके नेतृत्व में कंपनी पूरी तरह से टर्न अराउंड हुई. आज कंपनी का टर्न ओवर चार हजार करोड़ के पार चला गया है और टाटा समूह अपने एक्सपैंशन के लिए कंपनी में दो हजार करोड़ का नया निवेश करने जा रहा है.
मूल रूप से कश्मीर के रहने वाले थे
मूल रूप से कश्मीर के रहने वाले रैना ने टाटा समूह की विभिन्न कंपनियों में 40 साल से ज्यादा काम किया. रैना का 1997 से लेकर 2009 तक वे टिनप्लेट कंपनी के एमडी रहे. अपने हंसमुख व्यक्तित्व के लिए मशहूर रैना जब टिनप्लेट ज्वाइन किए, तब कंपनी आईसीयू में थी. भूषण रैना ने अपनी लीडरशिप की बदौलत कंपनी को प्रोफिट में लाया.
इसके पहले वे टाटा स्टील के ट्यूब डिविजन में थे. 1981 में टाटा स्टील के सेल्स एंड मार्केटिंग से करिअर शुरू किया. सीआईआई के पूर्वी क्षेत्र के अध्यक्ष के साथ ही एक्सएलआरआई एल्युमनी एसोसिएशन के नेशनल चेयरमैन रहे.
मुंगेर योग आश्रम ने दी नई जिंदगी
कैंसर से पीड़ित रैना को नई जिंदगी मुंगेर योग आश्रम से मिली, जब योग के चलते वे कैंसर पर विजय तो नहीं पा सके, मगर शारीरिक और मानसिक तौर पर अपने आप को बेहतर महसूस करने लगे. हर साल योग दिवस पर होने वाले आयोजन में वे सक्रियता से शामिल होते थे. गोल्फर रहे रैना जीवन के अंत तक योग से जुड़े रहे.
सत्यानंद योग केन्द्र के डीपी सिंह ने बताया कि कैंसर की गिरफ्त में आने के बाद उनका योग से जुड़ाव हुआ. मुंगेर योग आश्रम में रहकर योग की शिक्षा प्राप्त की. मुंगेर योग आश्रम के स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को कई बार शहर लाने की कोशिश की, मगर किसी कारणवश स्वामी जी नहीं आ पाए.
योग से इस कदर प्रभावित थे कि योग दिवस पर हर साल गोलमुरी क्लब में योग शिविर का आयोजन कराते थे और खुद उसमें हिस्सा लेते थे. प्रणायाम और आसन्न से उन्हें कैंसर को मात देने में काफी मदद मिली. उनके योग शिक्षक मलय कुमार डे थे, जो उन्हें घर में जाकर योग सीखाते थे.
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